कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानों के निदेशकों तथा प्रगतिशील किसानों के सम्मेलन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

बारामती, महाराष्ट्र : 19.01.2014

डाउनलोड : भाषण कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानों के निदेशकों तथा प्रगतिशील किसानों के सम्मेलन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 244.74 किलोबाइट)

मुझे आज कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानों के निदेशकों तथा प्रगतिशील किसानों के सम्मेलन के उद्घाटन के लिए यहां आकर गौरव का अनुभव हो रहा है। मैं इस महत्त्वपूर्ण सम्मेलन में आमंत्रित करने के लिए श्री शरद पंवार, केंद्रीय कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री को धन्यवाद देता हूं। मुझे जन-नेताओं, कृषि अनुसंधान प्रबंधकों, वैज्ञानिकों तथा शिक्षाविदों की इस विद्वत सभा को संबोधित करते हुए खुशी हो रही है। यह वार्षिक सम्मेलन, कृषि अनुसंधान, शिक्षा तथा विस्तार के क्षेत्र में प्रमुख साझीदारों के बीच संपर्क को संस्थागत रूप देने के प्रयास का हिस्सा है। मैं आयोजकों को इस पहल के लिए बधाई देता हूं।

2. आज, मैंने बारामती के पूरे दिन के भ्रमण के दौरान, इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हुए कृषि विकास को देखा। इसके विकास मॉडल का भारत के अन्य हिस्सों में, खासकर जहां कृषि सेक्टर का उत्पादन, उत्पादकता तथा लाभकारिता कम है, अनुकरण किया जा सकता है। मैं उन सभी भागीदारों के प्रयासों की सराहना करता हूं जिन्होंने इस प्रत्यक्ष बदलाव को साकार करने में सहयोग दिया है।

देवियो और सज्जनो,

3. कृषि सेक्टर आजादी के बाद के भारत में सफलता की प्रमुख कहानियों में से एक है। 1947 में हमने अविकसित कृषि प्रणाली विरासत में पाई थी। 1946 और 1952 के बीच, हमने प्रतिवर्ष औसतन 3 मिलियन टन खाद्य का आयात किया था। हमारे नीति निर्माताओं की दूरदृष्टि, हमारे कृषि वैज्ञानिकों की युक्ति तथा हमारे किसानों के परिश्रम के कारण, भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ। आज हम अनाजों, फलों, सब्जियों, दूध, अंडों तथा मछली जैसी बहुत सी खाद्य सामग्री के प्रमुख उत्पादक हैं। वर्ष 2012-13 में हमने 255 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन किया है जबकि इससे पहले वर्ष में हमने 259 मिलियन टन का रिकार्ड बनाया था। स्वस्थ कृषि विकास ने खाद्य सुरक्षा के साथ ही पौष्टिक आहार सुरक्षा में भी सुधार किया है।

4. कृषि भारत की अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान पर बनी हुई है। बहुत बड़ी संख्या में हमारे कृषि परिवारों की आजीविका सुरक्षा, कृषि से जुड़ी हुई है। 85 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान इस सेक्टर से आजीविका पाते हैं। खेती को अधिक आय प्रदाता बनाने तथा किसानों के कृषि उद्यमियों के रूप में रूपांतर के लिए मशीन और उपकरण जरूरी हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस वर्ष को पारिवारिक खेती का वर्ष घोषित किया गया है। अब समय आ गया है कि कृषक परिवारों तथा सहकारिताओं को आधार बनाकर कृषि प्रणालियों के सतत् विकास के लिए सक्रिय नीतियां शुरू की जाएं। पूर्वी भारत में हरित क्रांति लाने तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन जैसे कार्यक्रमों से कई राज्यों में प्रमुख फसलों की उत्पादकता को यथापेक्षित बढ़ावा मिला है। मुझे विश्वास है कि बेहतर कृषि उत्पादकता की दिशा में प्रयास जारी रहेंगे।

देवियो और सज्जनो,

5. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद हमारे देश में कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा का प्रमुख संगठन है। इसने उत्कृष्ट सेवा के साढ़े आठ वर्ष पूरे कर लिए हैं। प्रौद्योगिकीय समाधानों के माध्यम से इसने भारतीय कृषि को मजबूत स्थान पर ला खड़ा किया है। अब इसे जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधन हृस, नए जटिल पोषक-परजीवी की उपस्थिति, जैव सुरक्षा के प्रति चिंता, प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवस्था, कृषि उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता, कृषि आय में सुधार, परिष्कृत खाद्य की दिशा में बढ़ता उपभोग रुझान तथा पशुओं से प्राप्त खाद्य सामग्री की बढ़ती मांग जैसे सामने आ रहे नए मुद्दों पर ध्यान देना होगा। मुझे अपने संस्थानों, वैज्ञानिकों तथा कृषकों पर पूर्ण भरोसा है कि वे इन चुनौतियों को अवसरों में बदल देंगे।

6. बेहतर संसाधन प्रबंधन, विविधीकरण तथा अच्छे प्रजनन उपायों से बेहतर उत्पादकता तथा लाभकारिता प्राप्त करनी होगी। हमारे देश में निबल बुआई क्षेत्र 140 मिलियन हेक्टेयर के करीब पर आकर ठहर गया है। इसी के साथ यहां परती भूमि के बड़े-बड़े इलाके हैं। इस तरह की भूमि को उत्पादन उपयोग में लाने के लिए नई प्रौद्योगिकियों की जरूरत है। समस्यात्मक मिट्टी अर्थात नमक प्रभावित, जल आप्लावित तथा क्षारीय मिट्टी को, उपयोग योग्य बनाने के लिए प्रौद्योगिकियों का प्रचार करना होगा जिससे कृषि योग्य भूमि के क्षेत्र में वृद्धि हो। कृषि में आधुनिक जीवविज्ञान का उपयोग आज की जरूरत है।

7. पहुंच और उपलब्धि के मामले में, जल की कमी ने अनुसंधानकर्ताओं और संस्थानों के सामने एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत की है। हमारे देश के 80 मिलियन वर्षा सिंचित क्षेत्र में—वर्षा जल संचयन तथा पुनर्चक्रण, तत्स्थाने नमी संरक्षण जैसी प्रौद्योगिकीय पहलों ने कृषि उत्पादों को बढ़ाने तथा आजीविका के अवसरों में असमानता को कम करने में सहायता दी है। बेहतर निवेश-उपयोग दक्षता के माध्यम से संसाधनों के संरक्षण के लिए इस तरह की प्रौद्योगिकियों का अधिक जोरदार ढंग से उपयोग करना होगा।

8. बीज तथा रोपण सामग्री उत्पादकता बढ़ाने वाले महत्त्वपूर्ण कारक हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों तथा कृषि विश्वविद्यालयों को गुणवत्तायुक्त बीज पैदा करने के अपने कार्यक्रमों को सशक्त करना होगा तथा फसलों में बीज बदलाव दर में सुधार पर जोर देना होगा।

9. कृषि उत्पादकता का कृषि विद्युत उपलब्धता से सीधा सह-संबंध है। अपेक्षित उत्पादकता स्तर की प्राप्ति के लिए 17 किलोवाट की वर्तमान उपलब्धता बिल्कुल अपर्याप्त है। बढ़ते ऊर्जा मूल्य के परिप्रेक्ष्य में ऊर्जा उपयोग दक्षता में वृद्धि अत्यावश्यक है। इसी के साथ, खेतीहर श्रम की बढ़ती कमी के संदर्भ में कृषि के मशीनीकरण को बढ़ाना अत्यावश्यक है।

10. हमारी अर्थव्यवस्था में बागवानी एक नवोदित क्षेत्र है। बागवानी फसलों के विकास के लिए, बेहतर संकर नस्लों का विकास, पुराने बागानों को पुनर्जीवित करना, कीट तथा पोषाहार प्रबंधन, फसल की कटाई के बाद प्रबंधन तथा संरक्षित खेती जैसे कदम जरूरी हैं। इस तरह की फसलों में जैविक और गैर-जैविक हानि के खिलाफ प्रतिरोधात्मकता पैदा करने के लिए हमें संकर प्रौद्योगिकी का विकास करना होगा। इस तरह की प्रौद्योगिकी से चावल, मक्का, सूरजमुखी, बाजरा तथा कपास में भी संकर नस्लों को प्रोत्साहन मिल सकता है, जिससे इन सभी उपजों की उत्पादकता में काफी वृद्धि होगी।

11. जल्दी खराब होने वाले ताजा कृषि उत्पादों की भारी मात्रा के मद्देनजर प्राथमिक से द्वितीयक कृषि की ओर आमूलचूल प्रस्थान करना होगा। खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर का विकास, उद्योग तथा कृषि के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हो सकती है। अवसंरचना, विपणन, भंडारण तथा परिवहन में अधिक निवेश करना होगा। खाद्य प्रसंस्करण, शीतगृह शृंखला, ढुलाई तथा प्रसंस्करण उपरांत खाद्य की पैकेजिंग पर और अधिक अनुसंधान होने चाहिए।

12. जेनेटिक इंजीनियरी के आगमन ने जीन अदल-बदल तथा परिवर्तन पर प्राकृतिक रोक को समाप्त कर दिया है। कीट प्रतिरोध, शाकनाशी सहनशीलता जैसे नए गुणों से युक्त ट्रांसजेनिक फसलों के विकसित होने से तथा संकर नस्ल के उत्पाद के कारण, अनुवांशिक रूप से संशोधित (जी एम) फसलों की खेती में काफी वृद्धि हुई है। इस समय ऐसी फसलें 28 विकसित तथा विकासशील देशों में 170 मिलियन हेक्टेयर में उगाई जा रही हैं। भारत में बीटी-कॉटन ने कपास उत्पादन को बढ़ाया है तथा इसकी निर्यात आय में वृद्धि की है। हमें इन प्रौद्योगिकियों से मिलने वाले लाभ के लिए इन्हें अपनाना होगा। इसी के साथ, बेहतर जागरूकता तथा जैव-प्रौद्योगिकी शिक्षा के द्वारा जनता की चिंताओं का शमन भी करना होगा।

13. कृषि सेक्टर आज एक जीवंत तथा अधिकाधिक वैश्विक होती विश्व अर्थव्यवस्था के द्वार पर है। अत: बाजार आसूचना प्रणालियों, बेहतर व्यापार परिपाटियों, तथा बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्थाओं और बौद्धिक संपदा अधिकारों के कानूनी पहलुओं की बेहतर समझ अत्यावश्यक हो गई है। इसके लिए विभिन्न उपयोक्ता समूहों द्वारा निर्णय लेने में सहायता के लिए, उपयोक्ता अनुकूल ज्ञान प्रणालियों के विकास तथा उनको संस्थागत रूप देने की जरूरत होगी।

देवियो और सज्जनो,

14. भारत के कृषि विकास अनुभवों ने दिखाया है कि कृषि के विज्ञान प्रेरित विकास ने काफी अच्छे परिणाम दिए हैं। कृषि शिक्षा को अनुसंधान तथा प्रसार के लिए एक वैज्ञानिक आधार तैयार करने के लिए सबसे आगे रहना होगा। हमारे कृषि विश्वविद्यालयों को विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने, उनको पेशेवर रूप से सक्षम और सामाजिक रूप से संवेदनशील बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। उन्हें कृषि शिक्षा का सामंजस्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साथ बिठाने के लिए, संकाय तथा संस्थान विकास के लिए तथा शासन एवं पाठ्यचर्या में सुधार के लिए पहलें शुरू करनी होंगी। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने उच्च कृषि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और उसे बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय कृषि शिक्षा परियोजना शुरू की है। इसने ग्रामीण उद्यमिता तथा जागरूकता विकास योजना; प्रेरित अनुसंधान उत्कृष्टता के लिए कृषि विज्ञान पहल तथा कृषि में युवाओं को आकर्षित करना और उन्हें बनाए रखना, जैसी नवान्वेषी विद्यार्थी उन्मुख पहलें भी शुरू करने का विचार बनाया है।

15. कृषि विज्ञान केंद्रों में कृषि विश्वविद्यालयों तथा अनुसंधान संस्थानों के प्रसार कार्यक्रमों को सशक्त करने की अत्यधिक क्षमता है। कृषि विज्ञान केंद्र मॉडल को किसानों को प्रशिक्षण तथा प्रदर्शन सहयोग देने में अपनी बहु-विधा पद्धति का उपयोग कारगर ढंग से करना होगा। मुझे आज इससे पहले बारामती में कृषि विज्ञान केंद्र के नए परिसर तथा प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी के उद्घाटन में भाग लेकर प्रसन्नता हुई है।

16. इस सम्मेलन ने विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों के निदेशकों को पूरे देश में कृषि शिक्षा तथा शासन में एकसरता सुनिश्चित करने के उपायों पर चर्चा करने का अवसर दिया है। मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन में आपके विचार-विमर्श से सहयोग के साझा क्षेत्रों का पता लगाने और भारतीय कृषि को अधिक सशक्त बनाने के लिए तालमेल जुटाने में सहायता मिलेगी। हमारी एक बिलियन से अधिक जनता को आपसे बहुत उम्मीदें हैं। आपकी सफलता पर ही उनका भविष्य निर्भर करता है। मैं इस सम्मेलन के दौरान आपके कारगर तथा उपयोगी विचार-विमर्श की कामना करता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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