केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

कासरगोड, केरल : 18.07.2014

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1. केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में भाग लेने के लिए आज यहां आना मेरे लिए प्रसन्नता का अवसर है। मुझे कासरगोड़ में आकर खुशी हो रही है। यह मालाबार क्षेत्र में स्थित है जो बहुत सामाजिक-ऐतिहासिक महत्त्व का क्षेत्र है। यह मध्य युग के दौरान महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था जहां अरब तथा यूरोप के व्यापारी आते रहते थे। भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान, इस क्षेत्र ने हमें पांजासी राजा, केरल गांधी के नाम से मशहूर केलप्पाजी तथा के.पी. केशवन जैसे स्वतंत्रता सेनानी दिए।

2. इसके स्वर्णिम भूतकाल के बावजूद यह क्षेत्र धीरे-धीरे विकास के मामले में अन्य क्षेत्रों से पिछड़ता चला गया है। अपनी विरासत के अनुरूप विकास के केंद्र के रूप में अपना उचित स्थान पाने के उद्देश्य से किए गए प्रयासों में एक प्रयास, वर्ष 2009 में इस केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करना था। एक दिशा में पश्चिमी घाट तथा दूसरी दिशा में मालाबार तटक्षेत्र से घिरा हुआ कासरगोड उच्च शिक्षा के लिए सुंदर तथा शांत परिवेश उपलब्ध कराता है।

3. केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय ने अपने अकादमिक कार्यकलापों की शुरुआत दो स्नातकोत्तर कार्यक्रमों से करने के लिए बुनियादी ढांचे तथा सहायक सुविधाओं की शुरुआती कमियों का सामना किया है। अब इसके तहत छह स्कूल, 17 शैक्षणिक एवं अनुसंधान विभाग, 600 से अधिक विद्यार्थी और 100 संकाय सदस्य हैं। यह प्रशंसनीय है कि अपने परिसर के लिए यह स्थाई जगह मिलने के दो वर्ष के भीतर ही यह संस्थान पांच अकादमिक विभागों तथा प्रशासनिक खंड को स्थानांतरित करने के लिए जरूरी न्यूनतम बुनियादी ढांचा खड़ा करने में सफल रहा है। मुझे इस क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली तेजस्विनी नदी, जिसका अर्थ है तेज, के नाम पर इस परिसर का नामकरण ‘तेजस्विनी हिल्स’ करने पर प्रसन्नता हो रही है। इस विश्वविद्यालय ने तिरुअनंतपुरम में भी एक केंद्र स्थापित किया है। राष्ट्रपति भवन में 2013 में आयोजित कुलपतियों के सम्मेलन में राज्यों की राजधानियों में अपने केंद्र स्थापित करने की सिफारिश को तेजी से कार्यान्वित करने के लिए मैं इस विश्वविद्यालय के प्राधिकारियों को बधाई देता हूं।

4. मुझे इस विश्वविद्यालय में अकादमिक कार्यक्रमों के प्रस्तावित विस्तार के बारे में जानकर खुशी हो रही है। यहां पर एक शास्त्रीय भाषा केंद्र की परिकल्पना की गई है। वर्ष 2013 में मलयालम के शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त करने के बाद मुझे विश्वास है कि इस तरह के केंद्र से स्थानीय भाषा, साहित्य तथा संस्कृति के विभिन्न पहलुओं में अनुसंधान के लिए उपयोगी मंच उपलब्ध होगा। एक औषधि तथा जन स्वास्थ्य स्कूल की भी योजना बनाई गई है। कासरगोड में ’एन्डोसल्फान’ की दु:खद दुर्घटना की पृष्ठभूमि में यह एक स्वागत योग्य पहल है। इस स्कूल को, विशेष रूप से सामुदायिक स्वास्थ्य एवं वहनीय चिकित्सा पर जोर देते हुए, सभी चिकित्सा पद्धतियों में उच्च अध्ययन एवं अनुसंधान का मंच होना चाहिए।

5. आज अपने प्रथम बैच के विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान करते हुए केरल के केंद्रीय विश्वविद्यालय ने निरंतर विकास की अपनी यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव हासिल किया है। वास्तव में यह विद्यार्थियों तथा इस पूरे विश्वविद्यालय समुदाय के लिए गौरव, प्रसन्नता, संतुष्टि तथा परितोष का क्षण है। मैं आप में से उन सभी को बधाई देता हूं जो इससे जुड़े हैं तथा जिनका विद्यार्थियों की सफलता में सहयोग है। दीक्षांत समारोह शिक्षा के उद्देश्य तथा व्यक्ति और राष्ट्र के विकास में इसकी भूमिका के बारे में आत्मनिरीक्षण का समय होना चाहिए।

प्यारे विद्यार्थियो,

6. भारत एक उभरती हुई विश्व शक्ति है। परंतु इस देश में आज भी बहुत से लोग बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं। हमारे देश की सफलता गरीबी, अभाव तथा पिछड़ेपन के अभिशापों के विरुद्ध लड़ाई में सभी सकारात्मक ताकतों को एकजुट करने में निहित है। आपको मिल रही उच्च शिक्षा के कारण आपको विशिष्ट हैसियत प्राप्त है। विशिष्ट हैसियत के साथ बड़ी नैतिक जिम्मेदारी भी आती है। आपकी सफलता परिवर्तन का कारक बनने में तथा लोगों की कठिनाइयों और कष्टों को कम करने में उत्प्रेरक बनने में निहित होगी।

7. व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा होना अच्छा है। परंतु जीवन का उद्देश्य ‘इसी से शुरू और इसी पर खत्म’ नहीं होना चाहिए। अपने निजी लक्ष्यों की दिशा में प्रयास करते हुए आपको सदैव बड़ी तस्वीर, बड़े उद्देश्य, बड़े लाभ पर नजर रखनी चाहिए। अपने निजी उद्देश्यों और बड़े लाभ को एक समग्र उद्देश्य मानें न कि अलग-अलग। स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा तथा परार्थवाद के अभिन्न संबंध पर जोर देते हुए कहा था, ‘‘क्या आप दूसरों के प्रति संवेदना महसूस करते हैं? यदि हां तो आप एकात्मता की ओर बढ़ रहे हैं। यदि आप दूसरे के प्रति संवेदना महसूस नहीं करते तो आप भले ही आप इस पृथ्वी पर पैदा हुए सबसे प्रबुद्ध शख्सियत हों, आप कुछ नहीं हैं; आप केवल शुष्क बुद्धिजीवी हैं और आप वही रहेंगे।’’ सदैव इस महान राष्ट्र के जिम्मेदार नागरिक रहें तथा भावी पीढ़ी को प्रेरित करने वाले आदर्श बनें।

8. जहां विद्यार्थी इस देश का भविष्य हैं वहीं शिक्षक उन्हें संवारते हैं। मैं सार्वजनिक जीवन में आने से पहले शिक्षक था। मुझे मालूम है कि इस महान पेशे का हिस्सा बनना कितना परितोषकारक होता है। हमारी कहावत, ‘माता पिता गुरु दैवम्’ में शिक्षक को उच्च स्थान पर पदस्थापित किया है। शिक्षक ऐसा अनुकरणीय जीवन जीते थे जो उन्हें प्राप्त श्रद्धा के अनुरूप था। भारत को आज ऐसे बहुत से शिक्षकों की जरूरत है जो न केवल शिक्षण तथा अपने विद्यार्थियों के प्रति समर्पित हों बल्कि वह हमारे समाज के नैतिक ताने-बाने का निर्माण करने की निस्वार्थ भाव से भी प्रेरित हों।

9. हमारे विश्वविद्यालयों में अच्छे शिक्षकों की कमी की समस्या है। हमारे सामने दोहरी चुनौती है—शिक्षकों के खाली पदों को भरना तथा सर्वोत्तम प्रतिभा को आकर्षित करना। गुणवत्ता को नजरअंदाज किए बिना, इन रिक्तियों को भरने के लिए अनुसंधान संस्थानों, उद्योग अथवा विदेशों से अल्प-काल के आधार पर सुप्रसिद्ध संसाधनों की नियुक्ति जैसे नवाचारी उपाय अपनाने होंगे। संकाय को संगोष्ठियां और कार्यशालाओं में भाग लेने, सहयोगात्मक अनुसंधान शुरू करने तथा अनुसंधान प्रकाशनों में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करके उनकी गुणवत्ता में सुधार करना होगा। यह कहना आवश्यक नहीं है कि हमारी उच्च शिक्षा सेक्टर के उन्नयन के लिए संकाय के स्तर में सुधार करना अत्यावश्यक है।

मित्रो,

10. नामचीन सर्वेक्षणों के अनुसार विश्व के सर्वोत्तम 200 विश्वविद्यालयों की सूची में भारतीय विश्वविद्यालयों का नाम नहीं है। यद्यपि एशियाई अथवा ‘ब्रिक्स’ देशों के बीच अथवा कुछ शाखाओं में हमारे संस्थान उच दर्जे पर रखे जाते हैं परंतु हमें इन सतही उपलब्धियों को बुनियादी सफलता तक पहुंचाना होगा। अब रेटिंग प्रक्रिया पर अधिक ध्यान देने के कारण, मुझे विश्वास है कि अगले एक या दो वर्षों में कुछ भारतीय संस्थान सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल होंगे। भले ही हाल ही में स्थापित आपका विश्वविद्यालय इस दौड़ में अभी शामिल न हो, परंतु आपको प्रगति करते रहना होगा जिससे आप शीघ्र ही अग्रणी संस्थानों का स्तर प्राप्त कर लें।

11. अकादमिक विकास के लिए बहुसूत्रीय कार्यनीति अपनानी होगी। इसके लिए स्मार्ट-क्लासरूम जैसी आधुनिक भौतिक अवसंरचना उपलब्ध करानी होगी। विचारों और ज्ञान के आदान-प्रदान तथा अकादमिक सहयोग के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी नेटवर्कों का उपयोग करना होगा। इस तरह के नेटवर्कों के माध्यम से ई-सामग्री को नियमित पाठ्यचर्या में एकीकृत करना होगा। उद्योग के साथ संबंधों को सशक्त बनाने के लिए एक समर्पित सेल स्थापित करना होगी। अकादमिक-उद्योग सहयोग के लिए अध्येतावृत्तियों और पीठों की स्थापना, उद्योगों से अतिथि वक्ता, संयुक्त अकादमिक-उद्योग अनुसंधान मार्गदर्शक, अकादमिक कार्यक्रम तैयार करने के लिए उद्योग विशेषज्ञों की सेवा लेना जैसे विभिन्न सहयोगी प्रयासों को शुरू करना होगा। पूर्व छात्रों को विभिन्न क्षमता में जैसे कि शासन व्यवस्था में, पाठ्यक्रम डिजायन विशेषज्ञ के रूप में अथवा विद्यार्थियों के मार्गदर्शक के रूप में सहयोग देना होगा। मुझे विश्वास है कि इस विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र आने वाले समय में इसके कार्याकलापों में सार्थक भूमिका निभाएंगे।

12. अनुसंधान पर उचित जोर देना होगा। स्थानीय समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने के लिए अनुसंधान का जोर स्थानीय बातों पर होना चाहिए परंतु इसकी गुणवत्ता विश्वस्तरीय होनी चाहिए। विश्वविद्यालयों को, जमीनी नवान्वेषकों को अपने विचारों को ठोस उत्पादों में परिवर्तित करने की सुविधा प्रदान करते हुए उन्हें प्रोत्साहित करना होगा। इस वर्ष कुलपतियों के सम्मेलन के दौरान, मैंने सर्वोत्तम विश्वविद्यालय, सर्वोत्तम नवान्वेषण तथा सर्वोत्तम अनुसंधान के लिए तीन वार्षिक कुलाध्यक्ष पुरस्कार शुरू किए थे। मैं चाहूंगा कि आप सहित, सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, उनके संकाय सदस्य और विद्यार्थी इस सम्मान को प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करें। मुझे उम्मीद है कि ये पुरस्कार केंद्रीय विश्वविद्यालय के बीच प्रतिस्पर्धा तथा सहयोग की भावना का समावेश करेंगे।

13. इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं। मैं एक बार फिर आप सभी का इस सुंदर अवसर पर अभिवादन करता हूं। मैं आपके प्रयासों के लिए भी आपको शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद! 
जय हिंद।

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