भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क का प्रयोग करते हुए वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा अन्य संस्थानों/प्रयोगशालाओं के विद्यार
वीडियो कान्फ्रेंस रूम, राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 07.01.2014
डाउनलोड : भाषण (हिन्दी, 235.36 किलोबाइट)
विश्वविद्यालय के कुलपतिगण, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकगण, अन्य अकादमिक संस्थानों के अध्यक्षगण, संकाय सदस्यो और मेरे प्रिय विद्यार्थियो:
1. सबसे पहले, मैं आप सभी को और आपके परिजनों को एक खुशहाल और समृद्ध नव-वर्ष 2014 की शुभकामनाएं देता हूं। मुझे नव-वर्ष पर आपसे बात करके अत्यंत खुशी हो रही है। पूरे 2013 के दौरान, मैं विभिन्न अकादमिक संस्थानों के साथ नजदीक से बातचीत कर रहा हूं। राष्ट्रपति भवन में, फरवरी 2013 में, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मेलन तथा नवम्बर में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों का सम्मेलन आयोजित किया गया था। तब से मैंने विभिन्न विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों सहित 45 से ज्यादा संस्थानों का दौरा किया है और उन्हें संबोधित किया है।
2. राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क का धन्यवाद, कि अब मेरे लिए भारत की उच्च शिक्षा पर अपने कुछ विचारों को बांटने के लिए आप सभी तक पहुंच पाना संभव हो गया है। मैं, आपके साथ वीडियो वार्ता संभव बनाने के लिए प्रो. एस.वी. राघवन और उनकी टीम तथा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र की टीम का आभारी हूं।
मित्रो,
3. जैसा कि मैंने पहले कहा है, शिक्षा वह वास्तविक रसायन विद्या है, जो भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जा सकती है। मेरी पहली और सर्वोपरि चिंता हमारे देश में शिक्षा की गुणवत्ता है। उच्च शिक्षा के स्तर का किसी राष्ट्र के विकास और इसके नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता के साथ सीधा संबंध है। प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा संचालित दो नवीनतम सर्वेक्षणों से भारत और विदेश के संस्थानों के बीच शिक्षा के स्तर में अंतर का पता चलता है। किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय को सर्वोच्च दो सौ संस्थानों में कोई स्थान नहीं मिल पाया है।
4. अतीत में ऐसा नहीं था। ईसा पूर्व छठी और बारहवीं शताब्दी ईस्वी के बीच उच्च शिक्षा की हमारी पीठें - नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुर और ओदांतपुरी का विश्व पर दबदबा था। विश्व भर के ज्ञान पिपासु यहां आया करते थे। परंतु अब बहुत से प्रतिभावान भारतीय विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले जाते हैं। नोबेल विजेता हरगोविंद खुराना, सुब्रमणियन चंद्रशेखर, अमर्त्य सेन और वेंकटरमन राधाकृष्णन ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाने से पहले भारतीय विश्वविद्यालयों में स्नातक या स्नातकोत्तर अध्ययन पूर्ण किया।
5. ऐसा क्यों है कि हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली, जो विश्व स्तरीय विद्वान पैदा करने में सक्षम है, वह उन्हें विदेशी संस्थानों में जाने देने के लिए मजबूर है? क्या ऐसा अनुसंधान सुविधाओं तथा रचनात्मक और नवान्वेषी विचारशीलता के अवसरों के अभाव के कारण है? प्रतिभाओं को तैयार करने और उन्हें अपने पास बनाए रखने के लिए हमारे संस्थानों को अपनी अनुसंधान क्षमता को बढ़ाना चाहिए तथा रचनात्मकता और नवान्वेषण के अनुकूल माहौल को बढ़ावा देना चाहिए। आज हमें अग्रणी प्रौद्योगिकी पर अधिक सहयोगात्मक साझीदारियों, उद्योग के साथ बेहतर संबद्धता और छात्रवृत्तियों के माध्यम से अधिक प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है। इससे न केवल मेधावी विद्यार्थी अनुसंधान के लिए प्रोत्साहित होंगे बल्कि विदेशी विश्वविद्यालयों की प्रतिभाएं भी आकर्षित होंगी। 1.2 बिलियन से अधिक लोगों के देश में केवल आठ भारतीयों ने अब तक नोबेल पुरस्कार जीते हैं। यह देश इस संख्या में बढ़ोतरी देखना चाहता है। मुझे विश्वास है कि ऐसा आपके माध्यम से होगा।
मित्रों,
6. उच्च शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए हमें शिक्षकों की गुणवत्ता, विद्यार्थियों की सीखने की क्षमता तथा भौतिक बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाना होगा। परंतु अकादमिक समुदाय में गुणवत्तापूर्ण मानवपूंजी के अभाव में अकेले भौतिक बुनियादी सुविधाओं से कुछ नहीं होगा। संकाय को उच्च स्तरीय बने रहने के लिए, खुद को नवीनतम घटनाक्रमों से अवगत रखना चाहिए। शिक्षण में गुणवत्तापूर्ण परिवर्तन लाने के लिए, संस्थानों को संसाधनों का एक साझा मंच तैयार करना चाहिए, जिसका सभी संकाय सदस्यों द्वारा कौशल संवर्धन और ज्ञान संचय के लिए प्रयोग किया जा सके। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क अकादमिक संस्थानों को आपस में जुड़ने, सहयोग करने, विचारों, मतों और अनुसंधान नवान्वेषणों के प्रसार के लिए एक प्रभावी समाधान प्रस्तुत करता है। इस नेटवर्क के प्रयोग से किसी संस्थान द्वारा ऐसी अधिकांश कमियों को दूर किया जा सकता है जो संकाय, अवसंरचना और संसाधनों की कमी के कारण अच्छे शिक्षण अनुभव प्रदान करने में बाधक हों।
7. हमें अपने विश्वविद्यालयों का अधिक सक्रियता से प्रचार भी करना होगा। हमारे संस्थानों को विश्वविद्यालय रैंकिंग प्रक्रिया को पूरी गंभीरता से लेना चाहिए। उच्च रैंक से अकादमिक और विद्यार्थी समुदायों का मनोबल बढ़ सकता है। इससे विद्यार्थियों के लिए उन्नति और रोजगार के नए अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी। बेहतर रैंकिंग से विदेशी शिक्षकों और विद्यार्थियों की संख्या बढ़ेगी, जिससे अग्रणी प्रौद्योगिकी के नए रास्ते खुलेंगे। मुझे विश्वास है कि कुछ भारतीय विश्वविद्यालय और संस्थान, निकट भविष्य में विश्व के सर्वोच्च दो सौ विश्वविद्यालयों की सूची में स्थान बनाएंगे।
मित्रो,
8. केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की अपनी कुछ यात्राओं के दौरान, मुझे ‘प्रेरक शिक्षकों’ से बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ। वे ऐसे शिक्षक हैं जो अपने विद्यार्थियों को व्यापक परिप्रेक्ष्य से किसी विषय का मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करते हैं और उन्हें उस विधा की सीमाओं से आगे जाकर खोज के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे अपना उदाहरण प्रस्तुत करके विद्यार्थियों में श्रेष्ठ नैतिक मूल्यों का समावेश करते हैं। इन शिक्षकों को अपने ज्ञान, विचारों तथा अनुभवों को वृहत्तर अकादमिक समुदाय के साथ बांटने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। शिक्षा में उत्कृष्टता बढ़ाने के लिए प्रेरित शिक्षक व्याख्यान श्रृंखला शुरू की जा सकती है।
प्यारे विद्यार्थियो,
9. अकादमिक उत्कृष्टता के प्रयासों के साथ नैतिक विकास की कोशिश भी शामिल होनी चाहिए। जीवन के लिए आप की तैयारी देश-भक्ति, करुणा, सहनशीलता, ईमानदारी तथा समानता के बुनियादी मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। ‘प्रेरित शिक्षक’ अपने उदाहरण से अपने विद्यार्थियों में अच्छे नैतिक मूल्यों का समावेश कर सकते हैं।
10. आप युवा लोग राष्ट्र का सुनहरा भविष्य हैं। भारत की प्रगति की सीमा आपकी ऊर्जा, ऊर्जस्विता, पहल तथा मेहनत से निर्धारित होगी। अपने देश को तथा इसकी संस्थाओं को समझें। पढ़ें, सीखें और राष्ट्रीय मुद्दों पर राय बनाएं। हमारे सुंदर, जटिल, प्राय: कठिन तथा कभी-कभार शोर-शराबे से युक्त लोकतंत्र से जुड़ने का विकल्प लें। अपने अधिकार और कर्तव्यों को अच्छी तरह समझें, खासकर उनके प्रति जो कम सौभाग्यशाली हैं। जिनकी कोई आवाज नहीं, उनको आपकी आवाज की जरूरत है, जो कमजोर हैं, उनको आपकी ताकत की जरूरत हैं, और जो जरूरतमंद है, उन्हें आपकी सहायता की जरूरत है। देश तथा इसके नागरिकों की सेवा के लिए अपने ज्ञान का सर्वोत्तम उपयोग करें। हमारे महान शिक्षक डॉ राधाकृषणन ने इस संबंध में जो कहा था उसे याद रखें। उन्होंने कहा था ‘सारी शिक्षा एक तरफ सत्य की खोज है, दूसरी तरफ यह सामाजिक उन्नति का प्रयास है। आप सत्य की खोज कर सकते हैं परंतु आपको इसका उपयोग समाज की स्थिति को सुधारने में करना चाहिए।’
11. अंत में, मैं एक बार पुन: आप सभी को एक अति सुखद और सफल भावी वर्ष के लिए शुभकामनाएं देता हूं। यह नई शुरुआत करने का समय है। माहौल उम्मीद और अपेक्षा से भरा है। यह वर्ष नए अवसरों और उपलब्धियों का वर्ष हो।
धन्यवाद,
जय हिन्द!