कर्नाटक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के द्वितीय वार्षिक दीक्षांत समरोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

कलबर्गी, कर्नाटक : 22.12.2015

डाउनलोड : भाषण कर्नाटक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के द्वितीय वार्षिक दीक्षांत समरोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 317.72 किलोबाइट)

speech1. मैं कर्नाटक के केंद्रीय विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर बहुत खुश हूं। यह विश्वविद्यालय वर्ष 2009 में आरंभ किए गए 16केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है। ये विश्वविद्यालय बहुधा देश के पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित किए गए थे ताकि लोगों को उच्चतर शिक्षा सुलभ कराई जा सके।

2. कर्नाटक एक ऐतिहासिक भूमि है जिसे बहुसांस्कृतिक, बहुजातीय और बहुभाषीय प्रकृति के लिए जाना जाता है। बुद्धवाद, जैनवाद,वीर-शैववाद अथवा लिंगायवाद और इस्लाम यहां पर समृद्ध हुए। वाचना क्रांति, सूफी संतों, कीर्तनकारों और तत्वपादकारों ने इस क्षेत्र के लोगों के हृदय और मस्तिष्क को आकार दिया है। ऊदू और पारसी साहित्य यहां फले-फूले और इसी तरह से कन्नड लोक साहित्य भी, जिसने इस क्षेत्र को स्वदेशी पहचान दी। यह भूमि विविध शैक्षिक प्रयोगों और अनुभवों की विरासत से युक्त है। यह विगत के दो विश्वविद्यालयों की सीट है अनुभव मनतपा और बासवन्ना और महमूद गबन का मदरसा-दोनों ने ही पूरे देश और विदेश से विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। यहां पर एक प्राचीन बुद्ध शिक्षा केंद्र सन्नाती और नावागीघाटी का स्थान भी उल्लेखनीय है। राज्य में समकालीन शैक्षिक संस्थानों का यह कर्तव्य है कि वे ज्ञानपीठ इस परंपरा को आगे ले जाएं। मैं इसमें कर्नाटक के केंद्रीय विश्वविद्यालय की प्रमुख भूमिका देख रहा हूं। एक नया विश्वविद्यालय होने के नाते यह पूर्व मनीषियों और शिक्षाविदों द्वारा निर्धारित उन्नत आदर्शों को प्राप्त करने के लिए अपनी शैक्षिक प्राथमिकताएं निर्धारित कर सकते हैं।

3. कर्नाटक का केंद्रीय विश्वविद्यालय अपनी मामूली शुरुआत से अल्पावधि में आश्चर्यजनक प्रगति की है। इसके 16 विभागों वाले 09 स्कूल हैं और और दो केंद्र हैं और अनेक पाईपलाइन में हैं। 1200 छात्रों की संख्या वाला यह विश्वविद्यालय इस क्षेत्र के युवाओं के भाग्य को बनाने के लिए सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसने अपनी नीतियों से उच्चतर शिक्षा पर पहुंच के लिए समावेशी भूमिका निभाई है। विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की महिला छात्रों के लिए शुल्क माफ करके महिलाओं के विकास के प्रति इसकी प्रतिबद्धता सराहनीय है।

प्रिय स्नातक छात्रो :

4. इस शुभ अवसर पर मैं आप सभी को आपकी उपलब्धि के लिए बधाई देता हूं। मैं आपमें खुशी की एक झलक देख रहा हूं। आज आपने एदियेतो यूरालामा को आमंत्रित किया है जो पिछले कुछ वर्षों से आपका शैक्षिक विश्व रहा है। आप यहां पर दी गई शिक्षा के प्रति विश्वस्त रहें। आप आशस्वत रहें कि आपको ऐसे साधन दिए गए हैं कि आप कहीं भी जाएं तरक्की करें और जो कुछ भी करें उसमें समृद्ध हों। इस उल्लास के क्षण में आप अपने प्रियजनों, निकटवर्तीयों,समाज और पूरे देश की उम्मीदों और अपेक्षाओं को भी अपने साथ शामिल करें। एक होनहार कैरियर की शुरुआत के लिए तैयार तेजस्वी युवा व्यक्तिं के रूप में वंचित लोगों के उन्नयन के लिए और हमारे समाज की ज्वलंत समस्याओं का शमन करना आपका कर्तव्य है। मुझे विश्वास है कि आपको सफलता मिलेगी और आप हमारे देश के विकास में योगदान देंगे।

मित्रो:

5.. एक सुदृढ़ शिक्षा प्रणाली के स्थापना पर, विगत समय से ही देशों ने उत्पादन मोर्चे को आगे बढ़ाने के लिए गरीबी, समाजिक रूग्णता और आर्थिक विषमता पर विजय प्राप्त की है। प्राचीन भारत में ज्ञान उत्पत्ति और उसकी प्रसार की संस्कृति विद्यमान रही है। इसे नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी और ओदांतपुरी जैसी शिक्षा की वैश्विक प्रतिष्ठित आसीनों द्वारा समर्थन प्राप्त था। ये संस्थाएं दूर-दूर तक शिक्षार्थियों के शैक्षिक प्रयासों का समावेशी विकासस्थल थीं।

देवियो और सज्जनो,

6.. अब परिदृश्य बिलकुल अलग है। विख्यात एजेंसियों द्वारा दर्शाए गए अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में हमारे उच्च शिक्षा संस्थान पीछे रह गए हैं। पिछले तीन वर्षों में अलग-अलग अवसरों पर, मैंने भारतीय संस्थाओं को अपने पहचान पत्र प्रस्तुत करने के लिए एक अधिक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहा है। एक उच्च रैंक मर्यादा में सुधार करता है, छात्रों के रोजगार की संभावनाओं को संवर्धित करता है और गुणवत्ता संकाय और मेधावी विद्यार्थियों, दोनों को ही आकर्षित करने में सहायता करता है। यह बड़े संतोष की बात है कि पहली बार इस वर्ष सर्वोच्च 200 विश्वविद्यालयों में 2 भारतीय संस्थाओं ने स्थान प्राप्त किया है। मैं अन्य भारतीय संस्थाओं से भी इसका अनुसरण करने की उम्मीद करता हूं। आपके जैसे नए विश्वविद्यालय शैक्षिक प्रबंधन में निरंतर प्रयास द्वारा शीघ्र ही अपनी पहचान बना सकते हैं।

7.. परिवर्तन के साथ प्रगति होती है। यह सच्चाई शिक्षा प्रणाली पर भी लागू होती है। विश्व श्रेणी की शिक्षा विश्व श्रेणी के संकायों के साथ ही व्यवहार्य है। हमारी संस्थाओं में संकाय विकास को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। किसी भी अनुशासन का सैद्धांतिक ढांचे में तीव्र परिवर्तन तभी होता है जब पिछली अवधारणा को प्रतिस्थापित करते हुए नई अवधारणाएं लगातार उत्पन्न होती है। दूरदर्शिता और उत्साह जैसे गुणों के साथ हमारे शिक्षक उनके क्षेत्र में अद्यतन विकासों के प्रति सचेत रहते हैं।

8.. शिक्षण के संदर्भ में हमें शीघ्रता से रिक्ति अंतराल को समाप्त करने और इस व्यवसाय में मेधावी लोगों को आकर्षित करने संबंधी दोहरी चुनौतियों का सामना करना है। शिक्षकों की कमी को दूर करने के प्रति लचीले रुख की आवश्यकता है। उद्योग और अनुसंधान संस्थाओं से सुधार संकाय नियुक्त किए जा सकते हैं। वे उच्चतर शिक्षा अध्यापन में एक उद्योग उन्मुखता प्रदान करेंगे। विदेश से आये विशेषज्ञ अपने क्षेत्र में नये विचार रख सकते हैं। इस दिशा में वैश्विक शैक्षिक नेटवर्क में पहल एक स्वागत योग्य कदम है।

देवियो और सज्जनो,

9. वर्ष 2016 तक अलग-अलग स्तरों पर चालीस करोड़ से अधिक छात्र शिक्षा प्राप्त करने वाले हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली को पहुंच, सहनीयता और गुणवत्ता संबंधी तीन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार होना है। यह कार्य इस वास्तविकता से और भी बढ़ जाता है कि वर्ष 2022 तक कौशल प्रशिक्षण के लिए तीस करोड़ युवाओं की परिकल्पना की गई है। मेरे विचार से शिक्षा और कौशल वितरण क्षेत्र में प्रौद्योगिकी सहित मॉडल एक व्यवहार्य समाधान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2008 की प्रथम शुरुआत से बड़े रूप में गहन ओपन ऑनलॉइन कोर्सेज (मूक्स) शुरू हुए हैं। शिक्षा की इच्छा रखने वाले असंख्य लोगों को गुणवत्ता शिक्षा प्रदान करने के लिए इस प्रौद्योगिकी मॉडल को अग्रणी विश्वविद्यालयों द्वारा लागू किया गया है। समृद्ध पाठ्यक्रम विषयवस्तु और परिवर्तनशील कार्यक्रम, मूल्यांकन के नवीन उपकरण और अवधिक कक्षाओं के अन्योन्यक्रियाओं से समर्थन प्राप्त कर मूक्स के रूप में भारत जैसे देश के लिए अच्छा कार्य कर सकते हैं जहां छात्रों में शिक्षा प्राप्ति, समाजिक आर्थिक भूमिका और स्थान के विषय में विविधता है। अन्योन्यक्रियात्मक मूक्स व्यवसायिक प्रशिक्षणों को मजबूती प्रदान कर सकते हैं और कौशल ज्ञान के वितरण में सुधार ला सकते हैं।

10. औपचारिक और व्यवहारिक शिक्षा के लिए मोबाइल फोन प्रौद्योगिकी भी अच्छा कार्य कर सकती है। कौशल प्रशिक्षण को छोड़कर सर्वोत्तम संस्थाओं से शिक्षा विषयवस्तु मोबाइल पर उपलब्ध कराई जा सकती है। ई-प्लेटफॉर्म कक्षाध्यापन को प्रतिस्थापित नहीं कर सकते हैं परंतु संभवत: यह पूरक भूमिका निभा सकता है। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क जैसे आईसीटी उपकरण विचारों,ज्ञान और शैक्षिक संसाधनों के सहयोग के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

11. भारत जैसे विकासशील देश को नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, पेयजल,स्वच्छता और शहरीकरण के मसलों के लिए नए समाधानों की आवश्यकता है। हमारे विश्वविद्यालयों का कर्तव्य है कि वे अपनी अनुसंधान प्राथमिकताओं को इन चुनौतियों के साथ सम्मिलित करें। हमारे विश्वविद्यालयों को रचनात्मक प्रयासों और आधुनिक प्रौद्योगिकी के लिए सृजनशील आधार का कार्य करना चाहिए। उन्हें अपने छात्रों को एक वैज्ञानिक प्रवृत्ति और जिज्ञासा की भावना से प्रेरित करना होगा। स्नातकाधीन स्तरीय, अनुसंधान विकास इस उद्देश्य में सुविधा प्रदान कर सकते हैं।

मित्रो,

12. केंद्रीय विश्वविद्यालय समाजिक सूचना के लिए एक वाहन का कार्य करने के लिए प्रयासरत हैं। उन्हें ज्ञान प्रसार, नवीकरण प्रोत्साहन, पर्यावरण संरक्षण में प्रगति और विकासशील कौशल द्वारा अपने क्षेत्र के लोगों तक पहुंचाना होगा। उन्हें प्रतिभाशाली स्थानीय युवाओं की भागीदारी, उनकी रोजगार में वृद्धि और वंचितों की उन्नत गतिशीलता को भी स्पष्ट करना होगा।

13. आधारभूत सुविधाओं में सुधार,संवर्धित मानव विकास, अधिकारों और दावों तक पहुंच और व्यापक समाजिक गतिशीलता सहित मॉडल ग्राम विकास करने के उद्देश्य से सांसद आदर्श ग्राम योजना लॉन्च की गई है। इस योजना में वित्तीय समावेश, डिजीटल संरचना का सृजन और स्वच्छ भारत अभियान को भी शामिल किया गया है। मैंने केंद्रीय विश्वविद्यालयों से कम से कम पांच ग्रामों से शुरुआत करके प्रत्येक ग्राम को मॉडल ग्राम में परिवर्तित करने का आह्वान किया है। अपनाए गए ग्रामों से संबंधित व्यापक मसलों की श्रृंखला के समाधान जुटाने के लिए आप मानव संसाधन और विशेषज्ञों का आयोजन करें। इस दिशा में आपके द्वारा किए गए प्रयास भारत में प्रसारित होंगे जो प्रगतिशील और समान होंगे। इससे हमारा लोकतंत्र उपलब्धियों से मजबूत होगा जैसा कि उपनिषदों में कहा गया है, जैसा कि मैं उद्धृत करता हूं

सर्वेभवन्तुसुखिन:

सर्वेसन्तुनिरामया:

सर्वेभ्रदाणिपश्चयन्तु

माकश्चिदु:खभाग्भवेत्।

जिसका अर्थ है सभी खुश रहें,सभी निरोगी रहें और सभी सुख देखें और कोई भी दुखी न हो।

देवियो और सज्जनो,

14. एक अच्छी शिक्षा प्रणाली वह है जो छात्रों को समाजिक जिम्मेदारी विकसित करने की भावना से प्रेरित करती है। शैक्षिक फ्रेमवर्क में समाज के साथ छात्रों की व्यस्तता को एक करने के लिए रास्ते ढूंढने चाहिए। उदाहरण के लिए उच्चतर स्तर के छात्रों को समीप के सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का कार्य सौंपा जा सकता है। इससे प्राथमिक और माध्यमिक स्तरों पर अध्यापकों की विद्यमान कमी को पूरा करने में सहायता मिलेगी और प्रशिक्षण व्यवसाय में प्रवेश पाने की इच्छा उत्पन्न होगी। छात्र समुदाय आधारित परियोजनाओं को आरंभ करने के लिए भी नियुक्त किए जा सकते हैं। वे समस्याओं की पहचान कर सकते हैं और अपने आप को समाधान ढूंढने संबंधी अनुसंधान में भी लगा सकते हैं। इस प्रकार के उपायों से छात्रों और सार्थक मनुष्यों में विश्वास पैदा होगा जो अपने दृढ़ विश्वास और उदाहरण से दूसरों को प्रेरित कर सकते हैं।

15.मैं एक बार फिर से स्नातक कर रहे छात्रों को बधाई देता हूं और उनके लिए एक सफल भविष्य की कामना करता हूं। मैं इस विश्वविद्यालय के प्रबंधन और संकाय को बधाई देता हूं। ईश्वर उनके प्रयासों को तीव्र करे। मैं महात्मा गांधी के इन शब्दों से समापन करता हूं:

‘हम समाज में जो परिवर्तन देखना चाहते हैं उसे अपने अंदर लाना चाहिए।’

धन्यवाद।

जयहिन्द।

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