‘भारत और प्रथम विश्वयुद्ध’ विषय पर स्मारक प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 10.03.2015

डाउनलोड : भाषण ‘भारत और प्रथम विश्वयुद्ध’ विषय पर स्मारक प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 470.39 किलोबाइट)

sp1. मुझे ‘भारत और प्रथम विश्वयुद्ध’ विषय पर स्मारक प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए मानेक शॉ सेंटर में इस शाम आपके बीच उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। सबसे पहले, मैं प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अपना जीवन न्योछावर करने वाले भारतीय सैनिकों की बहादुरी के सम्मान और गौरव की स्मृति में इस प्रदर्शनी के आयोजन हेतु भारतीय सशस्त्र सेनाओं की सराहना करता हूं।

2. प्रथम विश्वयुद्ध की शताब्दी विश्व इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। यह अवसर विश्व समुदाय को जनधन की उस भारी हानि की याद दिलाता है जो वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए विश्व को सहनी पड़ी है। इस प्रयास में भारतीय सैनिकों ने युद्ध के विभिन्न मोर्चों पर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। युद्ध प्रयासों में स्वैच्छिक सेना के रूप में भारतीय योगदान, बहुत से अन्य योगदानकर्ता देशों की तुलना में बड़ा था।

3. युद्ध के दौरान, भारतीय सैनिक वास्तव में प्रत्येक युद्ध मोर्चे पर सक्रिय सेवा में थे। उन्होंने अपनी असाधारण निष्ठा, साहस तथा नि:स्वार्थ सेवा के द्वारा अपने लिए अलग स्थान बनाया तथा प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मित्र राष्ट्रों की सेनाएं भरतीय सैनिकों के सहयोग के कारण ही युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करने की स्थिति में आ पाई थी।

4. एक सौ वर्ष पहले, दुनिया भिन्न थी। हालांकि हमारा देश औपनिवेशिक शासन के अधीन था परंतु भारतीय सैनिकों ने अपनी वीरता और शौर्य द्वारा अपना नाम विश्व इतिहास में दर्ज कर लिया। गल्लीपोली के युद्ध-क्षेत्रों में सिखों और गोरखाओं का पराक्रम सुविख्यात है। इसी तरह गढ़वाली, डोगरा, पंजाबी और मराठा सैनिकों की वीरता भी सुविख्यात है जो फ्लांडर्स और सोम्मी के युद्ध-क्षेत्रों में लड़े। इन सिपाहियों ने न केवल मोर्चों पर लोहा लिया वरन् स्थानीय जनता का दिल भी जीत लिया। अपने गांवों में इन सैनिकों के साधारण पालन-पोषण और ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ के उपदेशों ने भारतीय सैनिकों के अंत:करण में हारे हुए शत्रुओं के साथ व्यवहार में ‘न्यायपरकता’तथा शत्रु का पलड़ा भारी होने पर ‘दृढ़ता’जैसे मूल्यों का समावेश कर दिया था। इन मूल्यों ने उन्हें दुर्जेय शक्ति बना दिया था।

5. इस युद्ध की बहुत सी लड़ाइयों में भारतीय सिपाहियों की दृढ़ता प्रदर्शित हुई जहां उन्होंने अंग्रेजी बटालियनों के साथ, अविचल रहते हुए, अपने शत्रुओं के भयंकर आक्रमणों का सामना किया। इस महायुद्ध के अंत में शानदार सैन्य विशेषताओं के लिए भारतीय सैनिकों को 11 विक्टोरिया क्रास, 5 मिलीटरी क्रास तथा बहुत से अन्य पुरस्कारों से अलंकृत किया गया था।

6. मेरे विचार से, इन लोगों ने गर्व तथा सदाशयता के जज्बे के साथ बलिदान दिया। इसे मान्यता प्रदान करने तथा सराहना किए जाने की जरूरत है। आज हम इन लोगों के प्रति अपना सम्मान और आदर व्यक्त करते हैं।

देवियो और सज्जनो,

7. एक सौ वर्ष पूर्व मानवीय लालच तथा भटके हुए देशों के कारण बहुत से देशों के युवाओं को प्राण देने पड़े। आज कुछ आतंकवादी समूहों के खतरनाक इरादों से पैदा हुए संघर्षों से विश्व के बहुत से हिस्सों में हजारों बहुमूल्य जानें जा रही हैं। गैर-राष्ट्रीय तत्त्वों और घातक आतंकवादी समूहों का उदय हमारे राष्ट्र के लिए खतरा है।

8. हमारे देश के सशस्त्र बल हमारी राष्ट्रीय अखंडता के लिए सभी चुनौतियों और खतरों का सामना करने तथा विश्व शांति और सुरक्षा में योगदान देने में सक्षम हैं। हमने एक प्रभावी प्रतिरोधक विकसित कर लिया है और अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए तत्पर हैं। आज हमारे सशस्त्र बल जिस पेशेवराना कार्यकौशल का प्रदर्शन करते हैं, वह प्रथम विश्वयुद्ध के भारतीय सैनिकों द्वारा किए गए प्रदर्शन की अगली कड़ी है।

9. इस ऐतिहासिक युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों द्वारा निभाई गई भूमिका का सम्मान करने के लिए इस स्मारक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। यह, हम सभी को हमारे बहादुर सैनिकों द्वारा दिए गए बलिदानों तथा दुनिया की शांति और सुरक्षा के लिए निभाई गई उनकी भूमिका का एक बार पुन: स्मरण करवाएगा। मैं एक बार फिर इस यादगार कार्यक्रम के आयोजन के लिए भारतीय सशस्त्र सेनाओं की सराहना करता हूं। मैं आप सभी के सुखद भविष्य की कामना करता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!

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