एशिया एवं प्रशांत के लिए एकीकृत ग्रामीण विकास केंद्र की शासी परिषद की उन्नीसवीं बैठक के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 30.09.2013

डाउनलोड : भाषण एशिया एवं प्रशांत के लिए एकीकृत ग्रामीण विकास केंद्र की शासी परिषद की उन्नीसवीं बैठक के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 236.34 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at the Nineteenth Meeting of the Governing Council of the Centre on Integrated Rural Development for Asia and the Pacific (CIRDAP)मुझे आज एशिया एवं प्रशांत के लिए एकीकृत ग्रामीण विकास केंद्र की उन्नीसवीं बैठक के उद्घाटन के लिए आपके बीच उपस्थित होकर गर्व का अनुभव हो रहा है। मैं, अपने देश की ओर से उन सभी विशिष्ट प्रतिनिधियों का स्वागत करता हूं जो यहां से हैं तथा जो विदेशों से इस ऐतिहासिक सुंदर शहर दिल्ली में आए हैं।

2. यह केंद्र खाद्य एवं कृषि संगठन के तहत 1979 में स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में राष्ट्रीय कार्यक्रमों में सहायता प्रदान करना, क्षेत्रीय सहयोग प्रदान करना तथा ग्रामीण विकास के लिए सेवा प्रदान करने वाले संस्थान के रूप में कार्य करना था। भारत इसके संस्थापक सदस्यों में से है। एक बड़े नेटवर्क के साथ एक अग्रणी संस्था होने के नाते इस केंद्र ने सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग में उत्प्रेरक की भूमिका निभाई है।

3. वर्ष 2008 के दौरान हमें इस केंद्र के सदस्य राष्ट्रों की शासी परिषद के विशेष सत्र तथा मंत्रियों के प्रवास के आयोजन का सुअवसर मिला था और इस दौरान ‘नई दिल्ली घोषणा पत्र’ अपनाया गया था। वर्ष 2010 में ढाका में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ग्रामीण विकास पर मंत्रियों की द्वितीय बैठक में ‘ढाका-घोषणा-पत्र’ अपनाया गया। ये घोषणा पत्र तब से इस केंद्र के मार्गदर्शक बन चुके हैं। इनमें राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक संसाधनों को जुटाने तथा राष्ट्रीय संसाधनों और अंतरराष्ट्रीय विकास सहायता के प्रवाह का उपयोग करते हुए ग्रामीण निर्धनता पर समग्र रूप से कार्य करने की जरूरत पर बल दिया गया है। शासी परिषद की उन्नीसवीं बैठक की मेजबानी भारत में करने से हमें इस प्रतिबद्धता को दोहराने का मौका मिला है। मुझे उम्मीद है कि इस बैठक के फलस्वरूप ग्रामीण विकास तथा निर्धनता उन्मूलन संबंधी मुद्दों को वर्तमान बदलावों तथा सदस्य राष्ट्रों के समक्ष उपस्थित चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाएगा।

देवियो और सज्जनो,

4. दुनिया-भर का अनुभव यह बताता है कि आर्थिक विकास का उपयोग निर्धनता में कमी लाने की कार्यनीति के तौर पर करने से बहुत लाभ हुए हैं। वर्ष 1990 से 2010 के बीच दुनिया भर में लगभग एक बिलियन लोग निर्धनता के चंगुल से बाहर आए हैं। अध्ययन दर्शाते हैं कि दो तिहाई निर्धनता उन्मूलन विकास की सहायता से होती है जबकि शेष एक तिहाई विकास प्रक्रिया में समता के स्तर से निर्धारित होती है। इसलिए विकासमान अर्थव्यवस्थाओं के लिए उच्च आर्थिक विकास की प्रमुखता से इन्कार नहीं किया जा सकता। एशिया-प्रशांत, विश्व में सबसे तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्रों में से एक होने के बावजूद यह आज भी गरीबी तथा पिछड़ेपन से ग्रस्त है। सतत् विकास के लिए हमें खासकर निर्धन तथा हासिए पर मौजूद ग्रामीण जनता की क्षमता में सुधार करने की जरूरत है। खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार, प्रौद्योगिकी प्रसार, स्वास्थ्य और पोषाहार, आवास, पेयजल तथा स्वच्छता के क्षेत्र में किसी भी प्रयास में ग्रामीण क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हम सभी के लिए तथा विश्व भर में बहुत से लोगों के लिए, ग्रामीण विकास तथा निर्धनता उन्मूलन, राष्ट्रीय विकास का पर्याय बन चुका है।

5. गरीबी पर एक निर्णायक चोट करने के लिए तथा ऐसी विकास प्रक्रिया शुरू करने के लिए जिसमें विकास तथा समता शामिल हों, एक ग्रामीण विकास कार्यनीति जरूरी हो गई है। दूरियों को मिटाने—न केवल भौगोलिक वरन् प्रगति एवं विकास में भी—के लिए प्रौद्योगिकी को साधन के रूप में कार्य करना होगा। शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों के बीच डिजीटल दूरी को खत्म करना होगा। खेती, स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रयासों में प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों से सहायता प्रदान करनी होगी। भूमि, जो अब दुर्लभ संसाधन होती जा रही है, का दक्षतापूर्ण प्रबंधन करना होगा। भूमि, खासकर वर्षा सिंचित, अनुपजाऊ तथा परती भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए सामुदायिक सशक्तीकरण के सिद्धांतों को अपनाना होगा। विकासात्मक प्रयासों में जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा तथा पर्यावरणीय क्षरण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देनी होगी। लोगों को प्राथमिकता देते हुए, औचित्यपूर्ण संसाधन प्रबंधन को सुनिश्चित करना होगा।

देवियो और सज्जनो,

6. हमारी नीतियों में कार्यक्रम निर्माण तथा कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों पर स्कीमों के संचालन में पारदर्शिता तथा सावधानीपूर्वक मानीटरिंग तथा लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी। भारत जिला, उपजिला तथा गांव स्तर पर चुने गए स्वशासन अर्थात् पंचायती राज संस्थाओं का भंडार देश है। भारत में लगभग ढाई लाख पंचायती राज संस्थाएं हैं। यह विश्व में अकेला सबसे बड़ा प्रतिनिधित्वपूर्ण आधार है तथा जमीनी लोकतंत्र का सबसे प्रमुख प्रतीक है। महिलाओं के लिए एक तिहाई स्थान नियत होने के कारण इन स्थानीय निकायों के 28 लाख प्रतिनिधियों में से 10 लाख से अधिक महिलाएं हैं। अधिकांश विकास तथा निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम इन स्थानीय निकायों के द्वारा कार्यान्वित होते हैं। इन निकायों को ग्रामीण बदलाव का व्यवहार्य उपकरण बनाने के लिए सुशासन परिपाटियां तथा महिला सशक्तीकरण उपायों की जरूरत है।

7. ग्रामीण विकास सदैव हमारे देश का प्राथमिक कार्यक्रम रहा है। पिछले दशक के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर में सुधार के नजरिये में बड़ा परिवर्तन आया है। कानूनों तथा ठोस कार्यक्रमों के द्वारा ग्रामीण सशक्तीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम बनाकर काम की मांग करने वाले प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति वर्ष 100 दिन के रोजगार का कानूनी अधिकार देकर एक महत्त्वपूर्ण प्रयास शुरू किया गया है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना द्वारा विकास में सड़क संयोजन, खासकर ग्रामीण बस्तियों में, के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। वर्ष 2011 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन नामक महत्वाकांक्षी गरीबी कम करने का कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसके तहत स्व-सहायता समूहों को ग्रामीण निर्धनों की ऐसी कारगर संस्थाओं के रूप में स्थापित करने का इरादा किया गया है जो सतत् रोजगार वृद्धि, बेहतर उत्पादक क्षमता, टिकाऊ परिसंपत्तियों को पैदा करके, उत्पादन एवं विपणन में नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके, दक्षता विकास तथा वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुंच से परिवार की आय बढ़ाने में सहायता दे। इसके अलावा बेघरों, वृद्धों, विधवाओं, तथा निशक्त लोगों जैसे, समाज के कमजोर तबके को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई अन्य कल्याण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।

देवियो और सज्जनो,

8. ऐसे समय में जब वैश्विक आर्थिक दबावों के चलते विकासशील देशों को अपने सामाजिक सेक्टरों पर व्यय करने में कठिनाई हो रही है, तब ग्रामीण अवसंरचना पर निवेश के लिए बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं से संसाधन प्राप्त करना जरूरी हो गया है। यह और भी जरूरी है कि हमारे वैश्विक साझीदारों की विदेशी विकास सहायता तथा क्षमता निर्माण संबंधी प्रतिबद्धता दृढ़ बनी रहे। विकासशील देशों, खासकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र का यह साझा लक्ष्य है कि ग्रामीण क्षेत्र को राष्ट्रीय प्रगति का महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाला कारक बनाया जाए। इसमें एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के लिए एकीकृत ग्रामीण विकास केंद्र को, जो सक्रिय रूप से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दे रहा है, बड़ी भूमिका निभानी है। मैं चाहूंगा कि आप सब गांधी जी द्वारा कहे गए इन शब्दों को याद रखें, ‘‘दृढ़ निश्चयी लोगों का एक छोटा सा समूह, जो अपने मिशन के प्रति अडिग निष्ठा रखता हो, इतिहास को बदल सकता है।’’ मेरा यह दृढ़ मत है कि यह केंद्र एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों के भविष्य को संवारने में सहयोग देगा। इस प्रभावशाली क्षेत्रीय समूह का प्रसार नए क्षेत्रों में करने के बारे में सकारात्मक सोच रखी जानी चाहिए। मैं इस शासी परिषद की बैठक में विचारों और अनुभवों के खुले आदान-प्रदान का आग्रह करता हूं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस बैठक से प्राप्त निष्कर्षों तथा निर्णयों से कल की चुनौतियों का सामना करने के लिए बेहतर तैयारी हो पाएगी।

9. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं इस केंद्र की शासी परिषद की उन्नीसवीं बैठक के शुभारंभ की घोषणा करता हूं। मैं हमारे बीच मौजूद सभी प्रतिनिधियों के आनंददायक और खुशनुमा प्रवास की कामना करता हूं। मैं इस केंद्र की सफलता की भी कामना करता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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