भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल के द्वितीय दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण के चुनिंदा अंश

भोपाल, मध्य प्रदेश : 27.06.2014

डाउनलोड : भाषण भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल के द्वितीय दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण के चुनिंदा अंश(हिन्दी, 240.23 किलोबाइट)

speeches1. मुझे भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल के दूसरे दीक्षांत समारोह में आपके बीच आकर बहुत खुशी हो रही है। इस संस्थान ने आज अपने दूसरे बैच के विद्यार्थियों के साथ ही यह पीएचडी की पहली उपाधि प्रदान की है। यह भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है जो कि हमारे देश की शिक्षा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा की एक अपेक्षाकृत नई पीठ है।

2. वर्ष 2008 में 18 विद्यार्थियों के साथ आरंभ होकर भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल ने तेजी से प्रगति की है तथा आज यहां 178 पीएचडी शोधार्थियों के साथ 635 विद्यार्थी अध्ययनरत् हैं। यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि विद्यार्थियों में 36 प्रतिशत लड़कियों के साथ भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल ने देश में विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान में लैंगिक समता को प्रोत्साहन दिया है। इस संस्थान द्वारा लोगों के बीच वैज्ञानिक अभिरुचि को प्रोत्साहित करने तथा समाज के वंचित वर्गों तक पहुंच बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकर प्रसन्नता हो रही है।

3. किसी भी शिक्षा संस्थान के लिए दीक्षांत समारोह वर्ष भर का सबसे महत्त्वपूर्ण समारोह होता है। मैं उन सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्हें आज उपाधियां प्राप्त हुई हैं। यह न केवल उनके लिए बल्कि संकाय सदस्यों एवं कर्मचारियों; परिवार और मित्रों के लिए भी खुशी का दिन है जिन्होंने उनकी सफलता में भूमिका निभाई है। वर्ष 1956 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर के पहले वार्षिक दीक्षांत समारोह में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘‘जब मैं नए स्नातकों की ओर देखता हूं तो मैं उनको न केवल अपने जीवन की आजीविका की ओर अग्रसर देखता हूं, जो कि उम्र के इस पड़ाव पर हर एक युवक युवती के लिए एक अत्यंत रोमांचक कार्य होता है, बल्कि उन्हें देश के लिए खास तौर पर महत्त्वपूर्ण समय पर अग्रसर होते देखता हूं... मुझे लगता है कि रहने के लिए इस क्षण भारत से अधिक रोमांचक स्थान कोई दूसरा नहीं हो सकता’’। हमारा देश आज भी निवास करने तथा प्रगति करने के लिए उतना ही रोमांचक स्थान है जितना यह 58 वर्ष पूर्व था। भारत को आज पहले से कहीं अधिक ऐसे सक्षम तथा समर्पित स्नातकों की जरूरत है, जो उसे मजबूती से भविष्य की ओर ले जा सकें।

प्यारे स्नातको,

4. आपने अच्छे अंकों में उत्तीर्ण होकर एक अच्छी आजीविका की मजबूत नींव डाली है। आपने बहुत कठिन परिश्रम किया है तथा आप इसके योग्य हैं। परंतु आपको अपने पदक पाकर ही विश्राम नहीं करना है। आप पर इस देश की उम्मीदों और आकांक्षाओं का भार है। अत: अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपनी शिक्षा का उपयोग करें। इसी के साथ देश की सेवा करें; और देश सेवा का इससे अच्छा तरीका क्या हो सकता है कि कम भाग्यशाली लोगों को उनका स्वप्न पूरे करने में सहायता दी जाए। आपने जो ज्ञान प्राप्त किया है, सदैव उस पर खरा उतरें और उन मूल्यों को बनाए रखें जो आपकी मातृ संस्था ने आपमें भरे हैं। भविष्य की अनंत संभावनाओं का सपना देखें; उनके सपनों को साकार करने का प्रयास करें तथा दुनिया को बदलने में सहायता दें।

मित्रो,

5. यदि ऐसा कोई निवेश है जो वास्तव में किसी देश के अवसरों को बढ़ा सके तथा इसके भविष्य को संवार सके तो वह शिक्षा है। और यदि किसी देश में 25 वर्ष और उससे कम की आयु की जनसंख्या आधी से अधिक हो, जैसा कि आज भारत में है, तो इसके लिए एक मजबूत शिक्षण प्रणाली की हर हाल में अत्यधिक जरूरत है। हमारे देश के युवा ऊर्जा तथा महत्वाकांक्षाओं से भरे हुए हैं। उन्हें प्रतिस्पर्धा में विजय पाने तथा सफलता प्राप्त करने के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा तथा अपेक्षित कौशल प्रदान करने होंगे। परंतु मौजूदा शिक्षा का स्तर जनसंख्या की बढ़त से हमारी जो अपेक्षा है उसमें हमें निराशा हो सकती है।

6. यह दु:ख का विषय है कि भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता विश्व के प्रख्यात संस्थानों से निम्न स्तर पर है। काफी पहले 2012 में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर के वार्षिक दीक्षांत समारोह में मैंने इस बात पर हैरानी व्यक्त की थी कि वैश्विक सूची में सर्वोत्तम 200 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय संस्थान को स्थान नहीं मिला है। तभी से, चाहे वह दीक्षांत समारोह हों या फिर राष्ट्रपति भवन में वार्षिक सम्मेलन—मैं उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ अपने संवादों में अपनी उपलब्धियों के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए रेटिंग प्रक्रिया को और अधिक महत्त्व देने की जरूरत पर जोर देता रहा हूं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस दिशा में काफी रुचि लेकर पहलें शुरू की हैं। इसलिए यह बहुत संतोष की बात है कि पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने हमारे संस्थानों की गुणवत्ता को मान्यता देना शुरू कर दिया है। विषयवार विश्व रैंकिंग में मद्रास तथा बम्बई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को सिविल इंजीनियरी में 50 सर्वोत्तम संस्थानों में तथा दिल्ली और बम्बई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को इलैक्ट्रिकल इंजीनियरी में 50 सर्वोत्तम संस्थानों में स्थान दिया गया है। हमारे पांच संस्थान ब्रिक्स देशों के 20 सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में हैं। एशिया के सर्वोत्तम 100 संस्थानों में भारतीय संस्थानों की संख्या जो 2013 में 3 थी, इस वर्ष बढ़कर 10 हो गई है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी 50 वर्ष और उससे कम आयु के सर्वोत्तम 100 संस्थानों में शामिल है। मुझे विश्वास है कि समग्र रैंकिंग में भी हमारे संस्थान जल्दी ही विश्व के सर्वोत्तम 100 अथवा सर्वोत्तम 50 संस्थानों में शुमार होंगे।

7. गुणवत्ता में सुधार की आधारशिला औसत दर्जे के लिए कोई अवसर न रखते हुए, हमारे शैक्षणिक संस्थानों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने पर निर्भर है। शिक्षा को मेधावी व्यक्तियों को आकर्षित करने के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण तथा संतुष्टिकारक पेशा बनाया जाना चाहिए। विभिन्न विधाओं में संकल्पनात्मक समझ की बदलती प्रकृति को देखते हुए निरंतर संकाय विकास होना चाहिए। संकाय तथा विद्यार्थी आदान-प्रदान, पीठों में प्रवास तथा अल्पकालीन परियोजनाओं के नवान्वेषी मॉडलों के माध्यम से अकादमिक समुदाय के अधिकाधिक अंतरराष्ट्रीयकरण का प्रयास किया जाना चाहिए। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी में उन्नति का उपयोग बौद्धिक सहयोग, व्याख्यानों के आदान-प्रदान तथा विचारों और बेहतरीन परिपाटियां अपनाने के लिए किया जाना चाहिए।

8. संस्थानों के शासन ढांचे में सुगमता से निर्णय लेने की सुविधा होनी चाहिए। इसमें उद्योग के विशेषज्ञों तथा नामचीन पूर्व छात्रों सहित व्यापक विशेषज्ञता से लाभ उठाया जाना चाहिए। संयुक्त अनुसंधान तथा पीठों तथा अध्येतावृत्तियों की स्थापना जैसी गतिविधियों की शुरुआत के लिए उद्योग-शिक्षा जगत् के संपर्कों को संस्थागत व्यवस्थाओं से सशक्त किया जाना चाहिए।

मित्रो,

9. विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान, प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण की प्रगति के महत्तवपूर्ण संकेतक हैं। तथापि हमारी शिक्षा प्रणाली में वैज्ञानिक अनुसंधान की उपेक्षा प्रत्यक्ष दिखाई देती है। यह हमारे भावी विकास के लिए अच्छा संकेत नहीं है। क्योंकि भावी विकास हमारे संसाधनों के मौजूदा प्रौद्योगिकी के साथ उपयोग से कहीं अधिक इनके उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ बेहतर उपयोग से होगा। अच्छी शिक्षा प्रणाली में लगातार ज्ञान सर्जन की जरूरत है जो केवल उच्च गुणवत्तायुक्त अनुसंधान से ही हो सकता है। इसी परिकल्पना के साथ भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थानों की स्थापना की गई है। उनकी परिकल्पना उच्चतम् क्षमता के ऐसे अनुसंधान केंद्रों के रूप में की गई है जिनमें बुनियादी शिक्षा में शिक्षण तथा शिक्षा का पूरी तरह अत्याधुनिक अनुसंधान के साथ एकीकरण हो जाए। विज्ञान शिक्षा तथा अनुसंधान का यह सम्मिश्रण हमारे द्वारा अब तक अपनाए जा रहे उच्च शिक्षा मॉडल से हटकर है जिसमें विश्वविद्यालय मुख्यत: शिक्षा पर केंद्रित होते हैं तथा प्रयोगशाला और अनुसंधान एवं विकास केंद्र अनुसंधान करते हैं। इस संदर्भ में भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल द्वारा राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग से उन्नत अनुसंधान संचालित करने का प्रयास स्वागत योग्य कदम है।

10. भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थानों को अधिक से अधिक विद्यार्थियों को विज्ञान की ओर आकर्षित करने तथा इस आकर्षण को ठोस आजीविका विकल्पों में बदलने में प्रमुख भूमिका निभानी होगी। उन्हें विद्यार्थियों को ठोस संकल्पनात्मक समझ तथा विश्लेषणात्मक आधार से सुसज्जित करना होगा। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल के ‘अनुसंधान परिकल्पना दस्तावेज’ तथा अन्य पहलों का लक्ष्य अगले बीस वर्षों में इस संस्थान को अपनी श्रेणी में उच्चतम संस्थान बनने का है।

11. भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल को इस बात से अवगत रहना चाहिए कि आज उठाया गया हर-एक कदम महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह तय करेगा कि यह आने वाले समय में यह कैसा संस्थान बनेगा। मुझे विश्वास है कि यह संस्थान उन उम्मीदों पर खरा उतरेगा जिनके लिए यह स्थापित किया गया है। आइए, हम भावी पीढ़ियों की आंखों से सपना देखें। मैं, आप सभी को उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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