गोवा विश्वविद्यालय के 29वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
गोवा : 25.04.2017
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सर्वप्रथम, मैं मानद डी.लिट. की उपाधि प्रदान करने के लिए आभार और गहरा सम्मान प्रकट करता हूं। मेरे प्रति प्रदर्शित इस सद्भावना की मैं गहरी सराहना करता हूं और इस सम्मान को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूं। मैं इस अवसर पर, उपाधिधारकों और पुरस्कार विजेताओं को,वर्षों के उनके परिश्रम व प्रयासों के लिए बधाई देता हूं।
दीक्षांत समारोह सदैव विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना रही है। यह उनके परिश्रम का सम्मान है। प्रिय विद्यार्थियों,जब आप अपनी मातृसंस्था के द्वार से बाहर कदम रखेंगे,तो आपको थोड़ी घबराहट होगी क्योंकि तब आपके पास अपने गाइडों और मित्रों का सहयोग नहीं होगा। परंतु आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मैं जानता हूं कि आपने जो कौशल अर्जित किया है,उनसे आपको सभी कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी। मैं आप सभी की सफलता की कामना करता हूं।
देवियो और सज्जनो,
गोवा विश्वविद्यालय की स्थापना 1985 में इस मनोरम वातावरण में हुई थी जो ज्ञान और अनुसंधान करने के लिए अनुकूल है। विगत तीन दशकों के दौरान,गोवा विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय और वैश्विक परिदृश्य पर अपनी सशक्त पहचान बनाई है। यह अपनी स्थानीय परंपराओं को ध्यान में रखते हुए,ऐसा करने में सफल रहा है, जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। मेरे विचार से,यह एक विशिष्ट वातावरण में स्थापित किसी ज्ञान केन्द्र के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है।
गोवा भारत की नियति के साथ एक खुली मुलाकात की विशेष स्थिति में है। यह हमारे सांस्कृतिक बहुलवाद और सहअस्तित्व का एक चमकता उदाहरण और सर्वदेशीयता का प्रतीक है,जो एक आधुनिक समाज के लिए आवश्यक है। एक स्वतंत्र देश के विश्वविद्यालय के उद्देश्यों पर लिखते हुए,एक बार पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था,‘‘एक विश्वविद्यालय का अर्थ है : मानवतावाद,सहिष्णुता,तर्क,विचारों का साहस और सत्य की खोज। इसका अर्थ है,पहले से ऊंचे उद्देश्यों की दिशा में मानवजाति का अग्रगामी प्रयाण। यदि विश्वविद्यालयों द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निवर्हन पूरी तरह किया जाता है तो यह राष्ट्र और जनता के लिए बेहतर होगा।’’ मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि गोवा विश्वविद्यालय ने इस मौलिक सिद्धांत को आत्मसात किया है और यह हमारे देश की विरासत के अनुरूप है। प्राचीन काल में,भारत शिक्षा का अग्रणी था। तक्षशिला,नालंदा, विक्रमशिला आदि जैसे विश्वविद्यालयों ने विद्यार्थियों,अध्यापकों और शोधकर्ताओं के रूप में प्रतिभाओं को आकर्षित किया। विश्वविद्यालय को विभिन्न विचारों की प्रयोगशाला बनना चाहिए।
मित्रो,
यह जानना प्रसन्नतादायक है कि गोवा विश्वविद्यालय ने शास्त्रीय संगीत,इतिहास, भाषा,राजनीतिक अर्थशास्त्र, कला के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धिकर्ताओं और इसके विद्यार्थियों के बीच संवाद का एक मंच मुहैया करवाने की अद्वितीय पहल की है। इस विश्वविद्यालय का अतिथि शोध प्राध्यापकी कार्यक्रम विगत चार वर्षों के दौरान भारत की सबसे प्रखर प्रतिभाओं को सामने लाया है। इसने इन विशेषज्ञों के ज्ञान और प्रज्ञा को विद्यार्थियों तथा सार्वजनिक सदस्यों को उपलब्ध करवाया है। मैं आने वाले वर्षों में इस कार्यक्रम की अत्यधिक सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
मुझे यह भी जानकर प्रसन्नता हुई है कि गोवा विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों में अत्यधिक संख्या महिलाओं की है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हुई है कि छात्राओं ने पुरस्कार वितरण के मामले में लड़कों को पीछे छोड़ दिया है। यह उल्लेखनीय है कि विशेषकर पिछड़े वर्ग की युवतियां कॉलेज और विश्वविद्यालयों के प्रवेश द्वार तक निरंतर पहुंच बढ़ा रही हैं। हमारी भावी पीढ़ी पर शिक्षा के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह सही कहा गया है कि यदि हम एक बालक को पढ़ाएंगे तो हम एक व्यक्ति को शिक्षित बनाते हैं और यदि हम एक बालिका को पढ़ाएंगे तो संपूर्ण परिवार को शिक्षित बनाते हैं।
देवियो और सज्जनो,
भारत वर्तमान में अपने सामाजिक-आर्थिक संक्रमण के एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण मोड़ पर है। हम उन विश्व परिवर्तनों के बीच में हैं जो जटिल और अबूझ हैं। भारतीय विशेषज्ञता और प्रतिभा की विश्वव्यापी मांग है। उदारवादी आर्थिक वातावरण में असीम संभावनाएं हैं। तथापि, एक वैश्वीकृत बाजार में अछूते अवसरों का लाभ उठाने के लिए,हमें अपनी जनसांख्यिकीय शक्ति को प्रेरित करना होगा।
25 वर्ष और उससे कम आयु के 600मिलियन लोगों वाले हमारे राष्ट्र के युवा स्वरूप को उन्नति की तेज गति में हमारी सम्पत्ति बनना है। इसके लिए,हमें कुशल कार्य करने की क्षमता निर्मित करने के लिए अपने युवाओं को ठोस प्रशिक्षण देना होगा। इससे उन्हें वैश्विक आर्थिक समुदाय में चुनौतीपूर्ण कार्य भूमिकाओं के लिए तैयार होने में मदद मिलेगी। उनमें भविष्य पर विचार करने की प्रवृत्ति पैदा करनी होगी। प्रभाव पैदा करने वाले बहुत से विचार आज पहले से कहीं ज्यादा तेजी से पहुंचने लगे हैं।
विश्वविद्यालयों को, निस्संदेह इस संबंध में बढ़त बनानी होगी परंतु इस कार्य को अकेले जन संस्थाओं द्वारा पूरा करना कठिन है। इसके लिए उद्योग,स्वैच्छिक क्षेत्र, केन्द्रीय और राज्य एजेंसियां जैसे अनेक भागीदारों के बीच साझीदारी के नए उदाहरणों की आवश्यकता होगी। सभी भागीदारों को इन प्रयासों में शामिल करना होगा।
प्रतिस्पर्धात्मक विश्व अर्थव्यवस्था के लिए स्नातकों को तैयार करने के मामले में,हमें अपने संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करनी होगी। इनके लिए विश्व स्तरीय शैक्षिक प्रबंधन की सर्वोत्तम विश्व पद्धतियों को अपनाने की जरूरत है। हमारे संस्थानों को उत्कृष्टता के लिए अनवरत कार्य करना होगा। उन्हें अपने शैक्षिक समुदाय को सर्वोत्तम सुविधाएं उपलब्ध करवानी होगी। पढ़ाने की विधियों को नवीनतम प्रवृत्तियों तथा विद्यार्थी के बदलते हुए स्वरूप के भी अनुकूल बनाना होगा। हमें व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम और ज्ञान नेटवर्क सूचना प्रौद्योगिकी जैसे सक्षम मंचों तथा अध्यापन के बीच संयोजन करना होगा। अवधारणाओं और समझ के विकसित होने के साथ-साथ,हमारे शिक्षकों को भी अद्यतन ज्ञान के साथ बेहतर ढंग से तैयार होना पड़ेगा। संस्थागत सहयोग,अनुसंधान पार्क और प्रतिभावान अनुसंधानकर्ताओं के आधार पर एक सशक्त अनुसंधान माहौल तैयार करना होगा। भारतीय विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच एक घनिष्ठ संयोजन भी बनाना होगा।
प्रिय मित्रो,
यह जानते हुए कि कोई भी संस्थान अलग रहकर उत्कृष्टता प्राप्त नहीं कर सकता,उसे विद्यार्थियों और शिक्षकों को अंतरराष्ट्रीय अनुभव प्रदान करना होगा,पाठ्यक्रम में उद्योग संबंधित विषय शामिल करने होंगे तथा शैक्षिक संसाधनों का आदान-प्रदान करना होगा। हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है। राष्ट्रीय संस्थागत वरीयता ढांचा एक महत्त्वपूर्ण पहल है और मुझे विश्वास है कि इसके द्वारा अधिक से अधिक सहभागिता से भावी वर्षों में हमारे संस्थानों को बेहतर प्रदर्शन करने की प्रेरणा प्राप्त होगी।
हमारे उच्च शिक्षा केंद्र सामाजिक संस्थान भी हैं। उन्हें सामाजिक इकाई के रूप में अपने दायित्व पूरे करने होंगे। समाज के साथ सशक्त संयोजन से इनमें मूल्यपरक शिक्षण का ढांचा उपलब्ध होगा। इनसे विद्यार्थियों में संवेदनशीलता पैदा होगी जिससे वे अपने परिवेश की जटिल सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के समाधान ढूंढ़ने के लिए प्रेरित होंगे। ऐसे पुरुष और महिलाएं तैयार करना हमारे संस्थानों का दायित्व है जो केवल सक्षम पेशेवर ही न हों बल्कि सुदृढ़ और सच्चरित्र भी हों।
देवियो और सज्जनो,
करीब सात दशक पूर्व डॉ. एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में प्रथम विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने कुछ महत्त्वपूर्ण सिफारिशें की थीं। उनमें से अधिकतर स्वीकार कर ली गईं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई। वर्षों के दौरान,बहुत सी सिफारिशों के श्रेष्ठ परिणाम निकले। वे आज भी प्रासंगिक हैं।
मैं गोवा विश्वविद्यालय के शैक्षिक नेतृत्व से आह्वान करता हूं कि वे उन आदर्शों के प्रति स्वयं को समर्पित कर दें जिनका हमारे राष्ट्र के निर्माताओं ने पालन किया था। हमारे शिक्षा संस्थानों के शिक्षा वातावरण द्वारा विद्यार्थियों में विद्वता को इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिए कि निरंतर प्रयास के द्वारा स्वयं उनकी,परिवार, समाज,राष्ट्र और विश्व की आकांक्षाएं पूरी हो सकें। इससे वर्तमान पर्यावरणीय हृस,संसाधन कमी और पहचान के संकट जैसी समस्याओं के समाधान के लिए और अधिक ज्ञान अर्जित करने तथा उस ज्ञान को प्रयोग करने में मदद मिलेगी।
मित्रो,
भारत शांति, लोकतंत्र और सर्वसम्मति के हमारे प्रतीकों को विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने की श्रेष्ठ स्थिति में है। मुझे विश्वास है कि स्नातक और अनुसंधानकर्ता,जो आज अपनी उपाधि प्राप्त करने के बाद इस प्रतिष्ठित संस्थान से बाहर निकलेंगे,इस राष्ट्र की क्षमताओं को साकार करने में उत्कृष्टतापूर्वक योगदान देंगे।
मैं आपको सफलता और भावी रोमांचकारी यात्रा की शुभकामनाएं देता हूं। आगे बढ़िए। पूरा विश्व आपका है। आत्मविश्वासी बनें आप विश्व को जीत लेंगे।
धन्यवाद,
जय हिंद।