बरलोग गलोबल रस्ट इनिसियेटिव की पांचवीं तकनीकी कार्यशाला के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 19.08.2013
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1. गेहूं वैज्ञानिकों की एक महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय साझीदारी, बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव की पांचवीं तकनीकी कार्यशाला के उद्घाटन के लिए आज की शाम यहां उपस्थित होना मेरे लिए खुशी की बात है। मैं, इस देश, इसके कृषि वैज्ञानिकों, किसानों और जनता की ओर से आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं।
2. किसी देश का विकास उसके लोगों की उत्पादकता पर निर्भर करता है। प्रगति तभी संभव है, जब इसकी जनता स्वस्थ रहे। विश्व में ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां भोजन का अभाव है। निर्धन तथा जरूरतमंदों की भोजन तक अधिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाने की जरूरत है। बहुत से देशों के लिए अपनी विकास प्रक्रिया में अधिक समावेशिता लाना अनिवार्य हो गया है। गरीबी उन्मूलन, भोजन की अपर्याप्तता में कमी लाने, ग्रामीण रोजगार का सृजन तथा ग्रामीण आय में वृद्धि के आपस में जुड़े हुए लक्ष्यों को खाद्य उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि करके प्राप्त किया जा सकता है। राष्ट्रीय नीति निर्माण में खाद्य उत्पादन को बहुत उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
3. देवियो और सज्जनो, बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव की शुरुआत 2005 में डॉ. नॉरमन बरलोग ने की थी जिन्हें समूचे विश्व में हरित क्रांति का जनक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी के मध्य में अर्ध ऊंचाई, अधिक पैदावार और रोग प्रतिरोधी गेहूं की किस्में विकसित करने में उनके अग्रणी कार्य ने बहुत से देशों में लाखों लोगों को भूख और अभाव से बचाया है।
4. गेहूं में फफूंदी लगना हमेशा इस फसल के सतत् उत्पादन के लिए एक चुनौती रही है। 1998 में, युगांडा में मूल फफूंदी की एक नई किस्म की पहचान की गई थी, जो डॉ. बरलोग और पचास वर्ष पहले अन्य लोगों द्वारा विकसित प्रतिरोधी जीन को बेअसर कर सकती थी। नब्बे प्रतिशत गेहूं की किस्में इस फफूंदी के खतरे में आ गई। डॉ. बरलोग ने कृषि अनुसंधान में अधिक निवेश और अनुसंधान साझीदारों के अधिक समन्वित प्रयासों पर जोर दिया। बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव की शुरुआत इस नए खतरे से लड़ने के लिए इस आह्वान से शुरू हुई। सम्पूर्ण विश्व में गेहूं को फफूंदी के खतरे को रोकने और गेहूं के खेतों को इसके खतरे को कम करने के लिए उनके समर्पण में यह एक सराहनीय पहल है।
5. बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव एक प्रभावशाली संस्था है जो इस खतरे को अच्छी तरह समझने के लिए कृषि वैज्ञानिकों, रोग निदानकर्ताओं और गेहूं प्रजाति प्रजनकों को एक मंच पर लाने में सफल रही है। मैं, कृषि के साथ ऐतिहासिक सम्बन्धों वाले राष्ट्र, भारत में इस महत्त्वपूर्ण पहल को लाने के लिए बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव का धन्यवाद करता हूं और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सराहना करता हूं।
6. देवियो और सज्जनो, गेहूं दुनिया की तीसरी सबसे अधिक उगाई जाने वाली फसल और सबसे अधिक उपभोग किए जाने वाला अन्न है। भारत में उत्तर और मध्य क्षेत्रों में यह मुख्य आहार है। गेहूं की खेती सिंधु घाटी सभ्यता जितनी प्राचीन है। नवीनतम अध्ययनों ने दर्शाया है कि प्राचीन काल में वर्तमान कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जाती होगी। भारत में आधुनिक गेहूं का प्रजनन बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में तत्कालीन पूसा के इंपीरियल एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट में आरंभ हुआ। 1947 में जिस वर्ष भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बना उसने 7 मिलियन टन गेहूं पैदा किया। कृषि प्रणाली बहुत कम विकसित थी। खाद्यान्न का उत्पादन इस देश के प्रत्येक नागरिक का पेट भरने के लिए अपर्याप्त था। हमारी आबादी की पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पांचवें और छठे दशक के दौरान, हम अपनी कृषि उपज की कमी को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर थे। साठ के दशक के मध्य में भयंकर सूखे ने कृषि उत्पादकता को प्रभावित किया। साथ ही, इसने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के हमारे संकल्प को मजबूत किया।
7. भारत में कृषि शिक्षा और अनुसंधान को स्वतंत्रता के तुरंत बाद अच्छी शुरुआत मिली। 1949 में, मेरे विशिष्ट पूर्ववर्ती डॉ. एस. राधाकृष्णन ने, जो बाद में इस देश के दूसरे राष्ट्रपति बने, भारत के प्रथम शिक्षा आयोग की अध्यक्षता की। आयोग ने अमरीकी भूमि अनुदान मॉडल पर ग्रामीण विश्वविद्यालय स्थापित करने की सिफारिश की। कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इस क्षेत्र में अनेक अमरीकी विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग के माध्यम से कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। नवम्बर 1960 में प्रथम राज्य कृषि विश्वविद्यालय, जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर की स्थापना की गई। कृषि अनुसंधान की एक सुदृढ़ नींव डाली गई और इसने भारत के कृषि विकास में एक केन्द्रीय भूमिका निभाई है।
8. देवियो और सज्जनो, 1961 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा में अंतरराष्ट्रीय गेहूं फफूंदी नर्सरी में उच्च पैदावार की संभावना वाली गेहूं की अर्द्ध ऊंचाई किस्मों की पहचान की गई। इस किस्म का स्रोत डा. नोरमन बरलोग की अध्यक्षता में रौकफैलर फाऊंडेशन और मैक्सिको के कृषि मंत्रालय के एक संयुक्त प्रयास सहकारी गेहूं अनुसंधान उत्पादन कार्यक्रम में पाया गया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के गेहूं कार्यक्रम के एक तत्कालीन सदस्य डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के आमंत्रण पर, डॉ. बरलोग मार्च 1963 में भारत आए। यहां बोए गए बीजों से हुई पैदावार दक्षिण एशिया में तब तक बोई गई किसी भी फसल से अधिक थी। डॉ. बरलोग की यात्रा से हमारे कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा विकसित उच्च पैदावार वाली गेहूं की किस्मों की शुरुआत की भूमिका तैयार हो गई। गेहूं अनुसंधान निदेशालय और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों सहित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनेक संस्थानों के वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं के अथक प्रयासों ने किसानों को गेहूं की नई किस्में तथा उनकी फसल पैदावार को बढ़ाने की तकनीकी जानकारी प्रदान की।
9. आज हम, भारत में जिस संदर्भ में कृषि की बात करते हैं वह बहुत अलग है। एक विशुद्ध आयातक से हम अब, खाद्यान्न उत्पादन में एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बन गए हैं। भारत अब विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। यह दूसरा सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक भी है। विगत वर्ष 94.9 मिलियन टन के रिकॉर्ड की स्थापना के बाद 2012-13 में हमने 92.5 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हुआ है। 1947 में प्रति हेक्टेयर 0.8 टन की तुलना में अब हम प्रति हेक्टेयर 3 टन की दर से गेहूं का उत्पादन करते हैं। उत्पादकता में इतनी तेजी हमारे खाद्यान्न उत्पादन कार्यक्रम की एक बड़ी सफलता है। भारतीय वैज्ञानिक समुदाय, विशेषकर डॉ. स्वामीनाथन सहित डॉ. बरलोग इस शानदार उपलब्धि के प्रेरणा स्रोत थे।
10. देवियो और सज्जनो, डॉ. बरलोग के प्रयास ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में मदद की। आज यह क्षेत्र विश्व का सबसे विशाल इकट्ठा गेहूं उत्पादक क्षेत्र है। अधिक पैदावार वाली गेहूं की किस्में विकसित करने तथ मूल फफूंदी के विरुद्ध अपनी लड़ाई के लिए डॉ. बरलोग ने 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त किया। उन्होंने अपने स्वीकृति भाषण में जो कहा उसकी मैं कुछ पंक्तियों का उल्लेख कर रहा हूं। ‘‘यह सच है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान भूख के विरुद्ध लड़ाई के ज्वार में अच्छी दिशा में प्रगति हुई है। परंतु ज्वार जब उठता है तो इसके बाद इसे उतरना होता है। हम इस समय उच्च ज्वार पर हो सकते हैं, परंतु हमारे निष्क्रिय होने और अपने प्रयासों को ढीला छोड़ देने से ज्वार का यह उतार जल्दी आ सकता है।’’ यह जानते हुए कि भूख के विरुद्ध लड़ाई एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है उन्होंने अपनी उपलब्धियों पर संतुष्ट होने से इंकार कर दिया। उन्होंने शिक्षक, अनुसंधानकर्ता और कार्यकर्ता के तौर पर अपनी भूमिका जारी रखी तथा फसल पैदावार बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के तरीके ढूंढ़ने के लिए अथक कार्य किया।
11. भारत में गेहूं पर निरंतर अनुसंधान, डॉ. बरलोग की विरासत है। 1965 से गेहूं की चार सौ तीन किस्में विकसित करके देश के छह गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में वाणिज्यिक कृषि के लिए जारी की गई हैं। इन किस्मों को पैदावार, पोषण तत्त्व और रोग प्रतिरोधन के कड़े मूल्यांकन के बाद जारी किया गया है।
12. हमने अपनी कृषि कार्यनीति में, उच्च उत्पादकता वाले संकर बीजों को अपनाने; फसलों की विविधता; बीज प्रतिस्थापन दर और जल प्रबंधन प्रयोगों में सुधार जैसे उत्पादकता वृद्धि संबंधी उपायों पर अधिक बल दिया है। कृषक समुदाय में उर्वरकों और कीटनाशकों के संतुलित प्रयोग का भी प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए क्योंकि उनके अंधाधुंध प्रयोग से अंतत: उत्पादकता में गिरावट आ सकती है। विश्व के बहुत से क्षेत्रों में अभी भी कृषि पर मौसम हावी है। फसल बेकार होने से रोकने के लिए मौसम पूर्वानुमान में संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग और किसानों तक इसके प्रभावी प्रसार की आवश्यकता है। प्राकृतिक आपदा, कीटों तथा बीमारियों के कारण फसल खराब होने के जोखिम को रोकने के लिए कृषि बीमा जैसी व्यवस्थाओं को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
13. देवियो और सज्जनो, मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि गेहूं पर फफूंदी के खतरे को कम करने के लिए, गेहूं अनुसंधान निदेशालय और भारत के अनेक राज्य कृषि विश्वविद्यालय एवं संस्थान आज बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। ‘ड्यूरेबल रस्ट रेसिस्टेंस इन वीट’ नामक परियोजना विश्वभर के 22 अनुसंधान संस्थानों का एक सहयोगपूर्ण प्रयास है। भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों के वैज्ञानिक गेहूं की फफूंदी के फैलाव पर नज़र रखने और इस खतरे को रोकने वाली किस्में विकसित करने के समन्वित प्रयास के लिए चौबीसों घंटे कार्य कर रहे हैं।
14. भूख की समस्या की समाप्ति एक सार्वभौमिक लड़ाई है जिसके लिए सभी राष्ट्रों के सहयोग की आवश्यकता है। जब भी कभी विश्व में खाद्य सुरक्षा की चुनौती आई है तो असीम रचनात्मकता से युक्त वैज्ञानिक समुदाय मानव प्रयास में सबसे आगे रहा है। मुझे विश्वास है कि बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव सार्थक रूप से अपनी सभी साझीदारों के प्रयासों को एकजुट रख सकेगा तथा रोग के कारण गेहूं उत्पादन के खतरे पर नियंत्रण करने में कामयाब होगा।
15. डॉ. बरलोग की भारत की प्रथम यात्रा की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर यह उपयुक्त ही है कि भारत अगले कुछ दिनों के दौरान, गेहूं उत्पादन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकियों और कार्यनीतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए गेहूं रोग विज्ञानियों, प्रजनकों और अनुसंधानकर्ताओं का सबसे बड़ा सम्मेलन आयोजित कर रहा है। आज, मैं अत्यधिक गौरव के साथ बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव की पांचवीं अंतरराष्ट्रीय तकनीकी कार्यशाला आरंभ करने की घोषणा करता हूं। मुझे इस विचार-विमर्श से सार्थक समाधान निकलने की उम्मीद है। मैं बरलोग ग्लोबल रस्ट इनिसियेटिव तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की इस कार्यशाला के सफल आयोजन की कामना करता हूं।