भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 85वें स्थापना दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर, पूसा , नई दिल्ली : 16.07.2013
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 85वें स्थापना दिवस पर उपस्थित होना मेरे लिए वास्तव में सौभाग्य का विषय है तथा प्रख्यात कृषि वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं की इस सभा को संबोधित करते हुए स्थापना दिवस व्याख्यान देने पर मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं।
2. प्रारंभ में, मैं इस देश की आठ दशकों से भी अधिक की अवधि की विशिष्ट सेवा के लिए इस महान संस्था को बधाई देना चाहूंगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की स्थापना शिक्षा, अनुसंधान की योजना बनाने और उसको बढ़ावा देने तथा इसके कृषि, कृषि वानिकी, पशु-पालन, गृह-विज्ञान, मत्स्य पालन तथा संबद्ध विज्ञानों में अनुप्रयोग के महत्त्वपूर्ण दायित्व के साथ की गई थी। आज इसके पास, अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए चार सम् विश्वविद्यालय, सैंतालीस केंद्रीय संस्थान, सतरह राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र तथा पच्चीस परियोजना निदेशालय मौजूद हैं। मुझे बताया गया है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इक्कीस राज्यों के पांच सौ जिलों में मृदा उर्वरकता खाकों; दक्षतापूर्ण पोषाहार प्रबंधन के लिए निर्णय सहायता प्रणालियों; जलागम विकास माडलों; इन्डो गैंजेटिक बेसिन में संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों; खेती की फसलों की 300 उन्नत किस्मों तथा बागवानी की फसलों की 186 किस्मों का विकास किया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों तथा मानव संसाधन ने कृषि उत्पादकता तथा उत्पादन बढ़ाने में असाधारण योगदान दिया है।
3. देवियो और सज्जनो, जब भारत आजाद हुआ तब हमारी कृषि प्रणाली कम विकसित थी। खाद्यान्न का उत्पादन हर एक नागरिक के भोजन के लिए पर्याप्त नहीं था। आजादी से पूर्व, 1943 में हमारे देश ने विश्व की सबसे बदतरीन खाद्य आपदा—बंगाल के दुर्भिक्ष का सामना किया जिसमें लगभग पचास लाख लोग भूख से मरे थे। 1946 से 1952 के दौरान, हमने औसतन 30 लाख टन वार्षिक खाद्यान्न का आयात किया। स्वाभाविक रूप से, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा राष्ट्रीय विकास का प्राथमिक एजेंडा बन गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार कहा था, ‘‘सब कुछ इंतजार कर सकता है लेकिन कृषि नहीं।’’ साठ के दशक में सरकार ने कृषि को सुदृढ़ करने के लिए बहुआयामी पहलें की थी। अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम आरंभ किए गए थे; नई प्रौद्योगिकियों, खासकर उच्च उपज देने वाली चावल और गेहूं की किस्मों को खरीद करके अपनाया गया। परिणामस्वरूप, खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ने लगा, तथा अंतत: खाद्यान्न का आयात बंद हुआ। इसके बाद ‘जलयान से सीधे मुंह तक के अस्तित्व’ के स्थान पर हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ।
4. भारत आज गेहूं, चावल, ताजा फल, सब्जियों, दूध, अंडे तथा मछली जैसी अनिवार्य सामग्री का प्रमुख उत्पादक है। इसका, खाद्य की कमी से खाद्य की अधिकता वाले देश के रूप में रूपांतरण हो चुका है तथा यह कृषि उत्पाद का निर्यातक बन चुका है। लगातार बढ़ती जनसंख्या के बावजूद यह एक प्रशंसनीय उपलब्धि है जिसका कोई सानी नहीं। हमारी खेती अधिक सहनशील हो गई है। पिछले दशक के दौरान दो बड़े सूखे की चपेट में आने के बावजूद हमारा कृषि उत्पादन, खाद्यान्न उत्पादन के 200 मिलियन टन के निशान से काफी ऊपर रहा है। मैं, एक बार फिर अपने देश की कृषि अनुसंधान एवं विकास प्रणाली को उनके अथक प्रयासों के लिए बधाई देता हूं। मुझे बताया गया है कि हमारी कृषि अब बागवानी, पशुपालन तथा मत्स्यपालन सेक्टरों में प्रौद्योगिकी प्रेरित इन्द्रधनुष क्रांति के लिए तैयार है।
5. देवियो और सज्जनो, हमारे कृषि सेक्टर ने पिछले कुछ दशकों में बड़ी छलांग लगाई है। तथापि, हमारे सामने चुनौतियां मौजूद हैं। कृषि हमारे देश में जीविकोपार्जन का अकेला सबसे बड़ा स्रोत है। कुछ अध्ययनों ने दर्शाया है कि कृषि में एक प्रतिशत की वृद्धि से गरीबी में उससे दो से तीन गुणा कमी आती है जितनी कि गैर कृषि क्षेत्र में एक प्रतिशत वृद्धि से आती है। ग्यारहवीं योजना अवधि में कृषि तथा संबद्ध सेक्टरों में औसत वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत रही जबकि इसी अवधि के दौरान समग्र अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 8.00 प्रतिशत रही। निर्धनता उन्मूलन तथा सतत् आधार पर समावेशी विकास को बढ़ावा देने, खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने, रोजगार के अवसरों में वृद्धि तथा ग्रामीण आय में वृद्धि के लिए हमारे कृषि सेक्टर का सशक्त होना जरूरी है।
6. हमने बारहवीं योजना अवधि में कृषि सेक्टर में 4 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि की परिकल्पना की है। ग्यारहवीं योजना अवधि में कृषि में वृद्धि को बेहतर कृषि मूल्यों के कारण प्रोत्साहन मिला था। बारहवीं योजना अवधि के दौरान, प्रमुख फसलों की मांग में वृद्धि की दर में शिथिलता का आकलन किया गया है। इस अवधि के लिए कृषि वृद्धि संबंधी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमें उच्च उत्पादकता को प्राप्त करना होगा। हमें फसलों का विविधीकरण, बीज बदलाव दर में सुधार, उच्च उत्पादकता शंकर बीज की शुरुआत तथा जल प्रबंधन प्रणालियों में सुधार जैसे उत्पादकता सुधार उपायों पर जोर देना होगा। यद्यपि छठे और सातवें दशक के दौरान हरित क्रांति द्वारा खाद्यान्न उत्पादन में काफी वृद्धि हुई परंतु रसायनिक उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग से अंतत: उत्पादकता में कमी आई। हमारे कृषकों के बीच कृषि शिक्षा तथा प्रसार कार्यक्रमों के माध्यम से उर्वरकों तथा कीटनाशकों के संतुलित प्रयोग की जरूरत का प्रचार किया जाना चाहिए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद तथा अन्य कृषि संस्थान, दक्षतापूर्ण उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने के कार्य में लगे हैं। फसलों की किस्मों, कृषि के सही तरीकों तथा उत्पादों की बिक्री के लिए सही बाजारों के चयन में कृषकों की सहायता के लिए अद्यतन प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए।
7. देवियो और सज्जनो, हमारे देश का पूर्वी क्षेत्र प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है और उसमें काफी अधिक फसल उत्पादकता प्राप्त करने की क्षमता है। इसी के साथ, कृषि की दृष्टि से उन्नत उत्तर पश्चिम भारत के क्षेत्रों में धान का उत्पादन जल तथा भूमि जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण अव्यवहार्य हो गया है। हमने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्तर-पश्चिम क्षेत्र पर दबाव कम करते हुए पूर्वी क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक कार्यनीति तैयार की है।
8. वर्ष 2010-11 के लिए केंद्रीय बजट में कृषि उत्पादन, अन्न की बर्बादी में कमी, ऋण सहायता तथा खाद्य संस्करण सेक्टर को शामिल करते हुए चार सूत्रीय कार्यनीति तैयार की गई थी। इस कार्यनीति के तहत, असम, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल में चावल आधारित फसल प्रणाली के मुद्दे के समाधान के लिए इन राज्यों में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत ‘पूर्वी-भारत में हरित क्रांति की शुरुआत’ कार्यक्रम को कार्यान्वित करने का निर्णय लिया गया था। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इन पहलों के परिणामस्वरूप चयनित संकुलों के किसानों ने नई प्रौद्योगिकी और कृषि के अच्छे तरीके अपनाए हैं तथा शंकर चावल प्रौद्योगिकी की अच्छी उपज से लाभान्वित हुए हैं।
9. देवियो और सज्जनो, भारत के लगभग 85 प्रतिशत किसान 2 हेक्टेयर से छोटी भू जोतों के धारक हैं जिससे उत्पादन करने की उनकी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता। इस तरह के खतों में उत्पादकता में वृद्धि के लिए कम कीमत, कम वजन तथा बहुउद्देश्यीय कृषि उपकरणों का विकास जरूरी है। छोटे खेतों का मशीनीकरण आज की जरूरत है क्योंकि इससे खेती के व्यस्ततम् समय में मजदूरों की कमी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। कृषि में मशीनीकरण से ऊर्जा के दक्षतापूर्ण प्रबंधन में सुविधा होगी। परंपरागत ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए तथा सततता सुनिश्चित करने के लिए हमारे अनुसंधान संस्थानों को सौर ऊर्जा तथा जैव ईंधन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा मॉडलों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
10. आकलन यह दर्शाते हैं कि उत्पादकता के लिए 20 से 25 प्रतिशत तक बीज की गुणवत्ता जिम्मेदार होती है। वहनीय तथा अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों की समय से उपलब्धता, उच्च कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद तथा राज्य कृषि विश्वविद्यालय इस जरूरत को पूरा करने के लिए सभी प्रमुख फसलों के लिए प्रजनन बीज के उत्पादन में लगे हुए हैं।
11. कृषि-प्रसंस्करण को हमारे कृषि संबंधी नीति-ढांचे में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। विकारी तथा अर्धविकारी फसलों में उत्पादन के बाद का नुकसान काफी अधिक रहता है जो कि 5.8 से 18.00 प्रतिशत तथा 6.8 से 12.5 प्रतिशत तक रहता है। इसमें से 50 प्रतिशत तक नुकसानों को फसल की कटाई के बाद की समुचित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके रोका जा सकता है। अनुसंधान में, आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने, उत्पाद सुरक्षा तथा उन्हें लम्बे समय तक बनाए रखने के लिए किफायती पैकेजिंग प्रौद्योगिकी पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए।
12. जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन के लिए एक प्रमुख चुनौती है। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत आरंभ किए गए राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनुकूलन तथा न्यूनीकरण कार्य नीतियां तैयार करने की जरूरत बताई गई है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन भू-राजनीतिक सीमाओं का अतिक्रमण कर सकता है, इसलिए हमें जलवायु प्रतिरोधी विकास कार्यनीति की रूपरेखा निर्धारित करने वाली सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहलों में सक्रियता से जुड़ना होगा।
13. अनुवांशिकीय रूप से परिष्कृत फसलों के विकास और शुरुआत में कृषि में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता है। उनसे होने वाले काल्पनिक खतरों के बारे में चिंताओं का समाधान, सुरक्षा मापदंडों के आकलन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य प्रक्रियाओं को अपनाकर किया जाना चाहिए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को, जो इस क्षेत्र में उपयोगी उत्पादों और प्रौद्योगिकियों के विकास में लगी हुई, को जनता के बीच संवाद में योगदान देना चाहिए तथा इस संवेदनशील मुद्दे पर स्पष्टता प्रदान करनी चाहिए।
14. देवियो और सज्जनो, हमें कृषि को एक बौद्धिक रूप से रुचिकर तथा लाभदायक विषय बनाना होगा जिससे इस क्षेत्र में मेधावी लोग आएं। कृषि शिक्षा को खाद्य असुरक्षा; घटती उत्पादकता; घटते प्राकृतिक संसाधनों; जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे; क्षेत्रीय असंतुलन; निवेश की बढ़ती लागत; बदलती खाद्य आदतों और कटाई के बाद खेती के प्रबंधन जैसी समसामयिक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आपको, इन मुद्दों को हमारे नीति निर्धारकों द्वारा बेहतर ढंग से समझने के लिए अकादमिक स्वरूप प्रदान करना चाहिए। बायोसेन्सर, जेनोमिक्स, बायोटेक्नोलॉजी, नैनोटेक्नोलॉजी तथा वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों जैसी अद्यतन प्रौद्योगिकी को इसकी सीमा में लाने के लिए कृषि अनुसंधान की गुणवत्ता और प्रासंगिकता में वृद्धि करनी होगी।
15. हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि ने मूल्य सर्जन तथा रोजगार सर्जन के संदर्भ में अपनी प्रमुखता बनाए रखी है। लाखों किसान छोटी तथा सीमांत जोतों पर खेती कर रहे हैं। हमारी चुनौती अंतिम खेत तक पहुंच कर उन्हें सबसे अच्छे खेती के तरीकों से सज्जित करना है। कृषि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार से न केवल कृषि में वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि इसमें व्यवहार्य कृषि के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास की भी क्षमता है जिससे आजीविका और पोषाहार सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है। मैं वैज्ञानिक समुदाय का आह्वान करता हूं कि वे कृषि के विकास तथा कृषक समुदाय की समृद्धि के लिए प्रौद्योगिकी आधारित मार्ग की दिशा में प्रयास करें।
16. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का एक शानदार इतिहास रहा है। इसने इस देश के लिए तथा संपूर्ण मानवता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण परिणाम प्राप्त किए हैं। आपका योगदान; कृषि शिक्षा तथा अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए आपका निरंतर प्रयास हमें खुद पर विश्वास करने, भूख, गरीबी तथा अभाव रहित भारत के लिए प्रयास करने का विश्वास प्रदान करता है। मुझे विश्वास है कि पूर्व की भांति आप इस महान देश की विशाल आकांक्षाओं पर खरे उतरेंगे। मैं आप सबको भावी प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!