जुबिन मेहता को द्वितीय टैगोर सांस्कृतिक सद्भावना पुरस्कार 2013 प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 05.09.2013
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शिक्षक दिवस के अवसर पर आपको संबोधित करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। भारत के शिक्षक समुदाय के समर्पण के प्रति सम्मान व्यक्त करने तथा यह समारोह मनाने के अवसर पर मुझे आपके बीच आकर खुशी हो रही है। इस दिन, हम इन राष्ट्रीय पुरस्कारों से आप में से उन लोगों को सम्मानित करते हैं, जिन्होंने स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में शानदार योगदान दिया है। मैं आपको बधाई देता हूं, अपने देश के सभी शिक्षकों का अभिनंदन करता हूं तथा आपकी सेवाओं तथा प्रतिबद्धता के लिए पूरे देश की ओर से कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। मैं इस अवसर पर, शिक्षा प्रदान करने की दिशा में प्रशंसनीय पहलों के लिए समर्पित निजी तथा गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों की भी सराहना करता हूं। भारत की जनता आधुनिक भारत के निर्माण में आपके योगदान को मूल्यवान मानती है।
2. यह उचित ही है कि मेरे प्रख्यात पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्म जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह आधुनिक भारत के एक महानतम् दार्शनिक, इस महान शख्सियत को यह हमारे देश की श्रद्धांजलि है। वह उन शिक्षाविदों के मार्गदर्शक तथा श्रद्धेय पथ-प्रदर्शक थे जिन्होंने आधुनिक भारत की शैक्षणिक प्राथमिकताओं को निर्धारित किया था। उनका मानना था कि ‘‘शिक्षा का उद्देश्य केवल सूचना प्राप्त करना नहीं है—यद्यपि यह महत्त्वपूर्ण है, अथवा तकनीकी कौशल प्राप्त करना नहीं है—यद्यपि यह आधुनिक समाज में अनिवार्य है, बल्कि ऐसी मानसिक अभिरुचि, ऐसी तार्किक प्रवृत्ति, ऐसी लोकतांत्रिक भावना का विकास करना है जो हमें एक जिम्मेदार शहरी बनाए’’ इन प्रेरणादायक शब्दों में शिक्षा के प्रति उनके दृष्टिकोण का सार निहित है। यह हमें आज भी निरंतर आत्मचिंतन करने तथा बदलते समय के अनुसार अपनी शैक्षणिक सामग्री तथा पद्धति को नया रूप देने के लिए नवान्वेषण की जरूरत की याद दिलाता है। हमें, सदैव अपने बच्चों को आत्मविश्वास से परिपूर्ण, आत्मनिर्भर तथा जिम्मेदार भारतीय बनाने के बुनियादी लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए।
3. देवियो और सज्जनो, अच्छी शिक्षा, नि:संदेह किसी भी प्रबुद्ध समाज की बुनियाद होती है। यह ऐसी आधारशिला होती है, जिस पर एक ऐसा प्रगतिशील, लोकतांत्रिक समाज खड़ा होता है—जिसमें कानून के शासन का प्रभुत्व हो, जहां अत्यंत उच्च स्तर का शिष्टाचार तथा दूसरे के और अपने खुद के अधिकारों के प्रति सम्मान मौजूद हो। अच्छी शिक्षा में भिन्न नजरियों तथा दृष्टिकोणों के प्रति सहनशीलता की आदत का समावेश होता है। अच्छी शिक्षा हमें आत्मिक शांति प्रदान करती है। यह हमें उन लोगों से विवाद के बजाय स्वस्थ बहस में अपने ज्ञान का उपयोग करने की प्रेरणा देती है जो हमसे असहमत हैं। अच्छी शिक्षा हमें मानव की भलाई के लिए, न कि उसके विरुद्ध, अपने ज्ञान का उपयोग करने की शिक्षा देती है। किसी भी समाज को तब ‘उन्नत’ कहा जा सकता है जब इसके सदस्य मतभेदों का समाधान समझदारी से करने तथा भाईचारा कायम करने के लिए इच्छुक हों।
4. अपनी आजादी प्राप्त करने के बाद से, भारत ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवान्वेषण तथा आर्थिक विकास के क्षेत्र में काफी उपलब्धियां हासिल की हैं। परंतु हम देखते हैं कि अपनी उपलब्धियों के बावजूद हम यह दावा नहीं कर सकते कि हम सही मायने में एक विकसित समाज बन पाए हैं। विकास केवल कारखानों, बांधों और सड़कों से नहीं होता है। मेरे विचार में, विकास का संबंध लोगों से, उनके मूल्यों से तथा अपनी आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से है। जब हम विकास की ओर अग्रसर हैं, तब हमारे मूल्यों के निर्माण में सर्वांगीण शिक्षा को निर्णायक भूमिका निभानी चाहिए। मैं यहां, नैतिकता की दिशा के पुन: निर्धारण में शिक्षकों की प्रमुख भूमिका देखता हूं। शिक्षकों को मातृभूमि के प्रति प्रेम; कर्तव्य का पालन; सभी के प्रति करुणा; बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं के लिए सम्मान; जीवन में ईमानदारी; आचरण में आत्मसंयम; कार्यों में उत्तरदायित्व तथा अनुशासन के, सभ्यतागत मूल्यों को आत्मसात् करने में युवाओं की सहायता करनी होगी।
5. एक समय था जब हमारे यहां तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा तथा ओदांतपुरी जैसे प्रसिद्ध शिक्षापीठ मौजूद थे। यहां दूर-दूर से विद्वान आते थे। इन विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले महान चिंतकों ने हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली के लिए गौरवपूर्ण स्थान बनाया था। हमें नेतृत्व की यह हैसियत फिर से प्राप्त करनी होगी। इस दिशा में मार्गदर्शन के लिए हम शिक्षकों की ओर देखते हैं।
देवियो और सज्जनो,
6. मुझे विश्वास है कि अब संपूर्ण शिक्षक समुदाय में पाठ्यचर्या को परिमार्जित करने तथा पढ़ाने और सीखने के लिए नवीनतम, प्रासंगिक तथा कारगर पद्धतियां सृजित करने हेतु, मौजूदा विधियों के अनुकूलन के प्रति अधिक जागरूकता आई है। हमें गुणवत्तायुक्त शिक्षा तथा शैक्षणिक निवेश के परिणामों के सतत् मूल्यांकन के लिए प्रणालियां स्थापित करनी होंगी। इस प्रक्रिया में समुदाय तथा अभिभावकों की सहभागिता अनिवार्य होगी, जिससे सभी भागीदार अपेक्षित परिणाम सुनिश्चित कर सकें। बेहतर अंत:दृष्टि प्राप्त करने के लिए जिज्ञासा की सुदृढ़ भावना एक प्रमुख तत्त्व है तथा इन सब से एक प्रबुद्ध, स्वतंत्र चेता तथा प्रगतिशील व्यक्ति का निर्माण करने में योगदान मिलता है।
7. अपने विकासात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समावेशी नजरिए को अपनाया जाना अत्यंत जरूरी है। हमें भारत के हर-एक हिस्से में रहने वाले हमारे बच्चों, उनके अभिभावकों तथा समुदायों को सशक्त करना है। उन्हें उसी गति से अपने जीवन को बदलने का अवसर और क्षमता प्रदान की जानी चाहिए, जिसे वे अपने लिए सुविधाजनक तथा हितकर मानते हों। एक प्रमुख लक्ष्य साक्षरता में पुरुष-महिला अंतर को समाप्त करना है। किसी बालिका को शिक्षा से वंचित देखने से अधिक दुखदाई कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस अवसर पर इस ध्येय वाक्य को फिर से दोहराना चाहूंगा, ‘‘सभी ज्ञान के लिए तथा ज्ञान सभी के लिए।’’
8. हम जानते हैं कि विद्यार्थी अपने शिक्षकों को ‘आदर्श’ मानते हैं। हम भारतीय, उस पावन परंपरा के उत्तराधिकारी हैं, जिसमें हमारे गुरुओं ने, संतों ने तथा ऋषियों ने नि:स्वार्थ भाव से, हमारे मानस को पोषित किया तथा हमारे चिंतन को दिशा प्रदान की। ज्ञान प्रदान करना, सदियों से एक विश्वास तथा श्रद्धा के माहौल में किया जाने वाला बहुत ही व्यवस्थित, श्रमसाध्य तथा पावन कार्य रहा है। हमारा यह विश्वास है कि जहां हमारे माता-पिता हमें जन्म देते हैं, हमारे गुरु हमारे व्यक्तित्व को तथा हमारी आकांक्षाओं को मूर्त रूप प्रदान करते हैं।
9. यूनानी लेखक और दार्शनिक, निकोस कज़ांट ज़ाकिस, ने कहा था, ‘‘सच्चे शिक्षक वह होते हैं जो खुद का ऐसे पुल के रूप में प्रयोग करते हैं जिसे पार करने के लिए वे अपने विद्यार्थियों को आमंत्रित करते हैं; तब उनके पार हो जाने के बाद, वे खुशी-खुशी टूट जाते हैं और उन्हें अपना खुद का (पुल) तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।’’ हमारे शिक्षा संस्थानों में ऐसे शिक्षक मौजूद हैं जो युवा मस्तिष्कों के विचारों को दिशा प्रदान कर सकते हैं। ऐसे शिक्षक अपने वचनों, कार्यों तथा कर्मों द्वारा विद्यार्थियों को प्रेरित करते हैं तथा उन्हें उपलब्धियों तथा चिंतन के ऊंचे स्तर तक पहुंचाते हैं। वे अपने विद्यार्थियों में सही मूल्यों का समावेश करने में सहयोग करते हैं। ऐसे प्रेरित शिक्षकों को अपने ज्ञान, मनीषा तथा दर्शन को अधिक से अधिक छात्रों के साथ बांटने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
10. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर से शिक्षकों का आह्वान करता हूं कि वे भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जाने वाले मार्ग पर दृढ़ता से डटे रहें।
11. मैं आप सभी का फिर से धन्यवाद करता हूं और आपकी सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!