भारतीय विद्या भवन के दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
भुवनेश्वर, ओडिशा : 07.09.2013
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1. मुझे आज भारतीय विद्या भवन के संचार और प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर में प्रबंधन के स्नातकोत्तर डिप्लोमा के विद्यार्थियों के छठे बैच के दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है।
2. दीक्षांत समारोह विद्यार्थीजीवन के एक महत्वपूर्ण चरण के संपन्न होने का अहम् अवसर है। आज का दिन मान्यता प्रदान करने का दिन है जब इस वर्ष स्नातक बन रहे विद्यार्थियों की सफलता-जो सफलता लगन और समर्पण का परिणाम है, और उपलब्धियों को मान्यता दी जाएगी। यह एक ऐसा अवसर होगा जिसकी विद्यार्थी अपने शेष जीवन में मधुर याद रखेंगे। यह दिन उनके परिवार और मित्रों के लिए भी एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यह एक ऐसी उपलब्धि है जो उनके प्रिय और परिजनों के सहयोग के बिना कदापि पूरी न हो पाती।
देवियो और सज्जनो:
3. भारतीय विद्या भवन, पूरे भारत में फैले हुए 395 संस्थानों के माध्यम से दो लाख से अधिक विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहा है। 1938 में एक छोटी और मामूली शुरूआत करने वाला भारतीय विद्या भवन अब 75 वर्ष से अधिक पुराना हो गया है। मुझे गत वर्ष 12 दिसंबर को मुंबई में इसकी प्लेटिनम जयंती समारोह का उद्घाटन करने का सम्मान और सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
4. 1974 में अपनी स्थापना के बाद से, भारतीय विद्या भवन के भुवनेश्वर केन्द्र ने शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि यह निर्धन विद्यार्थियों को नियमित छात्रवृत्तियां और वृत्तियां प्रदान कर रहा है तथा गांधी कंप्यूटर प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा प्रदान कर रहा है। मुझे यह भी प्रसन्नता है कि भवन के संचार और प्रबंधन संस्थान को पूर्वी भारत का एक उत्कृष्ट संस्थान माना जाता है। यह सराहनीय है कि इस संस्थान ने न केवल शिक्षा बल्कि योग, खेल, सांस्कृतिक गतिविधियों और विदेश यात्राओं के जरिए विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास पर भी बल दिया है।
5. इस राष्ट्र के लोगों के उद्धार के लिए डॉ. के.एम. मुंशी के द्वारा किए गए अनेक नि:स्वार्थ प्रयासों में से भारतीय विद्या भवन की स्थापना भी एक है। भवन की स्थापना में, शिक्षा के एक माध्यम के रूप में उनका गहरा विश्वास निहित था जिसके बारे में उनका विश्वास था कि इससे भारत की उन्नति और विकास को पंख लग सकते हैं। डॉ. मुंशी ने एक बार कहा था, ‘‘भारत को एक बार फिर विश्वगुरु-एक ऐसी महाशक्ति माना जाएगा, जो वसुधैव कुटुम्बकम-विश्व परिवार का आदर्शों का मूर्त रूप है।’’ एक राष्ट्र के रूप में हमें इस स्वप्न को वास्तविकता में बदलने का पूरा प्रयास करना होगा।
देवियो और सज्जनो,
6. हमारी अर्थव्यवस्था वर्तमान में अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। परंतु हमें फिर भी विश्वास होना चाहिए कि हम इन बाधाओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। कुछ क्षेत्रों में चिंता हो सकती है परंतु निराशा या हताशा का कोई कारण नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियाद तत्व मजबूत बने हुए हैं। भारत के पास वर्तमान कठिनाइयों से प्रभावी रूप से निपटने के लिए आवश्यक संसाधन, प्रतिभा और नीतियां हैं।
7. 1900 और 1947 के बीच भारत का औसत वार्षिक आर्थिक विकास 1 प्रतिशत था। ऐसे निचले स्तर से उठकर हम पहले 3 प्रतिशत तक आए और उसके बाद बहुत तेज प्रगति की।
8. पिछले दशक में, भारत विश्व में एक सबसे तेज प्रगति करने वाले राष्ट्र के रूप में उभरा है। इस अवधि के दौरान, हमारी अर्थव्यवस्था में 7.9 प्रतिशत की वार्षिक औसत दर की वृद्धि हुई। आज हम खाद्यान उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हैं। 2010 -2011 के केन्द्रीय बजट में, संवर्धित कृषि उत्पादन की एक कार्यनीति के अंतर्गत, कार्यान्वयन के लिए ‘‘पूर्वी भारत में हरित क्रांति की शुरुआत’’ नामक कार्यक्रम बनाया गया था। चुनिंदा संकुलों में किसानों ने श्रेष्ठ कृषि तरीके अपनाए और संकर चावल प्रौद्योगिकी से के उपज में फायदों से लाभान्वित हुए। 2011-2012 में देश के कुल 104 मिलियन टन चावल के रिकार्ड उत्पादन में से पूर्वी क्षेत्र का योगदान 55 मिलियन टन चावल रहा, जो कि एक कीर्तिमान था। भारत, आज विश्व में चावल का सबसे बड़ा और गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। इस वर्ष 18.45 मिलियन टन दालों के उत्पादन से दालों के मामले में आत्मनिर्भरता के प्रति हमारी प्रगति एक शुभ संकेत है। कुछ वर्ष पहले यह अकल्पनीय था। इस गति को बनाए रखना होगा। एक वैश्वीकृत दुनिया में, बढ़ती हुई आर्थिक जटिलताओं के कारण हमें बाहरी और घरेलू दोनों कठिन कठिनाइयों के साथ बेहतर ढंग से निपटना सीखना होगा।
9. रुपये का वर्तमान अवमूल्यन, जो विगत एक वर्ष के दौरान अठारह प्रतिशत से अधिक है, उच्च खाद्य महंगाई और विनिर्माण कार्यकलापों में गिरावट चिंता के विषय हैं। वैश्विक कारकों ने भारत सहित, बहुत सी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को प्रभावित किया है। हमारे नीति निर्माताओं का ध्यान इसे स्थिर बनाने पर लगा हुआ है। हमारे बाह्य सेक्टर को मजबूत बनाने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। इस वर्ष अच्छे मानसून से कृषि विकास और खाद्य कीमतों पर अनुकूल प्रभाव पड़ना चाहिए। यद्यपि हाल के वर्षों में विकास की गति धीमी हुई है, परंतु हमारी अर्थव्यवस्था के बुनियाद तत्व मजबूत बने हुए हैं। राजस्व घाटे पर नियंत्रण रखने और औद्योगिक निवेश को तेज करने के प्रयास किए जा रहे हैं। मुझे विश्वास है कि हमारी अर्थव्यवस्था पहले की तरह उच्च स्तर प्राप्त करेगी।
प्रिय विद्यार्थियों,
10. भारत की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के लिए, यह आवश्यक है कि हम वास्तव में ‘समावेशी‘ विकास लाएं ताकि देश का प्रत्येक नागरिक, विशेषकर पिछड़े हुए वर्ग और सामाजिक आर्थिक पायदान के निचले स्तर पर स्थित लोग लाभान्वित हों।
11. आप प्रबंधक के रूप में भविष्य में भारत की विकास गाथा के प्रमुख प्रेरक बनेंगे। प्रभावी प्रबंधन और दृढ़ मस्तिष्क, हमारे राष्ट्र के तीव्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। संस्थान द्वारा आपको प्रदत्त कारोबारी प्रबंधन के सिद्धांत और अनुप्रयोग ज्ञान का वास्तविक जीवन का अनुभव, आपको शीघ्र सफल प्रबंधक बना देगा।
12. परंतु प्रतिस्पर्द्धा की सीढ़ियां चढ़ने के चाह में, कारोबारी नैतिकता, रचनात्मक प्रोत्साहन, कार्पोरेट सामाजिक दायित्व और कार्पोरेट संचालन के बुनियादी सिद्धांतों को नहीं भूलना चाहिए। इन सिंद्धांतों को प्रबंधक के प्रत्येक क्षेत्र में समाविष्ट करना चाहिए क्योंकि ये प्रभावी और सतत विकास के लिए आवश्यक हैं।
13. भारतीय विद्या भवन के विद्यार्थियों के तौर पर आपको भारत के प्रमुख सभ्यतागत मूल्यों का सदैव ध्यान रखना चाहिए। आपका प्रथम लक्ष्य वेतन या लाभ नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव होना चाहिए। कभी-कभी जीवन में बाधाएं आएंगी। आपके अपने सहकर्मी और मित्र आपको निराश कर सकते हैं। परंतु ऐसे हालत में, भारतीय विद्या भवन जैसे संस्थानों द्वारा उपलब्ध करवाए गए प्रशिक्षण से आप डटे रहेंगे। आपको विषम परिस्थितियों का धैर्य के साथ सामना करना चाहिए और यह विश्वास रखना चाहिए कि अंत में सत्य की जीत होती है। जैसा कि हमारा राष्ट्रीय ध्येय वाक्य कहता है, ‘सत्यमेव जयते’।
14. शिक्षा राष्ट्रीय प्रगति, मानव सशक्तीकरण और सामाजिक परिवर्तन के लिए एक आवश्यक साधन है। आपको समझना होगा कि आपकी शिक्षा में अत्यधिक संसाधन, प्रयास और त्याग किए गए हैं। समाज ने आपमें निवेश किया है और अब समाज आपसे हक के साथ वापसी की मांग कर सकता है। आप निर्बल, जरूरतमंद और वंचितों की मदद करके यह ऋण चुका सकते हैं। युवाओं की इच्छा शक्ति, पहल और रचनात्मकता के द्वारा हमारे राष्ट्र का भविष्य संवारा जाएगा।
15. स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था, ‘समस्त ज्ञान जो भी विश्व ने कभी प्राप्त किया है, मस्तिष्क से नि:सृत होता है, विश्व का असीम पुस्तकालय, हमारे अपने मस्तिष्क में है।’ ज्ञान की खोज और दूसरों के साथ ज्ञान का आदान-प्रदान, समाज के अंधेरे को समाप्त करेगा और मन और आत्मा दोनों को प्रकाश की ओर ले जाएगा। भगवद्गीता में ज्ञान को बांटने को ‘सर्वश्रेष्ठ पुण्य’ कहा गया है। आज डॉ. मुंशी के योग्य और विश्वसनीय सहयोगी श्री रामकृष्णन के नाम पर रखे गए रामकृष्णन ज्ञान केन्द्र का लोकार्पण इस दिशा में भारतीय विद्याभवन का एक प्रमुख योगदान है।
16. जब अपने प्रतिष्ठित संस्थान से प्रस्थान कर रहे हैं, मैं आपसे समाज में एक सार्थक भूमिका निभाने के लिए नीचे लिखी पांच उपलब्धियां प्राप्त करने का आग्रह करता हूं।
- एक अच्छा इंसान और एक अच्छे नागरिक बनें।
- विचार, कार्य और कर्म में सदैव सकारात्मक रहें।
- जब बाधाएं आएं, शांत रहें और लगन व संकल्प के साथ उन पर विजय प्राप्त करें।
- सदैव स्वप्न देखें क्योंकि स्वप्न देखने वाले ही निर्माता होते हैं।
- सदैव नावान्वेषी बनने तथा अपने अंदर छिपी नवान्वेषण और रचनात्मकता की असीम शक्ति को पहचानें। याद रखें कि नावान्वेषण हमारे राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि की कुंजी है।