गुजरात विद्यापीठ के बासठवें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

अहमदाबाद, गुजरात : 11.02.2015

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sp1. गुजरात विद्यापीठ के बासठवें दीक्षांत समारोह के लिए आज यहां उपस्थित होना मेरा सौभाग्य है। इस ऐतिहासिक संस्थान की स्थापना1920 में गांधीजी ने की थी जो आरंभ से इसके कुलाधिपति थे और अपनी अंतिम सांस तक बने रहे। गांधीजी और सरदार वल्लभ भाई पटेल के बाद,डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गुजरात विद्यापीठ के कुलाधिपति बने। उनके पश्चात् यह विरासत मोरारजी देसाई के हिस्से मे आई जो33 वर्ष के सबसे लंबे कार्यकाल तक कुलाधिपति रहे। पूर्व कुलाधिपति नारायण देसाई,महादेव देसाई के सुपुत्र थे,जिन्होंने गांधीजी के संग अपना बचपन और किशोर अवस्था बिताई।

2. मैं स्नातकों जैसा कि गांधीजी उन्हें कहना पसंद करते थे,को बधाई देता हूं। मुझे ज्ञात है कि मेरे कुछ पूर्ववर्तियों ने अतीत में इस अवसर की शोभा बढ़ाई है। मैं,आप सबके बीच होना तथा शिक्षण की इस विशिष्ट पीठ के स्नातक बन रहे विद्यार्थियों को संबोधित करना एक विशेष दायित्व समझता हूं। इसी प्रकार,यहां आने से पहले मुझे 1917 में बापू द्वारा स्थापित साबरमती आश्रम में कुछ समय बिताने का अवसर मिला था। आज भी,आश्रम के वातावरण में सत्याग्रह और अतीत के सर्जनात्मक कार्यक्रम की भावना प्रतिध्वनित होती है।

प्रिय विद्यार्थियो,

3. गांधीजी एक महान आत्मा थे जिन्होंने विश्व को दिखाया कि सत्याग्रह और अहिंसा का प्रयोग और अधिक न्यायपूर्ण विश्व के निर्माण के लिए किया जा सकता है। गांधीजी एक विरले दूरद्रष्टा थे। उन्होंने इस विश्वविद्यालय की रचना की जो शीघ्र ही सौ वर्ष पूरे करने जा रहा है क्योंकि उन्होंने महसूस किया था कि नूतन विश्व के निर्माण के लिए युवाओं की शिक्षा एक ठोस रास्ता है। यह जानना सुखद है कि गांधीजी के आदर्श इस संस्थान में सुस्थापित हैं,और यह उच्च शिक्षा प्रदान करने में अग्रसर है। आज यह डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त स्नातक स्तर पर12, स्नातकोत्तर में 9तथा एम.फिल स्तर पर 20पाठ्यक्रम प्रदान कर रहा है।

4. गुजरात विद्यापीठ ने सूक्ष्मजैविकी,कम्प्यूटर विज्ञान तथा ऊर्जा प्रौद्योगिकी जैसे समसामयिक विषयों में शिक्षा प्रदान करने की दिशा में बढ़िया प्रगति की है। ऐसे समय में जबकि उच्च शिक्षा लगातार महंगी होती जा रही है,यह विद्यापीठ पिछड़े वर्गों के युवाओं का एक पसंदीदा संस्थान बन गया है क्योंकि इसके80 प्रतिशत प्रवेशप्राप्त विद्यार्थी इन्हीं पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं। विद्यार्थियों में बालिकाओं की40 प्रतिशत संख्या एक उत्साहजनक संकेत हैं। राज्य और समग्र समाज को ऐसे महान संगठन को सहयोग देते रहना चाहिए।

मित्रो,

5. गांधीजी ने सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए नई तालीम का सिद्धांत प्रतिपादित किया,जिसका अर्थ है कि ज्ञान और कार्य अलग-अलग नहीं हैं। हृदय,हाथ और मस्तक नई तालीम के तीन अंग हैं। इस दर्शन को अमल में लाने के लिए गांधीजी ने सभी के लिए मूल शिक्षा के शैक्षिक पाठ्यक्रम को प्रोत्साहन दिया। गुजरात संभवत: अकेला राज्य है जहां सुदूर इलाकों में कार्यरत आश्रमशालाएं और बुनियादी स्कूलों के जरिए नई तालीम संस्थागत तौर पर मौजूद है। नई तालीम चरित्र निर्माण को प्रेरित करती है जिसकी प्रासंगिकता दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। मूल्यपरकता युक्त शिक्षण,शिक्षा में हमारे दृष्टिकोण को दिशा देगी।

6. गुजरात विद्यापीठ विद्यार्थियों को चरित्र निर्माण,योग्यता, संस्कृति और विवेकशीलता से युक्त शिक्षा प्रदान करती है। देश को गांधीवादी आदर्शों के अनुसार ऊर्र्जावान बनाने की आवश्यकता है। इस संस्थान को ग्राम स्वराज के लिए युवाओं को शिक्षित करने का विशेष दायित्व सौपा गया है जो गांधीजी द्वारा समर्थित एक सराहनीय लक्ष्य है। उनका पक्का विश्वास था कि भारत अपने गांवों में बसता है। बढ़ते शहरीकरण के बावजूद,देश की 68 प्रतिशत जनसंख्या अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। खाद्य सुरक्षा,शिक्षा, कौशल निर्माण,रोजगार, प्रौद्योगिकी प्रसार,स्वास्थ्य और पोषण,आवास,पेयजल और स्वच्छता के प्रयास से ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि तथा गरीबी के मुद्दों का समाधान हो जाएगा। मुझे बताया गया है कि इस संस्थान के विद्यार्थी गांधीजी की संकल्पना के अनुरूप ग्रामीण विकास में सहयोग देने के लिए उन्मुख और प्रशिक्षित हैं। इस प्रकार की पहल से आत्मनिर्भर गांवों की रचना तथा समता और आर्थिक और पर्यावरणीय सततता प्राप्त करने में मदद मिलेगी। मेरे अनुसार इससे हम समर्थ भारत की दिशा में अग्रसर होंगे।

7. एक देश के तौर पर,हमने स्वयं से गांधीजी की 150वीं जयंती मनाने के लिए2अक्तूबर, 2019तक एक स्वच्छ भारत का वादा किया है। यह उल्लेखनीय है कि इस संस्थान के विद्यार्थियों ने अपने श्रम के माध्यम से इस कैम्पस को स्वच्छ बना रखा है। सामुदायिक जीवन में ऐसी परंपराएं एक दिन में निर्मित नहीं होती हैं। इसे इस श्रेष्ठ परंपरा के प्रचार-प्रसार का प्रयास करना चाहिए। बापू के अनुसार स्वच्छ भारत का अर्थ है स्वच्छ मन,स्वच्छ तन और स्वच्छ पर्यावरण। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य स्वच्छ भारत को संभव बनाने के लिए स्वयं के और समाज के बाहरी और आंतरिक वातावरण को स्वच्छ बनाना है। मुझे विश्वास है कि आप ऐसे आदर्श बनेंगे जो हमारे देश को स्वच्छ और समर्थ बनाने का प्रयास करेंगे।

मित्रो,

8. गांधीजी जीवनभर और मृत्यु के समय भी सांप्रदायिक सौहार्द के लिए संघर्ष करते रहे। शांति और सौहार्द की शिक्षा समाज की विघटनकारी ताकतों पर नियंत्रण और उन्हें पुनर्भिमुख करने की कुंजी है। गुजरात विद्यापीठ का ध्येय वाक्य‘स: विद्या य: विमुक्ताय’अर्थात ‘शिक्षा मुक्त करना है।’गुजरात विद्यापीठ के विद्यार्थी न केवल गांधीवादी विचारों की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं बल्कि विश्व पंथों का परिचय भी देते हैं। इस संस्थान को यह दर्शाना चाहिए कि सामाजिक नवीकरण अहिंसा द्वारा युवाओं के हृदय और मन को शिक्षित करके संभव है। इस संदर्भ में, मैं सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सहयोग से महात्मा गांधी के कृतियों के संचयन का डिजीटल रूप प्रकाशित करने के लिए गुजरात विद्यापीठ को बधाई देता हूं। इससे जनता के बीच गांधीवादी विचार एवं दर्शन का व्यापक प्रचार-प्रसार हो सकेगा।

देवियो और सज्जनो,

9. भारत का उच्च शिक्षा क्षेत्र आज अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। एक ओर,सुगम्यता बढ़ाने तथा शिक्षा को वहनीय बनाने की जरूरत है। दूसरी ओर,गुणवत्ता सुनिश्चित करने और उत्कृष्टता प्राप्त करने की आवश्यकता है। ये विरोधाभासी उद्देश्य न होकर पूरक लक्ष्य हैं। हमारे उच्च शैक्षिक संस्थानों की प्रत्येक पहल के पीछे गुणवत्ता का बोध होना चाहिए। शिक्षा के उच्च स्तर के अनुरूप भारत में संस्थानों की कमी के कारण बहुत से मेधावी विद्यार्थी देश छोड़कर विदेश चले जाते हैं। बहुत अधिक विदेशी विद्यार्थी भी उच्च शिक्षा के लिए भारत नहीं आते हैं। यह चिंता का विषय है कि इस संबंध में आठ सर्वोच्च देशों में सात- अमरीका,जर्मनी, फ्रांस,दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया,चीन और सिंगापुर के विद्यार्थियों की संख्या 2014में 73 प्रतिशत कम हो गई है। हमें इस प्रवृत्ति को उलटने तथा भारत को विदेशी विद्यार्थियों के एक उत्तम और वहनीय शिक्षा गंतव्य के रूप में उभारने के लिए भरसक प्रयास करना चाहिए।

10. हमारे देश के सम्मुख विकासकारी चुनौतियों के लिए उच्च शिक्षा प्रणाली के प्रेरक सहयोग की जरूरत है। गुणवत्तापूर्ण और प्रासंगिक अनुसंधान से हमारी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं पर विजय प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। अनुसंधान के अनूकूल माहौल बनाने के लिए एक बहुविधात्मक दृष्टिकोण अपनाने,स्नातक स्तर पर अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा विद्यार्थियों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति पैदा करने की आवश्यकता है। नवीन विचारों को व्यवहारिक व श्रेष्ठ उत्पादों में बदलने के लिए नवान्वेषण पर समुचित बल देने की जरूरत है। हाल के वर्षों में, नवान्वेषण पर संकेंद्रित ध्यान के बावजूद, भारत इस मोर्चे पर अधिकांश देशों से पिछड़ा हुआ है। विश्व नवान्वेषण सूची में81वें स्थान पर होने के कारण,हमें अभी काफी लम्बी यात्रा तय करनी है। नवान्वेषी विचारों को परामर्शन और बुनियादी नवान्वेषणों को प्रोत्साहन के लिए,एक कुशल ढांचे के द्वारा हमारा देश नवान्वेषण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकता है।

देवियो और सज्जनो,

11. भारत में युवाओं की विशाल आबादी है। हमारे उच्च शैक्षिक शिक्षा और तकनीकी संस्थानों द्वारा अधिक से अधिक संख्या में योग्य और कुशल पेशेवर तैयार करने से ही हम इस आबादी का फायदा हासिल कर सकते हैं। इसके लिए विशाल पैमाने पर कौशल विकास पहल की आवश्यकता है। इस प्रयोजन हेतु हमारे संस्थानों के बीच सहयोग की जरूरत है। कौशल दायरे में अधिक से अधिक संख्या में युवाओं को शामिल करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना चाहिए। विशाल मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम अपने आकार,तेजी और लागत की खूबियों की वजह से शिक्षण का पसंदीदा तरीका बन गया है। परस्पर क्रियात्मक विशाल मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम से व्यावसायिक अभ्यर्थियों को सीखने के समान अवसर प्राप्त हो सकते हैं। ऐसी पहल से कौशल ज्ञान की उपलब्धता में क्रांति आ सकती है तथा व्यावसायिक शिक्षा में सुधार आ सकता है। कौशल प्रदान करने के प्रयास के लिए पारंपरिक प्रौद्योगिकी का मौलिक प्रौद्योगिकी के साथ समागम करने की आवश्यकता है। मुझे बताया गया है कि गुजरात विद्यापीठ समान उत्साह के साथ विद्यार्थियों को चरखा और कंप्यूटर की शिक्षा प्रदान करती है। यहां के विद्यार्थियों में श्रम के प्रति सम्मान की भावना पैदा की जाती है। मुझे विश्वास है कि वे अपने प्रशिक्षण का श्रेष्ठ प्रयोग करेंगे तथा हमारे राष्ट्र के योग्य नागरिक बनेंगे।

प्यारे विद्यार्थियो,

12. अपनी मातृ संस्था से विदा होने के बाद,अपनी शिक्षा के सार्थक प्रयोग को याद रखिए। अपने जीवन के हर स्तर पर गांधीवादी सिद्धांतों का प्रयोग करें। हृदय,हस्त और मस्तक के पूर्ण प्रशिक्षण,जो नई तालीम है, के द्वारा एक समर्थ भारत का निर्माण करने का दायित्व आपका है। मैं यहां उपस्थित हर एक व्यक्ति को भविष्य की शुभकामना देता हूं। ॒

धन्यवाद।

जयहिन्द।

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