एशिया-अफ्रीका एग्रि-बिजनेश फॉरम के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

फिक्की ऑडिटोरियम, नई दिल्ली : 04.02.2014

डाउनलोड : भाषण एशिया-अफ्रीका एग्रि-बिजनेश फॉरम के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 237.83 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at the Inauguration of the Asia-africa Agri-business Forumमुझे, आज इस महत्त्वपूर्ण एशिया अफ्रीका एग्रि-बिजनेस फॉरम के उद्घाटन के लिए यहां उपस्थित होकर बहुत खुशी हो रही है। मुझे विश्वास है कि यह फॉरम इसमें भाग लेने वाले व्यवसाय प्रमुखों, नीति निर्माताओं तथा अन्य महत्त्वपूर्ण स्टेकधारकों को विचारों और अनुभवों के आदान-प्रदान तथा कृषि-व्यवसाय में सहयोग करने के लिए एक व्यावसायिक परिवेश प्रदान करेगा।

2. इस कार्यक्रम को आयोजित करने का इससे अच्छा अवसर और कोई नहीं हो सकता था क्योंकि कृषि एवं कृषि-व्यवसाय एशिया और अफ्रीका में आर्थिक बदलाव के वैश्विक तथा क्षेत्रीय एजेंडे में प्रमुख स्थान बनाए हुए हैं। यह फॉरम दोनों महाद्वीपों के बीच बढ़ते सांस्कृतिक, सामाजिक, शैक्षणिक तथा आर्थिक सहयोग में एक और गतिशील अध्याय जोड़ेगा।

देवियो और सज्जनो,

3. कृषि विकास खाद्य सुरक्षा के लिए एक प्रमुख योगदानकर्ता कारक है। यह रोजगार अवसरों के सृजन तथा सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विश्व की मांग की बराबरी करने के लिए वर्ष 2030 तक, वैश्विक खाद्य उत्पादन में चालीस प्रतिशत तक वृद्धि होनी चाहिए। विश्व की जनसंख्या का चौदह प्रतिशत अर्थात एक बिलियन लोग अभी भी भूख से ग्रस्त हैं। इनमें से अधिकांश एशिया और अफ्रीका में हैं। इसे आगे जारी नहीं रखा जा सकता। खाद्य उत्पादन के कार्य को खास तरीके से; युद्ध स्तर पर करना होगा।

4. फसल उत्पाद तथा उत्पादकता में बढ़ोतरी एशिया और अफ्रीका में प्रमुख प्राथमिकताएं हैं। इन महाद्वीपों में कृषि, मजबूत व्यावसायिक जज्बे से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। निर्धनता उन्मूलन पर इस सेक्टर के प्रभाव काफी अच्छे हैं। अध्ययनों में, कृषि एवं कृषि-व्यवसाय में एशिया में तीन ट्रिलियन डॉलर व्यवसाय तथा अफ्रीका में लगभग 4.5 ट्रिलियन डालर व्यवसाय की संभावना जताई गई है।

5. तथापि, इन महाद्वीपों में कृषि-व्यवसाय का विकास, क्षमता और संसाधनों के अपर्याप्त उपयोग तथा अधिक अनुकूल नीतिगत परिवेश की कमी के कारण अविकसित रहा है। यह सेक्टर उत्पादन, मांग तथा आपूर्ति, निर्यात क्षमता और प्रसंस्करण क्षमताओं की कमी से प्रभावित है।

6. अफ्रीका में कृषि-व्यवसाय सेक्टर के विकास में कमजोर कृषि निष्पादन एक बड़ी बाधा है। कृषि के लिए जमीन की उपलब्धता खाद्य उत्पादन के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक है। इस महाद्वीप में 733 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि मौजूद है जिसमें से केवल 183 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर ही खेती हो रही है। यह देखकर निराशा होती है कि कृषि के लिए उपयुक्त बड़े-बड़े भू-भागों पर अभी भी खेती नहीं हो रही है।

7. एशिया में, जनसंख्या बढ़ने के कारण कृषि के लिए भूमि की उपलब्धता में लगातार कमी आ रही है। भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए घटते तथा विकृत होते भू-संसाधनों का विवेकसम्मत उपयोग करना होगा। इसके लिए समुचित नीतियों, कार्यनीतियों, प्रौद्योगिकियों तथा मानव संसाधनों को जुटाना होगा।

8. मुझे आयोजकों द्वारा तैयार रिपोर्ट ‘अनलॉकिंग द फूड बैल्ट्स इन एश्यि एंड अफ्रीका’ की जानकारी है। इस बात पर वास्तव में आत्ममंथन की जरूरत है कि कृषि श्रमिकों तथा विशाल आकार में खेती योग्य भूमि, एशिया में कुछ कमी आने के बावजूद, के बाद भी बहुत से एशियाई और अफ्रीकी देशों में खाद्यान्न की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि कैसे हुई है।

9. इन कठिनाइयों को व्यवसाय के अवसरों में बदलना एक चुनौती है। दोनों महाद्वीपों को पारस्परिक सहयोग के द्वारा इन चुनौतियों पर विजय पाने की जरूरत है। इस साझीदारी का लक्ष्य कृषि व्यवसाय सेक्टर को ऐसे कुशल व्यावसायिक उद्यम के रूप में विकसित करना होना चाहिए जो अन्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो। यह जानकर खुशी होती है कि इस व्यवसाय फॉरम की कार्यसूची में नई व्यावसायिक साझीदारियों का गठन, अच्छी परिपाटियों तथा नई प्रौद्योगिकियों को साझा करने और परियोजना वित्त तथा धन की उपलब्धता के विकल्पों का पता लगाना शामिल है।

10. अच्छी परिपाटियों को अपनाने तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए कार्यनीतिक साझीदारियां आज और अधिक जरूरी हो गई हैं। अफ्रीका में गति पकड़ते हरित क्रांति कार्यक्रम में उत्पादकता तथा उत्पादन के स्तरों में ऊंची छलांग लगाने का प्रयास किया जा रहा है। भारत, जहां छठे दशक के दौरान हरित क्रांति हुई थी, अब इस बात को समझते हुए कि सूचना प्रौद्योगिकी सतत् कृषि विकास में एक ताकतवर उत्प्रेरक के रूप में एक सकारात्मक भूमिका निभा सकती है, ‘सतत् हरित क्रांति’ की ओर बढ़ रहा है। कृषि के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी कार्य योजना पर भारत के कार्यनीति केंद्र 1995 से कार्यरत हैं।

11. कृषि योजना के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी में एशिया और अफ्रीका के बीच प्रगाढ़ सहयोग की अपेक्षा की गई है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के द्वारा प्रसार सेवाओं, मूल्य शृंखला, उत्पादन तथा विपणन प्रणालियों के प्रसार तथा कृषि जोखिम प्रबंधन में सहयोग करने की जरूरत है। हाल ही में रवांडा में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कृषि के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी में दक्षिण-दक्षिण सहयोग की जरूरत पर जोर दिया गया है।

12. कृषि का भविष्य, पैमाना-निरपेक्ष प्रौद्योगिकियों के अपनाने पर निर्भर करता है। अमरीका, रूस सहित स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल देशों, तथा कई यूरोपीय देशों में, दक्षता में वृद्धि के उपाय के रूप में, खेती का मशीनीकरण बहुत सफल हुआ है। भारत ने भी 2012-13 से 2016-17 की बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान ‘खेती के मशीनीकरण पर राष्ट्रीय मिशन’ का शुभारंभ किया है। यह कार्यक्रम कृषि मशीनरी के लिए अनुकूलित किराया सुविधाओं को बढ़ावा देने तथा ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के सृजन के लिए शुरू किया गया है।

13. भारत में फार्म सेक्टर के अधिकाधिक मशीनीकरण से उत्पादकता में सुधार हुआ है। आज भारत उच्च तकनीक की कृषि मशीनों का सक्षम स्रोत है। हमारा देश अफ्रीकी देशों को हारवेस्ट थ्रेसर, खुदाई उपकरण, रेक्टर और बुआई मशीन तथा बेलर मशीनों जैसे कृषि उपकरणों को उपलब्ध करा सकता है।

14. अब समय आ गया है कि कृषि-व्यवसाय सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए ‘व्यवहार्य वैकल्पिक खेती मॉडल’ की तलाश की जाए। विभिन्न देशों के संविदा खेती संबंधी अनुभवों को साझा करने की जरूरत है जिससे इस मॉडल के लिए बेहतर समझ तथा स्वीकार्यता बन सके।

देवियो और सज्जनो,

15. बागवानी फसलों तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की और ध्यान देने से समग्र कृषि सेक्टर के लिए अपेक्षित प्रोत्साहन मिल सकता है। अफ्रीका में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास से बहुत अधिक लाभ प्राप्त करने की संभावना है। भारत विभिन्न फसलों की कटाई के बाद के प्रबंधन में प्रशिक्षण तथा विश्व मानकों के अनुरूप पैकेजिंग प्रौद्योगिकी के विकास में सहायता प्रदान कर सकता है। भारत के पास मूल्य शृंखला के हर स्तर के लिए अपेक्षित कौशल है तथा वह इनके विकास में अफ्रीकी देशों की सहायता कर सकता है।

16. कृषि बाजारों तथा वित्त की प्राप्ति के साथ ही कृषि-व्यवसाय और खाद्य प्रसंस्करण सेक्टरों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी एशिया और अफ्रीका की क्षमता के उपयोग के लिए जरूरी है। सिंचाई, जल संरक्षण, सड़कों, बाजारों तथा शीतगृह शृंखलाओं पर भारी निवेश भी जरूरी है। मैं जोरदार सिफारिश करूंगा कि निवेश फर्में तथा बैंक एशियाई और अफ्रीकी देशों की ऋण जरूरतों के समाधान के लिए कार्यनीतिक साझीदारी करें। इससे कृषि-व्यवसाय तथा खाद्य-प्रसंस्करण सेक्टरों को अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में सहायता मिलेगी।

17. मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान आपने एशिया और अफ्रीका के प्रतिभागियों के लिए ‘व्यवसाय से व्यवसाय के बीच’ बैठकों की योजना बनाई है। मुझे विश्वास है कि व्यवसायों के बीच चर्चा और संवाद से सहयोग के साथ-साथ एशिया और अफ्रीका के समक्ष कृषि एव कृषि-प्रसंस्करण सेक्टरों में मौजूद चुनौतियों के समाधान के लिए कई नए विचार सामने आएंगे। इन्हीं चंद शब्दों के साथ मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूं तथा एशिया-अफ्रीका कृषि फॉरम, नई दिल्ली की सफलता की कामना करता हूं। मैं अपनी तरह के फैडरेशन जैसे सम्मेलन के लिए बधाई देता हूं। मैं इस अवसर पर उन सभी अंतरराष्ट्रीय शिष्टमंडलों का स्वागत करता हूं जो इस अंतर-महाद्वीपीय संवाद में भाग लेने के लिए भारत आए हुए हैं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

समाचार प्राप्त करें

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
समाचार प्राप्त करें
The subscriber's email address.