भारतीय आर्थिक संघ के 98वें वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

हैदराबाद : 27.12.2015

डाउनलोड : भाषण भारतीय आर्थिक संघ के 98वें वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 271.32 किलोबाइट)

SPEECH1. मुझे, भारतीय आर्थिक संघ के 98वें वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर आज आपके बीच उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। भारतीय आर्थिक संघ के साथ मेरा एक लंबा संबंध रहा है,इसलिए जब मुझे वर्तमान सत्र के उद्घाटन के लिए डॉ. कौशिक बसु के निमंत्रण के तौर पर इस संबंध को पुन: जोड़ने का अवसर मिला तो मैंने तुरंत स्वीकार कर लिया। मुझे कोलकाता में1998 के सत्र का उद्घाटन करने की भी मधुर स्मृति है।

2. मुझे बताया गया है कि भारतीय आर्थिक संघ जनवरी2016 से अपना शताब्दी वर्ष समारोह आरंभ कर रहा है। तकरीबन एक सौ साल से,एक को छोड़कर, सभी वार्षिक सत्रों का आयोजन करना वास्तव में विशेषकर भारतीय आर्थिक संघ जैसे किसी भी शैक्षिक संगठन के लिए गौरव का क्षण है। कोलकाता में संयोजक के तौर पर प्रो. हैमिल्टन के साथ1917 में स्थापना के बाद,भारतीय आर्थिक संघ ने वास्तव में डॉ. मनमोहन सिंह,प्रो. अमर्त्य सेन, आर.के.मुखर्जी,सी. एन. वकील, डी. आर. गाडगिल,पी.आर. ब्रह्मानंद और आलोक घोष जैसे अर्थशास्त्रियों के साथ एक लंबा सफर तय किया है। मुझे विशेष तौर से डॉ. मनमोहन सिंह और आलोक घोष को निकट से जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

3. मुझे देश के नीति नियोजन के क्षेत्र में कार्यरत भारतीय आर्थिक संघ और इसके जर्नल के मौलिक कार्य को देखकर अपार प्रसन्नता हुई है। मुझे वित्त मंत्रालय और योजना आयोग के अपने वे दिन याद हैं कि किस प्रकार देश के जननीति नियोजन से जुड़े सभी आला अर्थशास्त्री भारतीय आर्थिक संघ से जुड़े थे और अर्थव्यवस्था के नीतिगत सुझावों में वे कितनी अहम भूमिका निभाते थे।

4. भारतीय आर्थिक संघ का संविधान सामान्यत: अर्थशास्त्र के अध्ययन,अध्यापन तथा शोध को बढ़ावा देने तथा विशेषत: भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्याओं के अध्ययन के लिए संघ के उद्देश्य को सूचीबद्ध करता है। यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि भारतीय आर्थिक संघ सार्थक ढंग से यह उद्देश्य पूरा कर रहा है। वार्षिक सम्मेलन के अलावा,भारतीय आर्थिक संघ द्वारा आयोजित क्षेत्रीय और राज्य स्तरीय सम्मेलन व संगोष्ठियां राज्य और स्थानीय सरकारों को भी नीतिगत दिशा प्रदान करने में मदद मिलती है।

5. मैं अनुभव करता हूं कि विकास और समता,रोजगार वृद्धि और मानव विकास सहित इस सम्मेलन में विचार-विमर्श के लिए चुने गए विषय भारत के वर्तमान आर्थिक परिदृश्य के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं। शिक्षा और कौशल विकास के बारे में चर्चा करते समय हम भारत के इतिहास का सिंहावलोकन करने पर गर्व महसूस करते हैं। प्राचीन काल में भारत शिक्षा में अग्रणी था तथा तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय भारत और पड़ोसी देशों के विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा के केंद्र थे।44केंद्रीय विश्वविद्यालयों तथा लगभग36,000 कॉलेजों सहित 700से अधिक विश्वविद्यालयों के साथ आज भारत में विश्व की एक सबसे विशाल उच्च शिक्षा प्रणाली है। परंतु साथ ही यह चिंता का विषय है कि हाल तक हमारा एक भी विश्वविद्यालय विश्व के सर्वोच्च200 में शामिल नहीं था। हमारे एकजुट प्रयासों तथा नीतिगत प्रयासों के बाद हमारे दो संस्थान-भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलौर तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान,दिल्ली इस वर्ष सितंबर में विश्व के सर्वोच्च 200में शामिल हो गए।

6. इस समय आवश्यकता न केवल शिक्षा बल्कि उससे ज्यादा शिक्षण की गुणवत्ता पर ध्यान देना है। एक ओर,उच्च शिक्षा की सुगम्यता तथा दूसरी ओर निजीकरण और वैश्वीकरण पर बातचीत करने पर यह परिचर्चा और भी प्रासंगिक हो जाती है। इसलिए,मुझे खुशी है कि भारतीय आर्थिक संघ ने विस्तृत विचार-विमर्श के लिए इस विषय को चुना है।

7. जब हम शिक्षा की गुणवत्ता की बात करते हैं तो इसका महत्वपूर्ण हिस्सा कौशल विकास उतना ही अहम है। हमारी आबादी के स्वरूप,इसकी विविधता और विशालता को देखते हुए,सभी के लिए एक समाधान अब कारगर नहीं है। कौशल विकास हमारे युवाओं की रोजगार संभावनाओं से सीधे संबंधित है इसलिए कौशल विकास युक्त उत्तम शिक्षा प्रदान करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

8. इन उपायों का लक्ष्य रोजगार बढ़ाना है परंतु पर्याप्त रोजगार अवसर उपलब्ध करवाने पर भी जोर देना होगा। कल्याण अर्थशास्त्रियों के कथनानुसार,प्रगति तभी सार्थक और समावेशी होगी जब इससे अंतिम व्यक्ति का जीवन स्तर सुधरेगा। भारत एक युवा राष्ट्र है। हमारी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा कामकाजी आयु समूह का है। इसलिए सरकार और नीति निर्माताओं के लिए ऐसी नीतियां बनाना जरूरी है जिनसे रोजगार के साथ-साथ प्रगति हासिल की जा सके। भारतीय अर्थव्यवस्था लचीली है,इसने न्यूनतम आर्थिक मंदी के साथ अमरीकी वित्तीय संकट और यूरो जोन संकट को सहन कर लिया है। अब हमें इन सहज और मूलभूत शक्तियों का प्रयोग करना होगा और न केवल अपने युवाओं के लिए और अधिक रोजगार बल्कि एक उद्यमशील माहौल भी पैदा करना होगा। आज युवा अवसरों की प्रतीक्षा नहीं करता है बल्कि उन्हें पैदा करता है,अनेक पहल और उनके वार्षिक टर्नओवर की संख्या इस दिशा में स्पष्ट संकेत हैं। भारतीय शिक्षा प्रणाली से निकले और सर्वोच्च वैश्विक कंपनियों के शीर्ष पर बैठे सुंदर पिछाई और सत्य नडेला हमारे यहीं के हैं। हमें घरेलू जमीन पर भी अपने युवाओं के लिए ऐसी रोजगार योग्यता पैदा करने की आवश्यकता है और ऐसा करना हमारे अर्थशास्त्रियों एवं नीति नियोजकों के लिए अग्नि परीक्षा होगी। सरकार के‘स्टार्ट अप इंडिया’और ‘स्टैंड अप इंडिया’कार्यक्रम का यही लक्ष्य है और मुझे आशा है कि भारतीय अर्थिक संघ जैसे संगठन विशेषकर वर्तमान सम्मेलन की परिचर्चा इस क्षेत्र में आवश्यक सुझाव मुहैया करवाएंगे।

9. प्रगति और रोजगार से समतायुक्त विकास का पहलू जुड़ा हुआ है। सर्वोच्च वर्ग अथवा जनसंख्या के निचले हिस्से की तरफदारी करने वाला विकास कभी सतत या वांछनीय नहीं हो सकता। समता और सामाजिक न्याय के साथ विकास का संतुलन हमारे लोकतांत्रिक शासनतंत्र की मूल आवश्यकता है। आज असमानता ही नहीं बल्कि उनके स्रोत का ध्यानपूर्वक अध्ययन आवश्यक है। अर्थशास्त्रियों के लिए यह एक जरूरी कार्य है। नीतिगत मामले में,सरकार ने ‘भारत में निर्माण’जैसे अनेक उपाय किए हैं जिनका लक्ष्य स्वदेशी रोजगार अवसर प्रदान करते हुए अपने विनिर्माण क्षेत्र को और अधिक प्रतस्पर्धी और उसके परिणामस्वरूप आय की असमानता को कम करना है।‘डिजिटल इंडिया’कार्यक्रम का लक्ष्य डिजीटल अंतर को समाप्त करना है। ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’जैसी योजनाओं का लक्ष्य वित्तीय समावेशन है जिसमें यह सुनिश्चित करना है कि निर्धन और पिछड़े हुए आर्थिक विकास से वंचित न रहें।

10. इस सम्मेलन का चौथा विषय मानव पूंजी विकास उपायों पर बल देना है। सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की सफलताओं के आधार पर,सतत विकास लक्ष्यों में 2030 तक पूरे करने के लिए 17लक्ष्यों और169संबद्ध लक्ष्यों का एक महत्वाकांक्षी और श्रेष्ठ समूह निर्धारित किया गया है जिनमें सर्वत्र अतिशत निर्धनता और भूख का उन्मूलन,लैंगिक समानता, स्वस्थ जीवन और उत्तम शिक्षा सुनिश्चित करना तथा देश के भीतर और परस्पर देशों में असमानता कम करना शामिल है। सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण आजीविका अर्जित करने के लिए तथाकथित पेरिस घोषणा या हरित प्रस्ताव पर्यावरण हित के प्रति विश्व अर्थव्यवस्थाओं की वचनबद्धता को दर्शाते हैं। एक महत्वपूर्ण विश्व भागीदार होने के कारण भारत को इन सतत विकास लक्ष्यों की पा्रप्ति में एक प्रमुख भूमिका निभानी होगी।

11. मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन का विचार-विमर्श प्रबुद्धजनों,व्यापार संघों और सरकार को बहुमूल्य नीतिगत विचार प्रदान करेंगे। भारतीय आर्थिक संघ के अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संघ के कार्यकलापों विशेषकर अंतरराष्ट्रीय संघ के वर्तमान निर्वाचित अध्यक्ष,डॉ. कौशिक बसु के साथ वार्ताओं और भागीदारी भारतीय शोधकर्ताओं को एक बड़ा मंच उपलब्ध करवाएंगे जिससे भारत और विश्व अर्थव्यवस्था दोनों के लिए प्रासंगिक नीतिगत सुझाव सामने आएंगे।

12. इन शब्दों के साथ,मैं भारतीय आर्थिक संघ के 98वें सत्र के शुभारंभ की औपचारिक घोषणा करता हूं तथा इसकी परिचर्चाओं के सफल होने की कामना करता हूं।

धन्यवाद! 
जयहिन्द।

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