कश्मीर विश्वविद्यालय के 18वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

श्रीनगर, जम्मू एवं कश्मीर : 27.09.2012

डाउनलोड : भाषण कश्मीर विश्वविद्यालय के 18वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 234.43 किलोबाइट)

मुझे कश्मीर विश्वविद्यालय के 18वें दीक्षांत समारोह में यहां उपस्थित होकर बहुत खुशी हो रही है। जिन्हें आज उपाधियां प्राप्त होंगी, उनके लिए यह चिरप्रतीक्षित तथा गौरवपूर्ण क्षण है। आपमें से कुछ को अपने सराहनीय कार्य के लिए पुरस्कार प्राप्त होंगे। मैं आप सभी को बधाई तथा शुभकामनाएं देता हूं।

यद्यपि आप अब इस संस्थान के प्रांगण से चले जाएंगे परंतु इसके बाद आप कश्मीर विश्वविद्यालय जैसे एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र के रूप में इससे जुड़े रहेंगे, जिसकी बौद्धिक और साहित्यिक गतिविधियों की एक गौरवशाली परंपरा रही है। मुझे बताया गया है कि इस समय 38 शैक्षणिक विभागों में 13 संकायों तथा 15 अनुसंधान एवं प्रसार केंद्रों के साथ ही यह विश्वविद्यालय लगभग 150 शैक्षणिक कार्यक्रमों का संचालन कर रहा है। वर्ष 1984 में अपनी छोटी सी शुरुआत के बाद इसने बहुत तरक्की की है।

विशिष्ट अतिथिगण,

शारदा पीठ अर्थात ज्ञान के केंद्र के रूप में प्राचीन समय में, कश्मीर की महान ख्याति से मैं अभिभूत हूं। इस सुंदर घाटी ने अपनी गोद में बहुत से विद्वानों, कवियों तथा शिक्षाविदों को पाला है। इसने विभिन्न संस्कृतियों एवं विदेशी सभ्यताओं से दार्शनिकों तथा विद्वानों को आकर्षित किया है, जिन्होंने इसकी विरासत को समृद्ध किया है। मुझे विश्वास है कि इस विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों को उस मूल्यवान देन का आभास है जो उनको विरासत में मिली है तथा वे उससे प्रेरणा तथा लाभ प्राप्त करेंगे।

विशिष्ट अतिथिगण,

भारत तथा वास्तव में संपूर्ण विश्व में आज के विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक परिवेश पहले से कहीं अधिक उत्साहजनक है। सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति से अनगिनत अवसर सामने आए हैं। इसने हमारे विद्यार्थियों को और अधिक आधुनिक, प्रगतिशील तथा प्रासंगिक शिक्षा प्रदान करने की सुविधा दी है।

भारत सरकार ने अपनी 12वीं पंचवर्षीय योजना में इसकी प्राप्ति के लिए सुव्यवस्थित कार्य योजना बनाई है। इसमें, क्षेत्रीय सहभागिता के साथ अवसंरचना का विकास, कार्य निष्पादन पर ध्यान केंद्रित करना, बेहतर मानव संसाधन प्रबंधन, पाठ्यक्रम में सुधार, गुणवत्तायुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देना तथा ऐसा परिवेश तैयार करना जिसमें सर्वोत्तम विद्वान आकर्षित हों, जैसे कार्य शामिल हैं। जम्मू एवं कश्मीर में सरकार ने दो केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए हैं।

मुझे जानकारी है कि कश्मीर विश्वविद्यालय ज्ञान बैंकों तथा दुनिया भर के प्रख्यात संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सूचना से इलैक्ट्रानिक माध्यम से जुड़ा हुआ है। इसके इष्टतम दक्षता के साथ प्रसार की जरूरत है। यह समय है कि हम अधिक से अधिक पारस्परिक तथा सहयोगात्मक अध्ययन अनुभवों की ओर आगे बढ़ें।

इस तरह की नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने की जरूरत है जिनमें, शिक्षण, अध्ययन तथा व्यावसायिक विकास के लिए उपयोगी अनुप्रयोग मौजूद हों। इससे, हमारे शिक्षण तथा अनुसंधान की गुणवत्ता में महत्त्वपूर्ण सुधार आएगा। विश्वविद्यालयों को सर्जनात्मकता तथा नवान्वेषण को बढ़ावा देना होगा। ज्ञानवान समाज के निर्माण के लिए जरूरी है कि विश्वविद्यालय स्वायत्त अनुसंधान को बढ़ावा दें।

यह भी जरूरी है कि देश और विदेश स्थित उच्च शिक्षा के प्रमुख संस्थानों के बीच सहयोग और संबंध स्थापित हों जिससे विचारों के आदान-प्रदान से लाभ हो तथा ज्ञान का विकास हो।

विशिष्ट अतिथिगण,

कश्मीर की इस सुंदरता का आनंद उठाते हुए मैं इसकी पारिस्थितिकी तथा पर्यावरण के संरक्षण के बारे में अपने विद्यार्थियों और अनुसंधानकर्ताओं के मन में प्राथमिकता तय करने पर विवश हूं। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आपके जैसे विश्वविद्यालय खुद अपने तथा भावी पीढ़ियों के लाभ के लिए महान योगदान दे सकते हैं। यह अत्यंत जरूरी है कि विद्यार्थियों को जलवायु परिवर्तन तथा भूमि, स्वच्छ जल, तथा समुद्री संसाधनों के सामान्य क्षरण के प्रत्यक्ष प्रभावों से परिचय कराया जाए। कश्मीर में ही आसपास के पर्यावरण की सुरक्षा के लिए तथा इन चुनौतियों का सामना करने के लिए शैक्षणिक और अनुसंधान पाठ्यचर्या तैयार करने के लिए बहुत कुछ किया जाने की जरूरत है।

मैं इस अवसर पर, जबकि मैं आज इन मेधावी युवाओं के बीच हूं, अपने समाज में और अधिक सहनशीलता की प्रासंगिकता तथा उसकी अत्यधिक जरूरत के बारे में ध्यान दिलाना चाहूंगा। हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इससे केवल हर एक पक्ष के दर्द और दुख में दृष्टि होती है। घावों को भरने की प्रक्रिया में प्रेम, करुणा तथा धैर्य जरूरी है।

उच्च शिक्षा के संस्थान, मजबूत मूल्य प्रणालियों तथा चरित्र निर्माण पर जोर देते हुए, जिम्मेदारी की प्रगाढ़ भावना के विकास में तथा सभी मसलों पर एक तार्किक दृष्टिकोण अपनाने में कारगर भूमिका निभा सकते हैं। इस संदर्भ में, शिक्षकों का यह दायित्व है कि वे अपने विद्यार्थियों में ज्ञान तथा कौशल और नैतिकता और कलात्मक मूल्यों के संतुलन का समावेश करें।

विशिष्ट अतिथिगण,

मैं कश्मीर के युवाओं का आह्वान करता हूं कि वे हमारे देश के भविष्य का निर्माण करने के कार्य में आगे आएं। चाहे वह व्यवसाय हो, उद्योग हो, व्यापार हो, शिक्षा हो अथवा संस्कृति—सभी क्षेत्रों में भारत एक प्रगतिशील राष्ट्र है। इसके 100 करोड़ लोग, अपनी अधिकांश युवा जनसंख्या के विचारों, परिश्रम तथा ऊर्जा से आगे की ओर बढ़ रहे हैं।

मुझे विश्वास है कि हमारे देश के युवा एक मजबूत तथा ताकतवर राष्ट्र का निर्माण करेंगे एक ऐसा राष्ट्र जो कि राजनीतिक रूप से परिपक्व, आर्थिक रूप से मजबूत हो—एक ऐसा राष्ट्र जिसकी जनता उच्च जीवन स्तर के साथ ही न्याय, मौलिक अधिकार तथा समानता का भी आनंद ले सके।

कल का यह भारत, जो कि समावेशी विकास के द्वारा प्राप्त होगा, कश्मीर के युवाओं को विशाल अवसर प्रदान कर सकता है यदि वे इस मौके का फायदा उठा सकें। अब और समय न खोएं। पूरी दुनिया तेजी से खुद को बदल रही है। भारत में, हमें पीछे नहीं छूटना है। युवा कश्मीरियों का योगदान प्रगति की ओर भारत के आगे बढ़ने के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। हिंसा और संघर्ष के काले दिनों को भूल जाएं। नया सूरज उगने दें। अब समय आ गया है कि हम अपने सामूहिक भविष्य में भरोसा करते हुए तथा विश्व के सबसे बड़े ऐसे लोकतंत्र में विश्वास रखते हुए आगे बढ़ें, जहां कानून का शासन है, मजबूत संस्थाएं कार्य करती हैं तथा संविधान ही सर्वोच्च कानून है।

मुझे इस बात की जानकारी है कि शिकायतें हैं। बहुत से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर दक्षता से कार्रवाई करके उनको त्वरित समाधान की जरूरत है। भारत सरकार तथा जम्मू एवं कश्मीर की राज्य सरकारें इस बात के लिए दृढ़प्रतिज्ञ तथा दायित्वबद्ध हैं कि प्रत्येक कश्मीरी सम्मान के साथ, समान अधिकारों और समान अवसरों का उपभोग करते हुए जीवन जीए।

जम्मू एवं कश्मीर को भारत के नए भविष्य के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने दें। यह शेष भारत तथा भविष्य के लिए एक उदाहरण कायम करे और यह दिखाए कि किस तरह पूरे क्षेत्र को शांति, स्थायित्व तथा समृद्धि से परिपूर्ण क्षेत्र में बदला जा सकता है।

जम्मू एवं कश्मीर को फिर से ज्ञान के केंद्र के रूप में अपना स्थान प्राप्त करना है जहां संत तथा धार्मिक विद्वानों का जमावड़ा रहता था और जो एक ऐसी भूमि थी, जो अपनी विविधता तथा सौहार्द तथा अपने पड़ोसियों के साथ व्यापार तथा वाणिज्य के केंद्र के रूप में जानी जाती थी।

इन्हीं शब्दों के साथ, मैं फिर से कश्मीर विश्वविद्यालय के उन सभी विद्वानों तथा विद्यार्थियों को इस महत्त्वपूर्ण अवसर पर बधाई देता हूं जब आप जीवन के शिक्षा और अनुभवों के नए अध्याय की शुरुआत कर रहे हैं। ईश्वर करे यह सुखद और फलदायक हो।

आपकी यात्रा आपके, आपके माता-पिता तथा आपके समाज के लिए नई ऊंचाइयां और उपलब्धियों को लेकर आए। मैं, हमारे महान देश के निर्माण में आप—आप में से हर एक के योगदान की आशा करता हूं।

धन्यवाद,  
जय हिंद!

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