इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के रजत जयंती समारोह में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
नई दिल्ली : 19.11.2012
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मुझे श्रीमती इंदिरा गांधी की स्मृति में 25 वर्ष पहले स्थापित, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के रजत जयंती समारोह का उद्घाटन करते हुए प्रसन्नता हो रही है। यह केन्द्र, एक ऐसे भारत के स्वप्न और संकल्पना को साकार करना चाहता है जहां सभ्यतागत मूल्य, जीवन की गरिमा, प्रकृति के प्रति सम्मान और विकास का साहचर्य हो।
कला और उसके समस्त स्वरूप श्रीमती गांधी को प्रिय थे। उन्होंने कहा था, ‘‘हम जानते हैं कि आज भारत जो है वह इसलिए है क्योंकि यहां कला लोगों के जीवन के हिस्से के रूप जीवित थी।’’ उन्होंने यह भी कहा था कि वास्तव में कोई भी सभ्यता संगीत, नृत्य और कला के बिना नहीं हो सकती; क्योंकि कोई भी व्यक्ति इनके बिना पूरी तरह, जीवंत रूप से सक्रिय नहीं रह सकता परंतु उनके विचार में विरासत केवल प्रशंसा करने या उससे प्रेरणा ग्रहण करने के लिए ही नहीं है बल्कि समाजों तथा उनकी सांस्कृतिक रचनाओं को पूरी तरह जानने के एक माध्यम के तौर पर उनका गहराई से अध्ययन भी होना चाहिए।
इसलिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की एक ऐसे केंद्र के रूप में स्थापना की गई थी जो कला के सभी रूपों को उनके समस्त आयामों के साथ शामिल कर सके। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गांधी ने इस केन्द्र का उद्घाटन किया था, जिन्होंने जोर देकर कहा था कि ‘‘इस केन्द्र के सम्मुख बहुत चुनौतियां हैं... इसे प्राचीनता की सुरक्षा और उसके संरक्षण के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना होगा।’’ श्री आर. वेंकटरमन, श्री पी.वी. नरसिम्हा राव और श्री एच.वाई. शारदा प्रसाद जैसे अन्य विख्यात व्यक्तियों सहित, वह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के संस्थापक ट्रस्टी भी थे।
इस प्रकार, केन्द्र के संकल्पनात्मक ढांचे में कला के सभी विविध रूपों को सम्मिलित किया गया और एक सर्वांगीण और बहुविधात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से अध्ययन करने का प्रयास किया। इसने, उस समय मौजूद द्विअंगीय दृष्टिकोण को चुनौती दी जिसमें परंपरागत को आधुनिक से, मौखिक को लिखित से, शहरी को ग्रामीण से तथा लोक को शास्त्रीयता रूपों से पृथक रखा गया था। उस समय के लिहाज से यह कला और संस्कृति के अध्ययन की मौजूदा ज्ञान मीमांसा के प्रतिरूपों में बड़ा बदलाव था। यह केंद्र, ग्रंथ परंपराओं में निहित भारतीय विचारधारा और संस्कृति की मूलभूत संकल्पनाओं पर ध्यान दे रहा है तथा इन संकल्पनाओं के शब्दकोशों और शब्दावलियों का प्रकाशन कर रहा है। इसने भारतीय कला और सौंदर्य पर कुछ उल्लेखनीय ग्रंथों का संकलन, संपादन और अनुवाद किया है। लघु स्तरीय समाजों की जीवंत परंपराओं, क्षेत्र एवं समुदाय विशिष्ट अध्ययनों, जीवनशैलियों और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों, उनके ज्ञान, परंपराओं, कलाओं व शिल्पों और विश्वासों का अध्ययन किया गया है तथा सांस्कृतिक अस्मिता, शिक्षा, संघर्ष के समाधान और सतत् विकास के मुद्दों के साथ उन्हें जोड़ने की दृष्टि से इनका प्रलेखन किया गया है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, आधुनिक विज्ञानों तथा कलाओं और संस्कृति के बीच तालमेल के अन्तर को समाप्त करने के लिए कलाओं तथा दर्शन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में वर्तमान विचारों के बीच संवाद को प्रोत्साहित करने का एक रचनात्मक मंच भी प्रदान कर रहा है। विभिन्न क्षेत्रों के कुछ अत्यंत प्रतिभावान लोग वर्षों से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कार्यों के साथ जुड़े रहे हैं। इस केन्द्र ने दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्व एशिया और यूरेशिया पर प्रमुख कार्यक्रमों की भी शुरुआत की है तथा बिखरी हुई पांडुलिपियों, स्लाइडों, छायाचित्रों आदि का संग्रह करने के लिए विश्व-भर की अनेक संस्थाओं और सरकारी पुस्तकालयों के साथ सहयोग किया है।
मैं, यहां श्रीमती इंदिरा गांधी के उन शब्दों को उद्धृत करना चाहूंगा, जब उन्होंने कहा था, ‘‘यदि आप भारत के विषय में कुछ जानना चाहते हैं तो आपको सभी सुने या पढ़े हुए पूर्वाग्रहों से अपने दिमाग को खाली करना होगा। भारत विशिष्ट और विशाल है... आपकी कोई भी पूर्व धारणा काम नहीं आएगी। भारत विविध है परंतु एक है; इसमें अद्भुत विविधता है परंतु यह ऐसी एकता के सूत्र के बंधा हुआ है जो अलिखित प्राचीन इतिहास में विद्यमान है।’’ इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र उस विचार प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए बहुत सी नई पहलों का अग्रदूत रहा है। संस्कृति और सांस्कृतिक अध्ययनों के प्रलेखन, संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए सबसे पहले इस केन्द्र ने आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया। इसने देश, काल, आकार, प्रकृति, ऋतु-ऋतम इत्यादि में विषय-आधारित प्रदर्शनियों का आयोजन किया है। भारतीय चिंतन के मूलभूत ग्रंथों और संकल्पनाओं पर इसके प्रकाशन, भारतीय संस्कृति की और अधिक सार्थक समझ विकसित करने के लिए बहुत ही जरूरी नए दृष्टिकोणों को विकसित निर्मित करने के प्रयास को दर्शाते हैं।
आज, जब भारत ठोस आर्थिक प्रगति और वैज्ञानिक विकास के द्वार पर खड़ा है, प्रगति और व्यक्ति की आंतरिक आवश्यकताओं, उसकी आध्यात्मिक जिज्ञासा और भौतिक आकांक्षाओं, प्रौद्योगिकीय प्रगति और पारिस्थितिकीय समता कायम रखने की आवश्यकता के बीच संतुलन के कारक के रूप में संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस संदर्भ में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र जैसे संस्थानों की उल्लेखनीय भूमिका है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र जैसे संस्थानों को विभिन्न भागीदारों के बीच एक रचनात्मक और सार्थक संवाद स्थापित करने तथा विकास के संवाद में सांस्कृतिक आयाम जोड़ने के निरंतर नए तरीके खोजने और पुन: निर्मित करने की जरूरत है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के वर्षों के शानदार योगदान की सराहना करते हुए, मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि राष्ट्रपति सचिवालय वर्तमान में राष्ट्रपति भवन के पुरातात्विक इतिहास, इसके निर्माण, इसकी कला और सांस्कृतिक कलाकृतियों के अनेक पहलुओं पर एक बहुस्तरीय परियोजना पर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र का सहयोग ले रहा है। मैं इस परियोजना की सफलता की कामना करता हूं।
मैं, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र को इसके अकादमिक प्रयासों के लिए भी शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूं कि भारत और विदेश दोनों जगहों के विश्वविद्यालयों और संस्थानों के साथ इसका तालमेल और अधिक बढ़ेगा। मुझे विश्वास है कि ट्रस्ट के कुशल मार्गदर्शन में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र उत्कृष्टता की अपनी यात्रा पर अग्रसर रहेगा।
जय हिंद।