भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का ‘कलर एटलस ऑफ ओरल इम्प्लांटोलॉजी’ और ‘कंजर्वेटिव डेंटीस्ट्री- बेसिक्स’ पुस्तकों की प्रथम प्रतियां प्रदान करने पर अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन, आरबीसीसी : 29.05.2017
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मैं विशिष्ट दंत व्यवसायिकों, शैक्षिकों और अनुसंधान विद्वानों के बीच इस भव्य सभा में आकर ‘कलर एटलस ऑफ ओरल इम्प्लांटोलॉजी’और ‘कंजर्वेटिव डेंटीस्ट्री- बेसिक्स’दो पुरस्कों की प्रथम प्रतियां पाकर सचमुच बहुत प्रसन्न हूं। सर्वप्रथम मैं इन दोनों पुस्तकों के लेखकों डॉ. प्रफुल्ल बाली,डॉ. लंका महेश, डॉ. दिलिप बाली और डॉ. दीपिका चंडोक को इन दो प्रकाशनों के लेखन पर उनके प्रयास के लिए बधाई देता हूं।
दंत-चिकित्सा ने समग्र रूप से विगत कुछ दशकों में दिन दुगुनी रात चौगुनी प्रगति की है और दंत संबंधी जागरूकता पूरे भारत में फैलनी आरंभ हो गई है। यह सब दंत बिरादरी के कठिन परिश्रम और प्रतिबद्धता के कारण संभव हुआ है। परंतु प्रत्येक वर्ष बहुत संख्या में दंत चिकित्सकों के उत्तीर्ण स्नातक होने के बावजूद अभी भी स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले व्यवसायकों और दंत-चिकित्सा सर्जनों की कमी है। ग्रामीण भारत में देश की भारी आबादी होने के कारण दांतों के मामले में स्थानीय आबादी के पास मौलिक ज्ञान की कमी है और इस प्रकार वे मुख स्वास्थ्य की खराब आदतों और ऐसे अभ्यास में फंस जाते है जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। जिम्मेदार प्रशिक्षक और योग्य मनुष्य के रूप में समुदाय में आप जैसे सभी लोगों द्वारा मुख स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देने की आवश्यकता है। मैं आप में से प्रत्येक को अपने आरामदेह जोन से बाहर आने के लिए और दूर-दराज क्षेत्रों में सेवा करने के लिए कहूंगा। इस क्षेत्र में अपेक्षितकार्य की मात्रा बहुत अधिक है। जब तक नागरिकों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होता,उनकी परिणामी क्षमता का पूर्ण रूप से दोहन नहीं किया जा सकता और इसमें दांत संबंधी सावधानी बरतने की आवश्यकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में मुख और दांत संबंधी स्वास्थ्य के स्तर भारतीय उपमहाद्वीप में चुनौतिपूर्ण हैं। बहुत से लोग मुख-स्वास्थ्य और सामान्य स्वास्थ्य पर इसके पड़ने वाले कुप्रभाव के प्रति अनजान हैं। मुख-रोग और दांतों के सड़ने को आयु प्राप्त करने की प्रक्रिया के एक भाग के रूप में देखा जाता है और बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा इनको अनदेखा कर दिया जाता है। मेरे विचार से देश में दंत चिकित्सक मुख स्वास्थ्य के संरक्षक हैं। वे आवश्यकता पड़ने पर जागरूकता पैदा करने के लिए बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच जाते हैं। दांत से संबंधित मसले हमारे70 प्रतिशत बच्चों और मसूढ़ों के रोग समस्त आबादी के लगभग90 प्रतिशत लोगों को प्रभावित करते हैं। मुख केंसर भी 21वीं सदी की प्रमुख स्वास्थ्य चुनौति है और भारत भी उपचार और इस रोग से बचाव की चुनौति का सामना कर रहा है।
यह कहकर कि मैं यह जानकर प्रसन्न हूं कि दंत चिकित्सा प्रौद्योगिकी में विकास और अनुसंधान दंत चिकित्सा को एक प्रौद्योगिकीय संचालित अभ्यास बन रही है। रोज बदलते हुए इस विश्व में प्रत्येक को अद्यतन प्रौद्योगिकी सीखकर और उसे प्रयोग में लाकर स्वयं को अद्यतन करने की आवश्यकता है।
आज भारत में दंत-चिकित्सा ने भी उत्कृष्टता के नए अवसर प्राप्त कर लिए हैं और हम दंत प्रौद्योगिकी में क्रांतिकारी परिवर्तन देख रहे हैं। अद्यतन प्रौद्योगिकी ने सभी आयामों,निदान से लेकर रोगी के आराम तक, प्रभावी दंत देखभाल और बेहतर रोग मिटाने तक सुधार किया है। मुझे विश्वास है दो पुरस्तकें जो मुझे आज प्राप्त हुई हैं दंत चिकित्सा छात्रों,फ्रेश दंतचिकित्सकों और उन जैसे ही अनुभवी दंत चिकित्सकों के लिए लाभदायक होंगी।
द कलर एटलस जिसके लेखक प्रफुल्ल बाली और डॉ. लंका महेश,हैं ने डेंटल इंप्लांटोलॉजी के क्षेत्र में लेखकों के द्वारा अग्रिम रूप से निष्पादित प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित किया है। मुझे बताया गया है कि मसले अच्छी प्रकार से प्रलेखित है और मुझे विश्वास है कि उभरते हुए अनुभवी दंत चिकित्सक इस क्षेत्र में इस पुस्तक से पर्याप्त लाभ उठाएंगे।
कलर एटलस की तरह से दूसरी पुस्तक जिसका शिर्षक कंजर्वेटिव डेंटीस्ट्री है- छात्रों की बेहतर समझ के लिए पर्याप्त पाठ्यक्रम,क्लीनिकल पिक्चर्स और अकादमिक डायग्राम के साथ आधारभूत मौलिकताओं पर केंद्रीय नहीं है।
मुस्कुराहट एक सार्वभौमिक भाषा है और मुझे खुशी है कि आप सब भी लोगों के चेहरों पर वास्तविक मुस्कुराहट लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार डॉ. बाली ने मुझे मुस्कुराट दी है और मुझे भोजन को उपयुक्त रूप से चबाना सिखाया है। मैं एक बार फिर से लेखकों को उक्त पुस्तकें प्रकाशित करने के लिए बधाई देता हूं। मैं डॉ. बाली और डॉ. मजुमदार को भारत में सुदूर क्षेत्रों तक दंत संबंधी देखभाल प्रदान करने में उनके निरंतर और अथक प्रयासों के लिए बधाई देता हूं।
धन्यवाद
जय हिंद।