भारतीय वन सेवा के 2013-15 बैच के परिवीक्षाधीनों द्वारा भेंट के दौरान भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 05.08.2014

डाउनलोड : भाषण भारतीय वन सेवा के 2013-15 बैच के परिवीक्षाधीनों द्वारा भेंट के दौरान भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 306.52 किलोबाइट)

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नमस्कार!

सबसे पहले मैं, आप सभी का राष्ट्रपति भवन में स्वागत करता हूं। मैं आपको एक प्रमुख अखिल भारतीय सेवा,भारतीय वन सेवा में शामिल होने के लिए बधाई देता हूं। यह आपकी शैक्षणिक उत्कृष्टता का प्रतीक है। भारतीय वन सेवा में शामिल होकर आपने अपनी पेशेवर आजीविका की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। यह केवल शुरुआत है तथा आपके सामने सरकार में33 से 35 वर्षों का उपलब्धिपूर्ण तथा चुनौतीपूर्ण सेवाकाल है।

2. वन भारतीय लोकाचार तथा संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। हमारी सभ्यता ने सदैव अपनी बौद्धिक तथा आध्यात्मिक शक्ति वनों से प्राप्त की है। सहनशीलता तथा समत्व हमारे लोकाचार के अनोखे गुण हैं क्योंकि भारतीय सभ्यता की जड़ें वनों में हैं। इसलिए वन हमारे लिए केवल संसाधन नहीं हैं वरन् वह देश वह देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिकता तथा बौद्धिक विरासत को समेटे हुए हैं। सरकार ने आपको इस अत्याधिक बेशकीमती धरोहर की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी है।

3. मुझे, हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रसिद्ध उक्ति याद आती है। उन्होंने कहा था, ‘हम जो कुछ विश्व के वनों के साथ कर रहे हैं वह उसका प्रतिबिंब है जो हम खुद के साथ तथा एक-दूसरे के साथ कर रहे हैं।’ पिछले दशकों में पर्यावरण के हृस, वनाच्छादन में कमी तथा इस सबसे कहीं अधिक, वैश्विक तापन के कारण दुनिया मानव जीवन के अस्तित्व को खतरे के प्रति सजग हुई है। इसीलिए पर्यावरण21वीं सदी के लिए प्रमुख विषय बनकर उभरा है और वन इसका अभिन्न हिस्सा है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले दुश्प्रभावों के समाधान के लिए यह जरूरी है कि सभी राष्ट्र इस मुद्दे के समाधान के लिए मिल-जुलकर कार्य करें।

4. संभावित कार्बन अवशोषक होने के कारण, वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा तथा उसके परिणामस्वरूप वैश्विक तापन के खतरे को कम करने के लिए वन एक महत्वपूर्ण साधन बन सकता है। इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि समुद्र तटीय क्षेत्रों में उगने वाले सदाबहार वन, तटीय क्षेत्रों को चक्रवातों और सुनामियों से बचाते हैं; पहाड़ी ढलानों पर उगने वाले वन मिट्टी का संरक्षण करते हैं तथा भूस्खलन तथा अंधाधुंध बाढ़ से बचाव करते हैं। अच्छे जलागाम स्रोत यदि घने जंगलों से घिरे हों तो उन क्षेत्रों को सूखे से बचाते हैं और कृषि उत्पादकता बढ़ाते हैं। वन वास्तव में हमसे बहुत ही कम लेते करते हैं परंतु मानवता को बहुत कुछ देते हैं। हमारे देश के लिए यह आवश्यक है कि स्थानीय मुद्दों तथा वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिए वन प्रबंधन की ठोस परिपाटियां अपनाएं। हाल ही में पुणे के नजदीक हुआ भूस्खलन हमारे लिए यह संकेत है कि हम तत्काल तथा दृढ़ निश्चय के साथ इस दिशा में कार्य शुरू कर दें।

5. राष्ट्रीय वन नीति में हमारे देश के कुल भू-क्षेत्र के 33 प्रतिशत हिस्से को वनों से अच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत राज्यवन सर्वेक्षण रिपोर्ट2013 के अनुसार अभी कुल वन एवं वृक्ष आच्छादन लगभग 24प्रतिशत है। हम अभी अपने लक्ष्य से दूर हैं। युवा उत्साही तथा सर्जनात्मक मस्तिष्क के साथ आप इस राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में प्रयास करने के लिए सही स्थान पर हैं।

6.आदिवासियों सहित, लाखों निर्धन हमारे देश के जंगलों तथा उनके करीब रहते हैं। ये लोग भोजन,ईंधन की लकड़ी,चारे जैसी बुनियादी जरूरतों तथा दूसरी छोटी-मोटी जरूरतों के लिए वनों पर निर्भर हैं। मैं आपको समाज के इस तबके की जरूरतों के प्रति संवेदनशील रहने की अपेक्षा रखता हूं। पिछले वर्षों के दौरान हमारे देश ने देखभाल करो और उपयोग करो के सिद्धांत पर आधारित संयुक्त वन प्रबंधन मॉडल को अपनाया है। जिसके तहत वनों के प्रबंधन में जनता को जोड़ते हुए सहभागितापूर्ण नजरिए की परिकल्पना की गई है। आपको इसे आगे बढ़ाते हुए वन एवं उसके आसपास रहने वाले समुदायों के सतत् विकास के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। सफलता के ऐसे मॉडलों की कोई कमी नहीं है जिनके द्वारा समुदायों की सहभागिता से वनों के कारगर ढंग से बचाव किया जा सके। आपको प्राप्त अनुभव,ज्ञान तथा अकादमी में प्रशिक्षण के सहारे आप इस प्राकृतिक खजाने का उपयोग वनों पर निर्भर रहने वाले समुदायों के साथ करने के लिए समुदायों की सहभागिता तथा वनों के संरक्षण के लिए नवान्वेषी मॉडल विकसित कर सकते हैं।

7.वनों का प्रबंधन तथा उनका शासन एक चुनौती भरा काम है। इसे प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रयोग के द्वारा नागरिकों के अनुकूल बनाया जा सकता है। मैं समझता हूं कि मंत्रालय द्वारा वन-क्षेत्रों की अनापत्ति प्रदान करने के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रणाली (ई-फाइलिंग) शुरू करने की दिशा में कार्यरत है। वनों के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी की शुरुआत के लिए यह एक अच्छी शुरुआत है। मैं चाहूंगा कि देश में वनों के संरक्षण,सर्वेक्षण तथा शासन में प्रौद्योगिकी का व्यापक रूप से उपयोग हो।

8.भारत ने उत्सर्जन तीक्ष्णता को वर्ष 2005 की तुलना में वर्ष 2020 तक सकल घरेलू उत्पाद का 20 से 25 प्रतिशत तक कम करने के लिए घरेलू न्यूनीकरण लक्ष्य घोषित किया है। हमारे समाने गरीबी और बेरोजगारी की चुनौतियों का सामना करने के लिए त्वरित आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की भी चुनौती है। अपने दृढ़निश्चय के साथ त्वरित आर्थिक विकास की प्राप्ति के लिए हमें अल्प कार्बन समावेशी विकास कार्यनीति पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसमें मैं आप सभी नवान्वेषी वन प्रबंधन तथा सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रमों के द्वारा भारत को‘अल्प कार्बन अर्थव्यवस्था’ के रूप में उभरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते देखना चाहूंगा।

9.वनाधिकारी होने के नाते आपका काम आसान नहीं है। आपके सामने मौजूद चुनौतियां जटिल हैं तथा आपसे सदैव अत्यधिक अपेक्षाएं रहेंगी। इस देश के विशाल भू-भाग का वनीकरण करने की जरूरत है। वनों से हमें स्वच्छ जल तथा वायु जैव विविधता मूल्य,मृदा तथा जल संरक्षण जैसी जो सेवाएं तथा वस्तुएं मिलती हैं, उनमें सुधार की जरूरत है। इन सभी अपेक्षाओं को पूरा करना कोई आसान काम नहीं है तथा इसके लिए न केवल आप द्वारा प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त कौशल और ज्ञान की बल्कि इस तरह के परिवर्तन लाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग की जरूरत होगी। तथापि,मुझे विश्वास है कि अपने कार्य के प्रति आपके कठोर परिश्रम, दृढ़ निश्चय तथा प्रतिबद्धता के द्वारा आप देश द्वारा आपमें व्यक्त की गई उम्मीदों तथा भरोसे पर खरे उतरेंगे।

10.आपनी बात खत्म करने से पहले, मैं आपसे अपने ज्ञानार्जन की यात्रा जारी रखने का अनुरोध करुंगा। आपको बदलते अंतरराष्ट्रीय तथा घरेलू वन प्रबंधक मुद्दों की अद्यतन जानकारी होनी चाहिए तथा अपने पेशे के सर्वोत्तम परिपाटियों को अपनाना चाहिए। मैं गांधी जी द्वारा कही गई बात को स्मरण करना चाहूंगा, ‘‘इस तरह जिएं जैसे आप कल ही मरने वाले हों,इस तरह सीखें जैसे आप सदा जीवित रहने वाले हों।’’

धन्यवाद! 
जयहिन्द

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