छठे फिक्की हील 2012 वार्षिक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य सुविधा सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण

नई दिल्ली : 28.08.2012

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यह मेरे लिए, वास्तव में बड़े गर्व की बात है कि मेरा पहला सार्वजनिक कार्यक्रम स्वास्थ्य से जुड़ा है तथा इसे फिक्की जैसे एक प्रमुख संगठन द्वारा आयोजित किया जा रहा है। सम्मेलन का विषय ‘सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा : स्वप्न अथवा सच्चाई’ सटीक और सामयिक है। सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा एक सपना है परंतु इसी के साथ वह सच्चाई से दूर भी नहीं है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे वास्तविकता में बदलें।

2. अपने नागरिकों का अच्छा स्वास्थ्य किसी भी देश की बुनियाद होती है। जो व्यक्ति स्वस्थ नहीं होता, वह सीखने, विकास करने तथा उत्पादक कार्य करने के अवसरों से फायदा नहीं उठा पाता। भारत में, इसके नागरिकों को बहुत से अधिकारों की गारंटी दी गई है परंतु इनमें से किसी भी अधिकार का, उन व्यक्तियों द्वारा न तो उपयोग किया जा सकता है और न ही लागू किया जा सकता है जो बीमार हैं, दुर्बल हैं और अपनी सारी ऊर्जा इलाज और चिकित्सा संबंधी देखभाल पर ही खर्च कर देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2005 में सभी बीमारियों को मिलाकर हुई मृत्युओं के कारण भारत को अपने सकल घरेलू उत्पाद के 1.3 प्रतिशत के बराबर आकलित आर्थिक हानि उठानी पड़ी थी। यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो गैर-संक्रामक बीमारियों की संख्या बढ़ने से यह हानि वर्ष 2015 तक सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत तक पहुंचने की आशंका है। इसलिए, हमारा लक्ष्य ऐसी स्वास्थ्य-सुविधा व्यवस्था कायम करना होना चाहिए जिसमें वहनीय मूल्य पर दवाओं और चिकित्सा की उपलब्धता की सुनिश्चितता हो। यह मानव संसाधन क्षमता के पूर्ण उपयोग के लिए जरूरी है और इसे प्राप्त करने के लिए भारत प्रतिबद्ध है। हमारे सामने चुनौती है कि इसे वास्तविकता में कैसे बदला जाए?

3. यह लक्ष्य अन्य कई मुद्दों से जुड़ा हुआ है, जैसे कि स्वास्थ्य सुविधा के लिए धन की व्यवस्था का क्या तरीका हो, यह सुविधा किस हद तक दी जाए; इसे चलाने के लिए किन भागीदारों को इसमें शामिल किया जाए; चिकित्सा शिक्षा को कैसे बढ़ाया जाए और चिकित्सा अनुसंधान को कैसे प्रोत्साहित किया जाए। स्वास्थ्य-सुविधा प्रदान करने के लिए अलग-अलग देशों ने अलग-अलग मॉडल विकसित किए हैं। इन मॉडलों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि स्वास्थ्य सुविधा प्रणाली को देश की जरूरतों के अनुसार होना चाहिए इसलिए भारत को अपनी खुद की परिस्थितियों तथा जरूरतों के अनुसार सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त करने पर विचार करना होगा और दूसरे लोगों के अनुभवों से प्राप्त सीख से लाभ उठाने का ध्यान रखना होगा।

4. भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र, दोनों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। इसी तरह, उपलब्ध सेवा की गुणवत्ता में भी बहुत अधिक फर्क है। कुछ निजी अस्पताल विश्व स्तरीय सुविधाएं दे रहे हैं, यहां तक कि तृतीय विश्व के लोग यहां पर इलाज के लिए आते हैं, जिससे चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है। दूसरी ओर, बहुत से लोगों को, खासकर निर्धन और वंचित लोगों को, बुनियादी चिकित्सा सुविधा भी उलपब्ध नहीं हो पाती। हमें अपनी चिकित्सा सुविधा प्रणाली को इस तरह विकसित करना होगा जो ग्रामीण तथा शहरी दोनों तरह के इलाकों में, समाज के सभी वर्गों की चिकित्सा जरूरतों को पूरा कर सकें।

5. भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में इस तरह का बदलाव लाना, जो कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने में सक्षम हो, एक ऐसी प्रक्रिया है जिस पर बहुत समय लगेगा। इस दिशा में, एक बड़ी पुनर्गठन प्रक्रिया राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के द्वारा शुरू हुई है, जिसे वर्ष 2005 में शुरू किया गया था। इसके तहत, देश के प्रत्येक गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार तथा उप केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा अवसरंचना को मजबूत बनाने की परिकल्पना की गई थी। अब लक्ष्य यह है कि इस सुविधा का प्रसार शहरी इलाकों तक भी किया जाए। स्वास्थ्य सुविधा के हर स्तर पर, जरूरी मानदंडों का पालन होना चाहिए। स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों का नेटवर्क स्थापित करना होगा। यह तभी जारी रह सकता है जबकि हमारे पास समुचित संख्या में चिकित्सक तथा अन्य पैरामेडिकल सहायक कर्मचारी हों। केवल अस्पतालों का निर्माण कर देना ही काफी नहीं है। उन्हें संचालित करने तथा कारगर बनाने के लिए मानव संसाधन की जरूरत है। इसके लिए मेडिकल कॉलेजों, नर्सिंग संस्थानों तथा पैरामेडिकल व्यवसायों के लिए प्रशिक्षण स्कूलों की संख्या में समुचित वृद्धि करनी होगी। प्रशिक्षित चिकित्सा कार्मिकों की कमी, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता में एक बड़ी बाधा बन सकती है।

6. परंपरागत औषधियों और स्वास्थ्य सुविधाओं की विभिन्न पद्धतियों से भी इस क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। भारत की स्वास्थ्य सुविधा प्रणाली की कुछ अन्य विशेषताएं भी हैं जो कि स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं। इनमें, अन्य के साथ-साथ, मां और बच्चे की स्वास्थ्य सुविधा की स्कीम तथा सार्वभौमिक प्रतिरक्षा कार्यक्रम शामिल हैं जो कि लाभभोगियों की संख्या तथा भौगोलिक विस्तार के नजरिए से पूरी दुनिया में सबसे बड़े प्रतिरक्षा कार्यक्रमों में से है।

7. सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा से जुड़ा हुआ एक अन्य मुद्दा इसकी वहनीयता है। स्वास्थ्य के लिए होने वाले निजी खर्च का 72 प्रतिशत धन दवाओं पर व्यय होता है। भारत ने, सार्वजनिक चिकित्सा सुविधाओं के तहत स्वास्थ्य सुविधा चाहने वाले मरीजों को मुफ्त में जेनेरिक औषधियां वितरित करने का बड़ा फैसला लिया है। इससे, उनकी जेब से होने वाला खर्च कम होगा और उन्हें, खासकर निर्धनों और वंचितों को, वहनीय मूल्य पर दवाएं प्राप्त हो पाएंगी। इसके कार्यान्वयन के लिए धन की तथा कुशल प्रबंधन प्रणालियों की जरूरत होगी। तमिलनाडु की राज्य सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी प्रबंधन प्रणाली का उपयोग करते हुए एक सफल मॉडल विकसित किया है। आज के युग में, प्रौद्योगिकी आधारित पहलों, जिसमें टेलीमेडिसिन भी शामिल है, का प्रयोग करके स्वास्थ्य सुविधा की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है।

8. इसके अलावा, धन की उपलब्धता का प्रश्न आता है। सरकार का प्रयास है कि वह स्वास्थ्य पर खर्च को मौजूदा स्तर से बढ़ाकर वर्ष 2017 तक, अर्थात् 12वीं योजना के अंत तक, सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक और वर्ष 2022, अर्थात् 13वीं योजना के अंत तक, 3 प्रतिशत तक ले जाए। सरकार अकेले ही स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं करा सकती। जहां हमारा लक्ष्य यह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा सेक्टर को मजबूत किया जाए, वहीं हमें स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक और निजी सेक्टरों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के तरीके खोजने होंगे। सभी भागीदारों को सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के प्रयासों में योगदान देना होगा। फार्मासिस्ट से डॉक्टर तक, उद्योग से औषधि निर्माता तक, चिकित्सा बीमा से अस्पतालों के प्रबंधन तक तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के संचालन तक, स्वास्थ्य प्रणाली की सफलता में, सभी की भूमिका है। भारत की शैक्षणिक, वैज्ञानिक, तकनीकी तथा औद्योगिक क्षमताओं को देखते हुए, चिकित्सा अनुसंधान और नवान्वेषण के केंद्र के रूप में इसकी संभावनाओं का पूरी तरह उपयोग किया जाना चाहिए।

9. यह उचित नहीं होगा कि हम स्वास्थ्य सुविधा की उपलब्धता को केवल उपचारात्मक तथा इन्टरवेंशनिस्ट नजरिये के स्तर पर ही देखें। निवारक स्वास्थ्य सुविधा भी उतनी ही जरूरी है, खासकर भारत में, जहां मधुमेह तथा कार्डियो-वेस्कुलर संबंधी बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। अत: हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को जहां लोगों का उपचार करना होगा वहीं उन्हें यह परामर्श तथा मार्गदर्शन भी देना होगा कि इनमें से कई चिकित्सा संबंधी स्थितियों से कैसे निपटा जाए और उनसे बचा जाए। स्वच्छता और सफाई, बीमारियों की रोकथाम के लिए प्राथमिक जरूरत है। इन प्रयासों में स्थानीय स्तर पर, रखकर ग्राम स्तर पर, पंचायती राज संस्थाओं की सहभागिता से इसका कारगर कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकता है।

10. मुझे विश्वास है कि यह सम्मेलन इन सभी तथा अन्य बहुत से आपस में जुड़े हुए मुद्दों पर व्यापकता से विचार करेगा, जिससे लोगों को सुगम, वहनीय तथा कारगर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो सके।

धन्यवाद।

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