दादा साहेब फाल्के पुरस्कार सहित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 03.05.2014

डाउनलोड : भाषण दादा साहेब फाल्के पुरस्कार सहित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 230.57 किलोबाइट)

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1. 61वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के वितरण के अवसर पर आपके बीच उपस्थित होना वास्तव में मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

2. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार राष्ट्र के सिनेमाई इतिहास में वार्षिक उपलब्धि होते हैं। यह न केवल जनता की प्रशंसा और जन सामान्य की स्वीकार्यता का प्रतीक हैं बल्कि सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च सरकारी सम्मान के अनुरूप अत्यंत प्रतिष्ठाजनक भी हैं।

3. मैं 61वें राष्ट्रीय पुरस्कारों के विजेताओं को हार्दिक बधाई देता हूं। मैं गुलजार जी को विशेष बधाई देना चाहूंगा जिन्हें इस वर्ष दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। एक अत्यंत संवेदनशील लेखक, कवि और फिल्म निर्माता के रूप में उनका सिनेमा में भारी योगदान रहा है। राष्ट्र ने उन्हें पद्म भूषण तथा हॉलीवुड ने उन्हें ऑस्कर देकर सम्मानित किया है। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार उनकी एक और उपलब्धि है। गुलजार जी, हमें आप पर गर्व है।

4. मैं समझता हूं कि इस वर्ष रिकॉर्ड तोड़ 470 से ज्यादा प्रविष्टियां प्राप्त हुई थी। यह हमारे देश में उत्कृष्ट सिनेमा के विकास तथा भारतीय फिल्म समुदाय द्वारा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों को दिए जाने वाले महत्त्व का द्योतक है। मैं, पुरस्कार विजेताओं के चयन के सराहनीय परंतु कठिन कार्य के लिए विशिष्ट निर्णायक मंडल के सदस्यों की सराहना करना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि यह कार्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण और भारी रहा होगा।

5. जीवंत भारतीय फिल्म उद्योग एक वर्ष में एक दर्जन से ज्यादा भाषाओं में 1000 से अधिक फिल्में बनाता है। हमारा सिनेमा न केवल हमारे देश की बहु-सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है बल्कि यह हमारी भाषायी समृद्धि का भी प्रतीक है। यह एक राष्ट्रीय निधि है तथा सच्चे अर्थों में देश की सॉफ्ट पावर है जो अंतरराष्ट्रीय सम्बंध स्थापित करता है और सहजता के साथ विश्व को जोड़ता है।

6. मैं इस अवसर पर सिनेमा के एक महत्त्वपूर्ण पहलू पर अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूं। अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम होने के अलावा सिनेमा युवाओं को प्रभावित तथा प्रेरित करने का भी एक साधन है। जब हमारे युवा हिंसा तथा रक्तपात वाले दृश्य देखते हैं तो इससे उनको मनश्चेतना प्रभावित होती है। यह हमारे फिल्म निर्माताओं की जिम्मेदारी है कि वे स्पष्ट रूप से कलात्मक चित्रण तथा अन्यथा में अंतर करने के सुविचारित प्रयास करें। चलचित्र की सिनेमाई विषयवस्तु का लोगों, खासकर नई पीढ़ी, के सामाजिक व्यवहार पर वांछित प्रभाव पड़ना चाहिए। आज मूल्यों के हृस को देखते हुए सिनेमा को हमारी नैतिकता की दिशा के पुनर्निर्धारण में उत्प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिए। हमारे चलचित्र निर्माताओं को देशभक्ति, महिलाओं का सम्मान, करुणा तथा सहिष्णुता तथा ईमानदारी और अनुशासन के मूलभूत मूल्यों के चित्रण तथा उनके प्रचार में अपने सर्जनात्मक प्रयासों का उपयोग करना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि फिल्म उद्योग से जुड़ा हर व्यक्ति अपनी प्रतिभा तथा कलात्मक शौक का उपयोग सार्थक तथा सामाजिक रूप से प्रासंगिक सिनेमा बनाने में करेगा।

मित्रो,

7. भारत का मीडिया और मनोरंजन उद्योग आज बदलाव के संक्रांतिकाल में है। यह पूर्णत: डिजीटल परिदृश्य में तेज गति से प्रवेश के लिए तत्पर है। भारतीय सिनेमा थियेटरों, लगभग दो हजार मल्टीप्लेक्सों से सीधे तथा टीवी और इंटरनेट के जरिए देश और विदेश के करोड़ों लोगों से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2013 में भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग ने वर्ष 2012 के मुकाबले 11.8 प्रतिशत की अधिक विकास दर हासिल की तथा लगभग 92000 करोड़ रुपए का कुल कारोबार किया। इस उद्योग के वर्ष 2018 तक 14.2 प्रतिशत की मिश्रित वार्षिक विकास दर दर्ज करके 1.8 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है।

8. इस डिजीटल दशक की प्रौद्योगिकीय और वैज्ञानिक प्रगति ने अवसरों के कपाट खोल दिए हैं। तथापि यह मानव जज्बे की जीत तथा वास्तविक प्रतिभा का सृजन है, जो सदैव सिनेमाई प्रगति को निर्धारित करेगा। हमें कहानी कहने वाले कहानीकारों, इन कहानियों को पर्दे पर उतारने वाले कलाकारों, हमारी कथाओं को आकर्षक बनाने वाले विषय सामग्री के रचनाकारों और विषय सामग्री के संपादकों तथा चित्रों के जरिए हमारे अंतरतम् से बात करने वाले चलचित्रकारों की आवश्यकता है। भविष्य की ओर अग्रसर होते हुए, हमें भारतीय सिनेमा की महान विभूतियों—दादा साहेब फाल्के, सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक, विमल रॉय, मृणाल सेन, अदूर गोपालकृष्णनन, एम.एस. सथ्यू, गिरीश कसरावल्ली, गुरुदत्त तथा देश के भीतर और विश्व मंच पर अग्रणी रहे अन्य लोगों से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।

9. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि अधिकाधिक युवा वृत्तचित्रों के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। वृत्तचित्र सामयिक सामाजिक विषयों को उठाने का अवसर प्रदान करते हैं, जिनमें से बहुत से प्रश्न असहज होने के कारण लम्बे समय तक दबे रहे हैं। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि सरकार, प्रत्येक दो वर्ष में, अंतरराष्ट्रीय वृत्तचित्र फिल्म समारोह के आयोजन द्वारा देश में वृत्तचित्र आंदोलन को मजबूत बनाने में योगदान कर रही है।

मित्रो,

10. हम 16वीं लोक सभा के चुनाव की समाप्ति की ओर अग्रसर हैं, जो विश्व में कहीं भी होने वाला सबसे वृहत चुनावी आयोजन है और जैसा कि वक्ता कहते हैं, यह ‘लोकतंत्र का पर्व’ है। यह प्रसन्नता की बात है कि फिल्म उद्योग के बहुत से लोगों ने स्वयं या निर्वाचन आयोग के सहयोग से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नागरिकों की सहभागिता को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया है और विशेषकर मतदान के महत्त्व पर बल दिया है।

11. मैं, इस वर्ष चुनावों की दौड़ में बहुत बड़ी संख्या में फिल्म उद्योग के विख्यात लोगों की भागीदारी देख रहा हूं। हमारे देश के फिल्म उद्योग से अनेक अहम राजनीतिक नेता उभर कर आए हैं तथा सिनेमा ने महत्त्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को को प्रकाश में लाने तथा हमारी राजनीतिक प्रणाली की कमियों को उजागर करने में विशेष भूमिका निभाई है।

12. भारतीय फिल्म उद्योग में देश के विभिन्न हिस्सों के लोग शमिल हैं जो अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं तथा समाज के अनेक वर्गों से संबंध रखते हैं। यह एक ऐसा उद्योग है जिसने बहुत से लोगों को जमीन से आसमान तक पहुंचने के अवसर प्रदान किए हैं। मैं फिल्म उद्योग से आग्रह करता हूं कि वह अपनी उदारता, बहुलवाद और समावेशिता को कायम रखे और उसे मजबूत बनाए तथा उसका पूरे देश में विस्तार करे।

13. मैं एक बार फिर से उनके सराहनीय कार्य के लिए निर्णायक मंडल के सदस्यों, जिनमें से प्रत्येक एक प्रख्यात फिल्म शख्सियत है, की प्रशंसा करता हूं तथा आज के सभी पुरस्कार विजेताओं को एक बार फिर से बधाई देता हूं।

जय हिंद!

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