जम्मू विश्वविद्यालय के 14वें दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण का सारांश
जम्मू और कश्मीर : 01.09.2014
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मुझे जम्मू विश्वविद्यालय के 14वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर आज आपके बीच उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। मैं सभी स्नातक विद्यार्थियों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे आने वाले वर्षों में अपनी चुनी हुई आजीविका में अत्यंत श्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे।
2. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि जम्मू विश्वविद्यालय अपने सभी कार्यों में तेजी से प्रगति कर रहा है। विश्वविद्यालय अपने मुख्य परिसर,सुदूर परिसर, संबद्ध कॉलेजों और दूरवर्ती शिक्षा निदेशालय के माध्यम से मानविकी,व्यवसाय अध्ययन, जीव विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणितीय विज्ञान, शिक्षा,विधि, इंजीनियरी और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में अनेक कार्यक्रम चला रहा है। ऐसे व्यापक परिदृश्य में विद्यार्थी स्वाभाविक रूप से अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग कर सकेंगे और उत्कृष्ट प्रदर्शन करेंगे। विश्वविद्यालय‘ए लार्ज इयोन कोलीडर एक्सपेरिमेंट’ (एलिस) सहयोग के माध्यम से विश्वस्तरीय अनुसंधान में भी शामिल है तथा विश्व प्रयोगशाला के‘यूरोपियन कॉउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च’, जेनेवा के लार्ज हैड्रोन कॉलीडर एक्सपेरिमेंट में शामिल भारतीय टीम का हिस्सा है। भद्रवाह के अपने परिसर में नेशनल एप्पल जर्मप्लाज्म रिपोजिटरी की स्थापना देश के एक महत्वपूर्ण जेनेटिक संसाधन के संरक्षण की दिशा में वास्तव में एक अहम कदम है। मैं विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के विश्वविद्यालय अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्कृष्टता प्रोत्साहन के अंतर्गत देश के उनतीस विश्वविद्यालयों में सूचीबद्ध किए जाने पर विश्वविद्यालय को बधाई देता हूं। विश्वविद्यालय ने पहली बार जम्मू और कश्मीर में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 101वें सत्र का भी आयोजन किया है। ये उपलब्धियां नेतृत्व के गुण के साथ-साथ शिक्षकों,अनुसंधान और तकनीकी कर्मचारियों, विद्यार्थियों तथा अन्य सभी भागीदारों के अथक प्रयासों के प्रति सम्मान है।
3. यह देखते हुए कि प्रौद्योगिकी और इंटरनेट ने वास्तव में अध्यापन-अभिगम प्रक्रिया में क्रांति पैदा कर दी है,राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क के लेवल 1स्थान पर उपस्थिति के रूप में विश्वविद्यालय की पहचान उल्लेखनीय है। वास्तव में यह संतोष की बात है कि जम्मू विश्वविद्यालय ने शैक्षिक क्षेत्र में अपना एक स्थान बना लिया है। इन उपलब्धियों के बावजूद, आप आत्मसंतुष्ट होने और अपनी पुरानी उपलब्धियों पर निर्भर रहने का जोखिम सहन नहीं उठा सकते। अन्य बातों के साथ-साथ,आपसे शिक्षा के क्षेत्र में भी वैश्विक व्यवस्था में ऐसी उत्कृष्टता के लिए निरंतर प्रयास करना होगा जो गतिशील,निरंतर परिवर्तनशील हो तथा मध्यम स्तर को स्वीकार नहीं करती हो।
देवियो और सज्जनो,
4. भारत में उच्च शिक्षा आज भारी चुनौतियों का सामना कर रही है। व्यापक आधार पर,बारहवीं योजना से विस्तार, उत्कृष्टता और समता पर बल देते हुए तीव्र और समावेशी विकास हासिल करने के एक साधन के रूप में शिक्षा को उच्च प्राथमिकता दी गई है। उच्च शिक्षा में96 प्रतिशत हिस्से वाले राज्य स्तरीय संस्थानों के गुणवत्ता उन्नयन को उच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
5. उच्च शिक्षा में नवान्वेषण की भूमिका एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यद्यपिइस क्षेत्र में अनेक नीतिपूर्ण पहलें की गई हैं;देश में उच्च शिक्षा ढांचे को पुन: सशक्त और बढ़ावा देने के लिए इन्हें प्रभावी रूप से कार्यान्वित करना होगा। एक अवधारणा जिसने ध्यान आकर्षित किया है और जो उच्च शिक्षा में रूपांतरकारी है,वह है मेटा विश्वविद्यालय। विद्यार्थियों को पूरा लचीलापन दिया जाना चाहिए तथा अन्य विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में उपलब्ध विशेषज्ञता,अध्ययन पाठ्यक्रमों तथा ढांचागत सुविधाओं का लाभ प्रदान करना चाहिए। इस प्रकार जम्मू विश्वविद्यालय के प्रबंधन कार्यक्रम में प्रविष्ट विद्यार्थी को श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय,कटरा के दर्शनशास्त्र पाठ्यक्रम हासिल करने में सक्षम होना चाहिए। इस प्रकार का लचीलापन नवान्वेषण के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करेगा तथा अन्तर्विधात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देगा।
6. एक अन्य परस्पर जुड़ा हुआ पहलू नवान्वेषण और उद्यमिता है। प्रगति और विकास प्रक्रिया में नवान्वेषण की प्रमुखता को समझते हुए, 2010-20को नवान्वेषण का दशक घोषित किया गया है। भारत की विकास, प्रौद्योगिकी और नवान्वेषण नीति 2013में मुख्यत: निजी क्षेत्र की सहभागिता और अधिक शोधपत्रों के प्रकाशन,विज्ञान और प्रौद्योगिकी में लैंगिक समानता प्राप्त करके अनुसंधान और विकास के जरिए नवान्वेषण को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया गया है। इसलिए विश्वविद्यालय की तीसरी धुरी; पहली दो अध्ययन और अनुसंधान है,महत्वपूर्ण बन गई है। यह विश्वभर में सुविदित है कि शिक्षा-उद्योग संयोजन के रूप में उद्यम विकास भारत में अभी भी शैशव अवस्था में है। कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा भारतीय प्रबंधन संस्थानों ने वर्षों के दौरान प्रौद्योगिकी आधारित क्षेत्रों में नवान्वेषण,अनुसंधान और उद्यमशील गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए औपचारिक विकास केंद्र स्थापित किए हैं। आज विश्वविद्यालयों को नवान्वेषण के प्रेरक बनने की आवश्यकता है। उनका जोर उद्योग और सरकार के साथ सहयोगात्मक संबंधों पर होना चाहिए। विश्वविद्यालयों में ये उद्यमिता गतिविधियां, संविदा अनुसंधान, परामर्श, पेटेंटिंग, लाइसेंसिंग;विस्तार,शुरुआत, कंपनियों के विकास इत्यादि जैसे अनेक प्रकार की हो सकती हैं। यह आवश्यक है कि विश्वविद्यालय विद्यार्थियों तथा शिक्षाविदों के बीच उद्यमशीलता प्रोत्साहित करने का सही वातावरण निर्मित करें।
7. जम्मू और कश्मीर राज्य 9 विश्वविद्यालयों तथा300 से ज्यादा कॉलेजों के साथ देश के एक ज्ञान केंद्र के रूप में उभर रहा है। ये सभी संस्थान अध्ययन और अनुसंधान में सहयोग करके तथा साझी अनुसंधान सुविधाएं स्थापित करके लाभान्वित होंगे। जम्मू विश्वविद्यालय को विशेष स्थानीय और क्षेत्रीय आवश्यकताओं से संबंधित उभरते हुए अनुसंधान क्षेत्रों की तलाश करने तथा उद्योग और अनुसंधान संगठनों के साथ सहयोग करने के लिए विद्वानों और संकाय सदस्यों को सक्षम बनाने हेतु अनुसंधान समूह स्थापित करने के लिए अग्रसर होना चाहिए। कुछ प्रमुख क्षेत्र बागवानी,पुष्प कृषि, पर्यटन, बहुमूल्य रत्न, हस्तशिल्प आदि होंगे। मुझे विश्वास है कि बाद में विश्वविद्यालय के इन्हें बनाए रखने के आवश्यक माहौल सहित विश्व स्तरीय अत्याधुनिक अनुसंधान और नवान्वेषण सुविधाएं होंगी।
8. परंतु सबसे महत्वपूर्ण, विद्यार्थियों और संकाय की गुणवत्ता,उत्साह और प्रवृत्ति होगी जो समय की रेत पर पदचिह्न तय करेगी। सभी स्नातक विद्यार्थी यह भली-भांति याद रखें कि गतिशील,समृद्ध, समतापूर्ण, सद्भावनापूर्ण और समावेशी भारत की हमारी संकल्पना के लिए वे महत्वपूर्ण हैं। इस संदर्भ में मेरे लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कथन का उल्लेख करने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता:
‘‘आप भविष्य की उम्मीद हैं। कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने के बाद इस देश के गरीब लोगों का नेतृत्व करने के लिए सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करने के लिए आपका आह्वान किया जाएगा। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप जैसे विद्यार्थियों में दायित्व की भावना पैदा हो और आप इसे ठोस रूप में दर्शाएं।’’
मैं एक बार पुन: आप सभी के भावी प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
जय हिन्द !