हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
शिमला, हिमाचल प्रदेश : 24.05.2013
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1. आज जब मैं तीसरी बार हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के दीक्षांत संबोधन के लिए यहां उपस्थित हूं तो मुझे विद्यार्थियों में वही प्रसन्नता और उत्साह नजर आ रहा है। दीक्षांत दिवस किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण चरण की पूर्णता का प्रतीक है। मैं उन सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्होंने आज अपनी उपाधियां प्राप्त की हैं। आज के युवाओं, जिन्हें एक स्वतंत्र देश में शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है, में बहुत क्षमता है। हमारे युवाओं को यह समझना होगा कि एक लोकतंत्र के नाते उनके केवल अधिकार ही नहीं वरन् उत्तरदायित्व भी हैं।
2. हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, जो कि 1970 में स्थापित हुआ था, ने उत्तरी क्षेत्र में उच्च अध्ययन के एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में ख्याति प्राप्त की है। इस विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यक्रम के तहत् उन्तीस विभाग, अट्ठारह विशेषज्ञ केंद्र तथा एक दूरवर्ती शिक्षा एवं मुक्त अध्ययन के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र शामिल हैं। यह जानकर खुशी होती है कि यह विश्वविद्यालय एक विकल्प आधारित अंक पद्धति शुरू करने पर गंभीरता से विचार कर रही हैं जो कि ज्ञान के समन्वय के माध्यम के रूप में कार्य करेगा। अधिक बौद्धिक तथा सामाजिक रूप से प्रासंगिक अध्ययन की दिशा में प्रयास के लिए इस विश्वविद्यालय ने विजन-2020 दस्तावेज तैयार किया है। मुझे विश्वास है कि संपूर्ण हिमाचल विश्वविद्यालय समुदाय इसे और ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ कार्य करता रहेगा।
3. मित्रो, शिक्षा, राष्ट्रीय प्रगति, मानव सशक्तीकरण तथा बदलाव के लिए एक आवश्यक उपादान है। महिलाएं एवं बच्चों के विरुद्ध अपराध की बढ़ती घटनाओं के कारण यह जरूरी हो गया है कि उनकी सुरक्षा और हिफाजत सुनिश्चित करने के लिए कारगर उपाय किए जाएं। इससे हमारे समाज के नैतिक हृस पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत भी महसूस होती है। हमें मूल्यों के पतन पर रोक के लिए जवाब तलाशने होंगे। हमारे विश्वविद्यालयों में युवाओं को दिशा प्रदान करने की क्षमता है। उच्च शिक्षा के इन मंदिरों को समसामयिक चुनौतियों का सामना करने के लिए मार्गदर्शक का कार्य करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि युवाओं के मस्तिष्कों में मातृभूमि प्रेम, कर्तव्यों का निर्वाह, सभी के लिए करुणा; बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं और बुजुर्गों के प्रति सम्मान; जीवन में सच्चाई और ईमानदारी; आचरण में अनुशासन और आत्मसंयम तथा कार्य में जिम्मेदारी की भावना का पूरी तरह समावेश हो।
4. किसी भी देश का विकास, मुख्यत: उसकी शैक्षणिक स्थिति पर निर्भर होता है। उच्च विकास दर प्राप्त करने की हमारी कार्यनीति, गरीबी खत्म करना तथा सभी की प्रगति सुनिश्चित करना है। हमें आर्थिक विकास को अपने सभी लोगों, खासकर सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के आखरी पायदान पर मौजूद लोगों के लिए प्रासंगिक बनाना है। लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था के, समान न्याय के उच्च लक्ष्य को केवल मजबूत शिक्षा प्रणाली से ही प्राप्त किया जा सकता है। भारत के जन सांख्यिकीय ढांचे में बदलाव आ रहा है और 2025 तक दो तिहाई से अधिक भारतीयों के कामकाजी उम्र में होने की संभावना है। इस बदलाव से लाभ उठाने के लिए हमारे युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से तैयार रहना होगा।
5. मित्रो, उच्च शिक्षा प्रणाली में मात्रा तथा गुणवत्ता का मुद्दा हमारे सामने चुनौती बना हुआ है। हमारे देश में उच्च शिक्षा अवसंरचना में 650 उपाधि प्रदाता संस्थान तथा 33000 कॉलेज शामिल हैं। इसके बावजूद हमारे पास इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अच्छे स्तर के संस्थानों की कमी है। हमें इस भावी मानवशक्ति को प्रदान करने के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा की जरूरत है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने उच्च शिक्षा के स्तर में गिरावट का उल्लेख करते हुए इसे ‘एक ऐसा प्रशांत संकट जो कि गहरे तक पैठा है’ बताया है।
6. छठी ईसवी पूर्व से 13वीं ईसवी सदी के बीच लगभग 18 सौ वर्षों के दौरान तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वलभी, सोमपुरा तथा ओदांतपुरी जैसे भारतीय विश्वविद्यालयों ने विश्व शिक्षा प्रणाली पर अपना आधिपत्य रखा। तक्षशिला में भारतीय, फारसी, यूनानी तथा चीनी सभ्यताओं का मिलन हुआ और चंद्रगुप्त मौर्य, चाणक्य, पाणिनि, सेंट थॉमस, फैक्सियन, चरक तथा डेमोक्राइटस जैसे सुप्रसिद्ध व्यक्तियों को यहां आने का अवसर मिला। इन विश्वविद्यालयों में कुशल प्रबंधन पर अध्ययन केंद्रित होने के कारण, ये प्राचीन विश्वविद्यालय विख्यात भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के मंदिर बन गए। परंतु आज, हमारे विश्वविद्यालय सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों के दर्जे में शामिल नहीं है।
7. हममें उच्च शिक्षा में अपने नेतृत्व को फिर से जागृत करने की क्षमता है। इसके लिए हमें अपने विश्वविद्यालयों को विश्व स्तरीय अकादमिक संस्थानों के रूप में विकसित करने के लिए नवान्वेषी बदलाव लाने हेतु अपने प्रयासों को तेज करना होगा। अकादमिक प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं में समुचित लचीलापन लाते हुए उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हमारे कॉलेजों में उच्च शिक्षा के 87 प्रतिशत विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं। इसलिए सम्बद्धता प्रदान करने वाले विश्वविद्यालयों को पाठ्याचार तथा मूल्यांकन में, इनकी मानीटरिंग और मार्गदर्शन में पूरी सावधानी बरतनी होगी।
8. हमारे विश्वविद्यालयों को सुगम्यता, गुणवत्ता तथा संकाय की कमी की समस्याओं के सामधान के लिए ई-शिक्षा जैसे प्रौद्योगिकीय समाधानों का प्रयोग करना होगा। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिक्षा संबंधी राष्ट्रीय मिशन इस तरह के सहयोगात्मक सूचना आदान-प्रदान के प्रयासों में सहायता प्रदान कर सकता है।
9. हमारे देश के बहुत से हिस्सों में उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी है, जिससे बहुत से अच्छे विद्यार्थी उच्च शिक्षा के अवसर से वंचित रह जाते हैं। हसके परिणाम चिंताजनक हैं। भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली विश्व में दूसर सबसे बड़ी प्रणाली है परंतु 18-24 वर्ष आयु समूह में हमारी भर्ती दर केवल 7 प्रतिशत है। जबकि इसकी तुलना में यह जर्मनी में 21 प्रतिशत और अमरीका में 34 प्रतिशत है।
10. उच्च शिक्षा तक अधिक पहुंच, खासकर दूरवर्ती क्षेत्रों में, आज की जरूरत है। सुगम्यता तथा वहनीयता समावेशिता की दिशा में जरूरी कदम है। सामाजिक-आर्थिक रूप से समस्याग्रस्त पृष्ठभूमि के मेधावी विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा को वहनीय बनाने के लिए छात्रवृत्ति, विद्यार्थी ऋण तथा स्व-सहायता स्कीमों जैसे उपाय जरूरी हैं।
11. हमें अपने स्नातकों को विश्व के सबसे अच्छे स्नातकों से प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाना होगा। इसके लिए उन्हें खुद के बारे में जानकारी, तदानुभूति, सर्जनात्मक चिंतन, समस्या-समाधान, कारगर संप्रेषण, अंतर वैयक्तिक संबंध तथा तनाव एवं भावनात्मक प्रबंधन जैसे जीवनोपयोगी कौशल सिखाने होंगे। ये कौशल किसी भी व्यक्ति के स्वस्थ विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं तथा इन्हें हमारी अकादमिक पाठ्यचर्या में उचित जगह मिलनी चाहिए।
12. मित्रो, अकादमिक संस्थानों में गुणी शिक्षकों की उपलब्धता सबसे महत्त्वूपर्ण है। उच्च शिक्षा के हमारे संस्थानों में अच्छे संकाय सदस्यों की कमी है। इससे गुणवत्ता सुधार के हमारे प्रयासों में बाधा आ सकती है। इसलिए हमें रिक्तियों को भरने तथा अपने शिक्षकों में क्षमता निर्माण को उच्च प्राथमिकता देनी होगी।
13. प्रसिद्ध कवि विलियन बटलर ईट्स ने कहा था : ‘‘शिक्षा कोई बरतन भरना नहीं है वरन् आग जलाना है।’’ हमें ऐसे प्रेरित शिक्षकों की जरूरत है जो हमारे युवाओं के मस्तिष्कों को दिशा प्रदान कर सकें। ऐसे शिक्षक अपने शब्दों, कार्यों तथा कृत्यों से विद्यार्थियों को प्रेरित करते हैं और उन्हें कार्य तथा विचार के ऊंचे पायदान पर स्थापित करते हैं। वे अपने विद्यार्थियों को अपने विषय पर वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में विचार करने योग्य बनाते हैं। वे अपने विद्यार्थियों में अच्छे मूल्यों के समावेश में सहायता प्रदान करते हैं। हमारे शिक्षा संस्थानों को ऐसे प्रेरित शिक्षकों को मान्यता देनी चाहिए और उन्हें अधिक से अधिक विद्यार्थियों के साथ अपना ज्ञान, विवेक तथा दर्शन आदान-प्रदान करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
14. मित्रो, नवान्वेषण भावी आर्थिक प्रगति की कुंजी है। चीन और अमरीका नवान्वेषण की चोटी पर हैं और दोनों जगहों पर वर्ष 2011 में 5 लाख से अधिक पेटेंट आवेदन प्रस्तुत हुए हैं। भारत केवल 42000 पेटेंट आवेदनों के साथ इन अग्रणी देशों से पीछे है। हमारे पास नवान्वेषण को प्रोत्साहित करने तथा उनको सृजित करने की प्रणाली मौजूद नहीं है। हमें अंतर-विधात्मक, तथा अंतर-विश्वविद्यालय अनुसंधान सहभागी, अनुसंधान अध्येतावृत्ति, तथा उद्योग संवर्धन पार्कों जैसे उपायों को बढ़ावा देना होगा। हमें प्रमुख अनुसंधान कौशल विकसित करना होगा। हमारे पास विदेशों में कार्यरत भारतीय अनुसंधानकर्ताओं को अल्पकालिक परियोजनाओं में कार्य करने के लिए आकर्षित करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
15. यह दशक नवान्वेषण का दशक घोषित किया गया है। इसकी आम आदमी के लिए सार्थकता होनी चाहिए। ऐसे जमीनी नवान्वेषण मौजूद हैं जिन्हें व्यवहार्य उत्पादों के रूप में विकसित किए जाने के लिए प्रौद्योगिकीय और वाणिज्यिक मार्गदर्शन की जरूरत है। इस वर्ष केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों के सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि शिक्षकों तथा विद्यार्थियों और जमीनी नवान्वेषकों के बीच संपर्क को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषण क्लब स्थापित किए जाएं। हाल ही में, मुझे उत्तर प्रदेश और असम में दो केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में ऐसे क्लबों के उद्घाटन का मौका मिला। इन विश्वविद्यालयों तथा नागालैंड विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित नवान्वेषण प्रदर्शनियों में मुझे जमीनी नवान्वेषणों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों को देखकर खुशी हुई। मैं हमारे देश में नवान्वेषणों के इस उत्सव में भाग लेने के लिए आपको आमंत्रित करता हूं।
16. मैं, एक बार फिर से उन सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्होंने इस विश्वविद्यालय में अपनी औपचारिक शिक्षा पूर्ण कर ली है। आपको जीवन के हर स्तर पर सीखने के अवसर मिलेंगे। आपको इस प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति के लिए मस्तिष्क को खुला रखना होगा। आपको अपनी ईमानदारी, समर्पण तथा कठिन परिश्रम से जीवन की चुनौतियों पर विजय पानी है। मैं आपको, आपके भावी जीवन और आजीविका के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के संकाय तथा प्रबंधन की भी सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!