चतुर्थ सार्वजनिक क्षेत्र दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 26.04.2013

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मुझे चतुर्थ सार्वजनिक क्षेत्र दिवस के अवसर पर आपके बीच आकर बहुत खुशी हो रही है, जो कि हमारे देश की आर्थिक प्रगति में सार्वजनिक क्षेत्र की बहुमूल्य साझीदारी को मान्यता प्रदान करने का अवसर है। आज जब हम उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए कुछ चुनिंदा केंद्रीय सार्वज्निक क्षेत्र के उद्यमों को पुरस्कृत कर रहे हैं, यह समय सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करने की हमारी प्रतिबद्धता को दोहराने का अवसर भी है। मैं सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय तथा सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम संबंधी पुनर्निर्माण बोर्ड को इस महत्त्वपूर्ण समारोह के आयोजन के लिए बधाई देता हूं।

देवियो और सज्जनो, हमारा संविधान, सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति हमारी कार्यनीति का मार्गदर्शन करता है। भारत की जनता ने संविधान की उद्देशिका के द्वारा, अपने सभी नागरिकों को राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक न्याय प्रदान करने का संकल्प लिया था। राज्य की नीति संबंधी एक नीति निर्देशक तत्त्व है कि : ‘‘समुदाय के भौतिक संसाधनों के स्वामित्व तथा नियंत्रण का इस प्रकार बंटवारा किया जाए, जो सर्वोत्तम ढंग से आम हित में कार्य करे।

केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, भारतीय अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण सहायक प्रणाली रहे हैं जब हमने अपनी पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की थी, उस समय हमारे नए-नए देश में स्वस्थ सामाजिक-आर्थिक परिवेश का अभाव था। उद्योग में आधुनिक तकनीक का प्रयोग सीमित था। 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी, जिससे कृषि जोतों तथा कृषि उत्पादकता के आकार में कमी आती गई। ग्रामीण जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का 83 प्रतिशत थी तथा वह लगातार अल्प रोजगार तथा अल्प आय से ग्रस्त रहती थी। 20वीं सदी के पहले पांच दशकों के दौरान जनसंख्या, वृद्धि 50 प्रतिशत से अधिक थी परंतु इस बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए रोजगार सृजन पर्याप्त नहीं था।

तेजी से आर्थिक विकास के लिए, औद्योगीकरण, रोजगार तथा अवसंरचना के सृजन, संतुलित क्षेत्रीय विकास तथा स्थिर मूल्यों की जरूरत महसूस हुई। उद्योग के विकास के लिए निजी पूंजी और उद्यमिता का अभाव था। आज, निजी कारपोरेट सेक्टर की बचत सकल घरेलू उत्पाद की 7.2 प्रतिशत है। 1950-51 में यह केवल 0.9 प्रतिशत थी। सार्वजनिक क्षेत्र, विकास के साधन के रूप में स्वाभाविक विकल्प था।

हमारी विकास प्रक्रिया में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुखता, 1948 और 1956 के औद्योगिक नीति संकल्पों में दोहराई गई थी। 1956 की नीति में स्पष्ट रूप से सार्वजनिक क्षेत्र को प्रमुख भूमिका प्रदान की गई थी। इसमें कहा गया था कि ‘‘राज्य धीरे-धीरे नए औद्योगिक उपक्रमों की स्थापना तथा परिवहन सुविधाओं के विकास में प्रमुख और प्रत्यक्ष जिम्मेदारी ग्रहण करेगा।’’

हमारी विकास प्राथमिकताओं में विस्तार होता गया है। शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पर्यावरण जैसे सेक्टरों में अधिक सार्वजनिक निवेश की जरूरत महसूस हुई। धीरे-धीरे, वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के स्थान पर उनके उत्पादन के लिए सुविधा प्रदाता के रूप में, शासन के संचालन में बड़ा परिवर्तन देखा गया। भारत में पूंजी बाजार के विकास के साथ, निजी उद्यमियों की जोखिम उठाने की क्षमता में वृद्धि हुई क्योंकि वे आसानी से संसाधन जुटा सकते थे। देश के औद्योगिक परिदृश्य में पूंजी-बहुल, प्रौद्योगिकीय दृष्टि से उन्नत तथा विश्व-स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक निजी व्यवसाइयों ने प्रमुख स्थान ग्रहण कर लिया।

इन घटनाक्रमों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र में सरकारी निवेश का मूल्यांकन शुरू हुआ। औद्योगिक नीति संकल्प 1991 में केंद्र्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विकास के लिए अवसंरचना, तेल और खनिज संसाधनों की खोज और दोहन, तथा रक्षा उपकरण जैसे कुछ प्राथमिकता क्षेत्रों का निर्धारण किया गया था। कुछ सुधारात्मक उपाय, खासकर केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के शासन ढांचे में, शुरू किए गए थे ताकि बाजार उन्मुखीकरण, संचालन में स्वायत्तता तथा प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी से पैदा होने वाली चुनौतियों से निपटा जा सके।

लाभ कमाने वाले केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को महारत्न, नवरत्न तथा मिनीरत्न स्कीम के माध्यम से प्रबंधकीय तथा वाणिज्यिक स्वायत्तता प्रदान की गई है। आज हमारे पास 7 महारत्न, 14 नवरत्न तथा 68 मिनीरत्न हैं। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स लिमिटेड तथा गेल लिमिटेड को हाल ही में महारत्न की हैसियत प्रदान की गई है। मैं सभी नवरत्न, मिनीरत्न तथा अन्य केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से आग्रह करता हूं कि वे अपने कार्य में सुधार करते रहें और स्वायत्तता के अगले स्तर के लिए मानदंड पूरे करें। बाजार की जरूरतों के अनुरूप तेजी से अपनी कार्रवाई तय करने के लिए संचालनात्मक लचीलापन प्रदान करने के इन उपायों से उनके कार्य निष्पादन में सुधार होगा।

स्वायत्तता तथा जवाबदेही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। स्वायत्तता के साथ-साथ समुचित जवाबदेही भी होनी चाहिए। संसदीय पर्यवेक्षण, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के द्वारा लेखापरीक्षा, बोर्डों में सरकार का प्रतिनिधित्व तथा प्रतिवर्ष कार्य निष्पादन तय करते हुए सरकार और प्रबंधन के बीच समझौता ज्ञापन, जैसे उपायों के अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।

स्टॉक एक्सचेंज पर केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का सूचीकरण जवाबदेही का एक और स्तर हो सकता है। यह बाजार उन्मुखीकरण के साधन के रूप में भी कार्य करेगा। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के 50 उद्यम सूचीबद्ध हैं। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश गैर-सूचीबद्ध उद्यमों में सूचीबद्धता नियमों को पूरा करने की क्षमता है। मुझे विश्वास है कि उनमें से बहुत से भविष्य में पूंजी बाजार में प्रवेश करेंगे और सूचीबद्धता का फायदा उठाएंगे। सूचीबद्धता के जरिए मूल्य संवर्धन की संभावना अधिक होती है। उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2010 में सरकारी हिस्से के 10 प्रतिशत विनिवेश के जरिए कोल इन्डिया लिमिटेड की सूचीबद्धता, जिससे 15,199 करोड़ रुपए प्राप्त हुए, भारत में सबसे बड़ी शुरुआती सार्वजनिक पेशकश थी।

देवियो और सज्जनो, सार्वजनिक क्षेत्र का विकास भारत की आर्थिक प्रगति की कहानी को दर्शाता है। आर्थिक विकास आरंभ करने के लिए सरकार के चयनित साधन के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र की शुरुआत की गई थी। आर्थिक उन्नति से, उन्नत तकनीकी-प्रबंधकीय तरीकों से कुशल संस्थान के रूप में कार्य करने वाले निजी कॉरपोरेट क्षेत्र की मौजूदगी बढ़ी। विदेशी निवेश के लिए विभिन्न क्षेत्रों का खोलने की हमारी नीति द्वारा इस प्रक्रिया में मदद मिली। सरकार ऐसे क्षेत्रों से सहजता से पीछे हट गई जिनमें निजी क्षेत्र बेहतर ढंग से कार्य कर सकता था।

परिवर्तन के साथ निरंतरता भारत की औद्योगिक नीति की पहचान रही है। ग्रामीण आवास और ग्रामीण ऊर्जा जैसे सामाजिक क्षेत्र की परिसंपत्ति के निर्माण के लिए, सरकार के निवेश को समायोजित करना जरूरी है ताकि राजस्व संतुलन पर अनुचित दबाव न पड़े। इस पद्धति से 1991 की औद्योगिक नीति पुन: सुदृढ़ होगी जिसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश की समीक्षा की आवश्यकता है।

क्रय शक्ति समानता के आधार पर, आज हमारी अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, दोनों के सहअस्तित्व के लिए स्थान और आवश्यकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के हमारे उपायों ने श्रेष्ठ परिणाम दर्शाए हैं। बहुत से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने निजी क्षेत्र के साथ सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा की है और वे विजेता के तौर पर सामने आए हैं। तेल और प्राकृतिक गैस निगम अब भारत की सबसे मूल्यवान कम्पनी बन गई है। भारतीय स्टेट बैंक के अलावा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के पांच उद्यम-तेल और प्राकृतिक गैस निगम, राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम, कोल इंडिया, गेल (इंडिया) और भेल ने मानदंड सूचकांक, एस एंड पी बीएसई सेनसेक्स का हिस्सा बन गए हैं।

हमारे सार्वजनिक क्षेत्र का विकास वास्तव में शानदार रहा है। भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना से पूर्व 29 करोड़ रुपये के कुल निवेश वाले 5 केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की तुलना में 31 मार्च, 2012 को 7.3 लाख करोड़ रुपये के कुल निवेश वाले 260 केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हैं। 2011-12 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निष्पादन प्रसन्न होने का एक बड़ा कारण है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की 18.2 लाख करोड़ रुपये की कुल आय, भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 34.8 प्रतिशत है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की विदेशी मुद्रा आय 1.2 लाख करोड़ रुपए है जो भारत के कुल निर्यात का 8.5 प्रतिशत है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने कर, सीमा शुल्क, ऋणों पर ब्याज और लाभांश के रूप में, केन्द्रीय राजकोष में 1.6 लाख करोड़ रुपए का योगदान किया है। यह, भारत सरकार की राजस्व आय के 21.4 प्रतिशत के बराबर है।

देवियो और सज्जनो, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की विकास क्षमता को और अधिक निवेश, तीव्र विस्तार तथा प्रौद्योगिकी उन्नयन के द्वारा मजबूत किया जाना चाहिए। 31 मार्च, 2012 को केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की कुल नकदी और बैंक बैलेंस 2.8 लाख करोड़ रुपए था। इससे क्षमता विस्तार और कार्यनीतिक परिसम्पत्ति सृजन में निवेश करने की उनकी क्षमता का परिचय मिलता है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को बढ़ते हुए विदेशी सहयोग के जरिए अपने प्रौद्योगिकी मॉडल को उन्नत बनाना चाहिए। उन्हें अपने प्रचालन स्तर और बाजार पहुंच को बढ़ाने के लिए और अधिक विदेशी निवेश का लक्ष्य बनाना होगा। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हमारे केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, विदेशी निवेश वाली परियोजनाओं को पूरा करने में सक्रिय हैं। मुझे बताया गया है कि ओ.एन.जी.सी. विदेश लिमिटेड 14 देशों में 30 खोज और उत्पादन परियोजनाओं में भाग ले रही है। पांच अग्रणी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने विदेश में कोयला परिसंपत्ति हासिल करने के लिए एक संयुक्त उद्यम, इन्टरनेशनल कोल वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड का गठन किया है।

केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को कॉरपोरेट सामाजिक उत्तर दायित्व संबंधी पहलों पर बल देना चाहिए। लोकसभा द्वारा पारित, कम्पनी विधेयक के अनुसार 500 करोड़ रुपए या उससे अधिक के विशुद्ध मूल्य या 1000 करोड़ रुपए या उससे अधिक के कारोबार या 5 करोड़ रुपए या उससे अधिक के शुद्ध लाभ वाली कम्पनी को तीन तात्कालिक आगामी वित्तीय वर्षों के दौरान अपने औसत शुद्ध लाभ का कम से कम 2 प्रतिशत कारपोरेट सामाजिक दायित्व पर खर्च करना चाहिए। बहुत से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम शहरों और नगरों के बड़े हिस्सों में बसे हुए हैं। ग्रीनफील्ड केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने औद्योगिक टाउनशिप स्थापित किए हैं। इन केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरणीय उन्नयन के क्षेत्रों में कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व संबंधी कार्यकलापों पर ध्यान देना चाहिए।

सार्वजनिक क्षेत्र में सीमा के निर्धारण के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह चिंता का विषय है कि मार्च, 2012 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के 66 उद्यम बीमार थे। यद्यपि ऐसे केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की संख्या विगत कुछ वर्षों के दौरान कम हुई है परंतु इन बीमार इकाइयों के पुनर्जीवित करने, उनके सुदृढ़ीकरण और आधुनिकीकरण के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इनके तेजी से स्वस्थ होने और बीमार होने से बचाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम संबंधी पुनर्निर्माण बोर्ड की सिफारिशों पर अमल करना होगा।

सार्वजनिक क्षेत्र हमारे देश की प्रगति के पीछे मजबूती से खड़ा है। मुझे विश्वास है कि यह दृढ़ता से प्रगति करेगा और भविष्य में और ऊंचे शिखर छुएगा तथा राष्ट्र की अपेक्षाएं पूरी करेगा। मैं उन सभी को बधाई देता हूं जिन्हें उनके असाधारण कार्य निष्पादन के लिए स्कोप प्रतिभा पुरस्कार प्रदान किया गया है। भविष्य में और अधिक सफलता प्राप्त करने के लिए आप सभी को मेरी शुभकामनाएं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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