अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर हैल्प एज इण्डिया द्वारा आयोजित समारोह में भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 01.10.2012

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देवियो और सज्जनो,

मुझे, अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन-दिवस के अवसर पर इस सभा को संबोधित करते हुए बहुत खुशी हो रही है।

कृपया मुझे आरंभ में ही अपने पूर्वाग्रह की स्वीकारोक्ति की अनुमति दें। मैं कुछ ही महीनों में सतहत्तर वर्ष का हो जाऊंगा। हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने हाल ही में अपना 80वां जन्म दिवस मनाया है। लता मंगेशकर जी ने कुछ ही दिनों पहले अपना 83वां जन्म दिवस मनाया है। न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर 97 वर्ष के होने के बावजूद चुस्त-दुरुस्त हैं, बौद्धिक रूप से सक्रिय हैं तथा हमारे देश के कल्याण तथा प्रगति के लिए बहुत चिंतनशील रहते हैं। इस सूची में बहुत से अन्य प्रख्यात व्यक्तियों के नाम जोड़े जा सकते हैं परंतु मैं इसे यहीं विराम देता हूं।

इस सभा में तथा हमारे आसपास ऐसे बहुत से वयोवृद्ध हैं जो कि हमारे देश तथा समाज के लिए बहुमूल्य सहयोग प्रदान कर रहे हैं। मैं उन्हें नमन् करता हूं और मुझे गर्व है कि मैं भी उनमें से एक हूं, एक ऐसा ‘वयोवृद्ध’ जो कि उत्पादक तथा सार्थक जीवन जी रहा है। और मुझे विश्वास है कि इससे पहले कि वे आराम के बारे में सोचें, इनमें से हर एक वयोवृद्ध अभी बहुत कुछ करना चाहेगा और देना चाहेगा।

आज चिकित्सा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में उन्नति के चलते, उम्र कोई बाधा नहीं गई है। यदि आप स्वस्थ हैं, उम्र केवल गिनती की बात है। भले ही आपने कितने भी बसंत देखे हों, आप मन और मस्तिष्क से युवा बने रह सकते हैं। जैसा कि सुप्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक डब्ल्यू समरसेट मॉम ने कहा था, ‘‘वृद्धावस्था के अपने आनंद हैं, हालांकि यह अलग तरह के हैं, परंतु ये युवाओं के आनंद से किसी भी तरह से कम नहीं।’’

फिर भी, यह एक कष्टकारी सच्चाई है कि जिन वयोवृद्धों का ऊपर उल्लेख किया गया है उनकी संख्या संभवत: काफी कम है। यह कहा जाता है कि दुनिया भर में 10 लाख से अधिक लोग हर महीने 60 वर्ष की उम्र पार कर जाते हैं। विश्व बैंक का यह मानना है कि दुनिया के अधिकतर देशों पर यह बढ़ती उम्र का आसन्न संकट है। वयोवृद्धों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के खास इरादे से ही संयुक्त राष्ट्र ने 1 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस घोषित किया है। पूरी दुनिया में, जहां इस बात की खुशी है कि चिकित्सा विज्ञान तथा आर्थिक विकास के कारण मनुष्यों की उम्र लम्बी होती जा रही है, वहीं इस बात की भी चिंता है कि बढ़ती उम्र 21वीं सदी की प्रमुख आर्थिक तथा राजनीतिक चुनौतियों में से एक है।

भारत एक युवा देश है तथा हमें इस बात की खुशी है कि हमारी 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम की है। हम यह उम्मीद करते हैं कि युवा जनसंख्या से जो लाभ प्राप्त होते हैं, उनसे हमारे देश का आर्थिक भविष्य उज्ज्वल होगा। तथापि, हमें यह याद रखना होगा कि हमारे देश में वयोवृद्धों की अच्छी खासी जनसंख्या मौजूद है और उनकी जरूरतों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड की शीघ्र ही जारी होने वाली रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक हमारी 20 प्रतिशत जनसंख्या वयोवृद्ध होगी। हम अपनी जनसंख्या के इस वर्ग को नजरअंदाज या उपेक्षा नहीं कर सकते।

हमारे सपनों का भारत एक दयालु, स्नेही तथा करुणायुक्त समाज है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 41 में, जो कि नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित है, राज्य से अपेक्षा की गई है कि वह अपनी आर्थिक क्षमता तथा विकास की सीमाओं के तहत वृद्धावस्था के मामलों में सरकारी सहायता के लिए कारगर प्रावधान करेगा। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि दुनिया के ऐसे कितने और संविधान होंगे जिनमें वयोवृद्धों को सहायता प्रदान करने की राज्य की जिम्मेदारी के बारे में स्पष्ट निर्देश मौजूद होंगे। हालांकि नीति निर्देशक तत्त्व मौलिक अधिकारों की हैसियत नहीं रखते और वे कानूनी रूप से लागू नहीं किए जा सकते परंतु इन सिद्धांतों को देश के शासन के लिए बुनियादी माना जाता है और राज्य का यह कर्तव्य माना गया है कि वह एक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए कानून बनाते समय इनको लागू करे।

मुझे, यह स्वीकार करना है कि हैल्प एज द्वारा 20 शहरों में कराए गए सर्वेक्षण से प्राप्त निष्कर्षों को देखकर मुझे बहुत चिंता तथा विस्मय हुआ है, जिसमें यह पाया गया है कि एक तिहाई वयोवृद्धों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा है। यह जानकर और भी अधिक दु:ख हुआ कि इस सर्वेक्षण में उन्होंने अपने बेटे और बेटियों को ही दुर्व्यवहार के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार बताया है। बहुत से लोगों ने बताया है कि उनके साथ यह दुर्व्यवहार पांच साल से भी अधिक समय से हो रहा है और अधिकतर लोग परिवार का सम्मान बनाए रखने के लिए इस तरह के दुर्व्यवहार की सूचना नहीं देते। जिन वयोवृद्धों का सर्वेक्षण किया गया उन्होंने अपमान, उपेक्षा, गाली-गलौज, मार-पीट तथा मानसिक प्रताड़ना के बारे में बताया। सबसे चिंताजनक बात यह है कि दुर्व्यवहार से ग्रस्त अधिकतर लोगों की उम्र 80 वर्ष से अधिक है।

मुझे उम्मीद है कि ये निष्कर्ष आंख खोलने के लिए काफी होंगे और हममें से हर एक को तुरंत कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करेंगे। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए यथासंभव प्रयास करने होंगे कि हमारे वयोवृद्ध सम्मानयुक्त जीवन जी सकें, उन्हें सबसे अच्छी चिकित्सा सुविधाएं, आर्थिक सुरक्षा तथा भावनात्मक स्थायित्व मिलता रहे। हमारी संस्कृति, इतिहास, परंपराएं, धर्म तथा दर्शन, सभी हमें यह बताते हैं कि हमें अपने बुजुर्गों का आदर करना चाहिए और उनके जीवन को खूब प्यार और स्नेह से भरपूर रखना चाहिए। भारत आज जो भी है, वह हमारे बुजुर्गों द्वारा जवानी में किए गए उनके सहयोग के कारण है। उन हाथों ने आपको तब सहारा दिया था जब आप चलना सीख रहे थे इसलिए आपको उन्हें तब सहायता देनी चाहिए जब उन्हें सहायता की जरूरत है और उम्मीद है कि जब आप बूढ़े होंगे तब आपकी भी सहायता के लिए कोई आगे आएगा।

हमारे देश में बुजुर्गों में से अधिकतर महिलाएं हैं तथा सबसे अधिक वृद्धों में 65 प्रतिशत महिलाएं हैं। यह कष्ट की बात है कि 58 प्रतिशत वृद्ध महिलाएं विधवा हैं। बढ़ती उम्र के इस लैंगिक पहलू पर ध्यान देने और समुचित उपाय करके उसका समाधान करने की जरूरत है। मुझे इससे पहले, कोलकाता से आई हुई बुजुर्ग ‘मासियों’ से मिलकर बहुत खुशी हुई, जिनकी देखरेख हैल्प एज इण्डिया द्वारा की जा रही है।

पूरे भारत में, ‘संयुक्त परिवार’ समाप्त होते जा रहे हैं और इनके साथ ही वह अनौपचारिक सहायता ढांचा भी खत्म होता जा रहा है जिससे बुजुर्गों को सहयोग मिलता था। इसका हमारी जनसंख्या के वयोवृद्ध हिसे के आर्थिक, स्वास्थ्य, भावनात्मक तथा शारीरिक सुरक्षा पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। इन चुनौतियों को औद्योगिकीकरण तथा आधुनिकीकरण के संदर्भ में समझना होगा जिसके कारण परिवार के आकार, उसके ढांचा तथा इसके मार्गदर्शक सिद्धांतों पर दुष्प्रभाव पड़ा है। यह सच्चाई है कि हम समय को वापस नहीं लौटा सकते परंतु हमें ऐसे उपाय करने होंगे जो कि वयोवृद्धों तथा परिवार के युवा सदस्यों की परस्पर विरोधी मांगों के बीच संतुलन कायम रख सकें।

स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में, असली चुनौती चिकित्सा सुविधाओं की सुगमता तथा वहनीयता की है। वयोवृद्धों को विशेष जराचिकित्सा संबंधी देखरेख की जरूरत होती है और यह विशेषज्ञ अस्पतालों में ही उपलब्ध होती है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ-साथ चिकित्सा खर्च बढ़ते जाते हैं जबकि उनकी आय घटती जाती है या फिर महंगाई बढ़ने के बावजूद उतनी ही बनी रहती है। निजी अस्पताल वयोवृद्धों को छूट प्रदान करने में हिचकिचाते हैं तथा बीमा कंपनियां उनका बीमा करने के लिए अनिच्छुक दिखाई देती हैं। मैं हैल्प एज जैसे गैर सरकारी संगठनों का आभारी हूं जो अपने सचल चिकित्सा वाहनों के जरिए 10 लाख से भी अधिक वयोवृद्धों को चिकित्सा सहायता प्रदान कर रहे हैं।

आर्थिक क्षेत्र में, वित्तीय बाजारों में बाजारी शक्तियों के पूर्ण सक्रिय होने से ब्याज दरों में कमी आई है। ब्याज ऐसे बहुत से वयोवृद्धों की आय का मुख्य स्रोत है जो कि किसी भी प्रकार की नियमित पेंशन नहीं पाते परंतु अपने संसाधनों को ऐसी जमा योजनाओं में निवेश कर देते हैं जो कि सुनिश्चित आय प्रदान करते हैं।

भारत सरकार ने वर्ष 1999 में, जो कि अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष था, वृद्धजनों के बारे में एक राष्ट्रीय नीति शुरू की। यह एक व्यापक दस्तावेज है जिसमें हस्तक्षेप तथा कार्रवाई कार्य-योजनाओं के लिए प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की गई है। इस नीति को सरकार द्वारा पूर्ण गंभीरता से कार्यान्वित करने की जरूरत है। इस काम में सरकार की सहायता हैल्प एज इण्डिया तथा दूसरे वृद्धजन संगठनों को करनी होगी।

आज इस बात की बहुत जरूरत है कि बुजुर्गों और बढ़ती उम्र से संबंधित मुद्दों को मुख्य धारा में लाया जाए। वयोवृद्धों की जरूरतों तथा उनकी अपेक्षाओं की समाज द्वारा उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। हमें उम्रदराजी से लड़ने की जरूरत है जो कि हमारे समाज की मानसिकता में गहरे तक पैठी हुई है तथा उसे मीडिया द्वारा भी बढ़ावा दिया जाता है। बुजुर्गों के बारे में, यह नहीं माना जाना चाहिए कि वे अब कार्य नहीं कर सकते और उन्हें केवल इतिहास समझकर उपेक्षित नहीं छोड़ा जाना चाहिए बल्कि उन्हें समाज का सक्रिय सदस्य मानते हुए उसकी भलाई के लिए कार्य करने वाले सदस्य के रूप में देखा जाना चाहिए।

समाज और सरकार दोनों को इस तथ्य से अवगत कराया जाना चाहिए कि वृद्धावस्था भी जीवन का एक दूसरा चरण है और उसकी भी बचपन और युवाओं के समान विशेष जरूरतें और विशेषताएं हैं। यद्यपि जीवन के इस चरण में जीवन के अन्य चरणों के मुकाबले क्षति अधिक होती हैं तथापि यह नहीं समझना चाहिए कि सब कुछ खो चुका है। युवाओं को यह जानना चाहिए कि दुनिया बुजुर्गों की नजरों से कैसे दिखाई देती है, क्योंकि युवाओं का वही भविष्य हैं।

सबसे अधिक जरूरी यह है कि वयोवृद्धों को ‘रिटायरमेंट मानसिकता’ से बाहर निकल कर वृद्धावस्था को एक दूसरी पारी अर्थात एक ऐसा अवसर समझने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिसमें वे अपने अपूर्ण कार्य पूरे कर सकते हैं और अपना विस्तार कर सकते हैं, अपने तथा अपने परिवार से बाहर देख सकते हैं तथा समुदाय के लिए काम कर सकते हैं। समाज में सक्रिय भागीदारी तथा उससे संबद्धता से स्वतंत्रता, सम्मान तथा आत्मसंतोष सुनिश्चित हो सकता है।

एक दयालु तथा सहृदय समाज अपने प्रत्येक सदस्य का ध्यान रखता है। जहां युवाओं में ऊर्जा है, बुजुर्गों में ज्ञान और अनुभव है। हमें केवल उन्हें उत्पादक बने रहने के लिए अवसर उपलब्ध कराने हैं। किसी भी परिस्थिति में हमारे समाज में बुजुर्गों को यह नहीं लगना चाहिए कि वे बोझ हैं तथा हम उनकी देखभाल करने के इच्छुक नहीं हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे खुश रहें तथा हमें निश्चय ही उनके आशीर्वाद की जरूरत है।

आज विश्व वृद्धजन दिवस के इस अवसर पर मैं यहां उपस्थित सभी वरिष्ठ नागरिकों का अभिनंदन करता हूं तथा यह कामना करता हूं कि आप सभी का स्वास्थ्य अच्छा रहे और आप मानसिक तथा शारीरिक रूप से सक्रिय जीवन जीएं। मैं यहां उपस्थित सभी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को बधाई देता हूं तथा उनको उनके द्वारा किए गए महती कार्य के लिए हृदय से सराहना करता हूं।

मैं हैल्प एज इण्डिया के दूरदर्शी संस्थापक स्वर्गीय सेमसन डेनियल को नमन् करता हूं जिन्होंने 1975 में यह संगठन खड़ा किया था। उनके उत्तराधिकारी श्री एम.एम. सभरवाल को, जिन्होंने पूरे देश में हैल्प एज इण्डिया का विस्तार किया तथा इसके सभी सदस्यों, स्वयंसेवकों और समर्थकों को भी बधाई देता हूं जिन्होंने बुजुर्गों की सेवा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर किया है।

मैं भारत के हर एक नागरिक से आग्रह करता हूं कि वे हमारे देश में बुजुर्गों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करें तथा हमारे समाज को समृद्ध करने के लिए तथा उनको हमारे देश की प्रगति और विकास में सहयोग देने के लिए अवसर दें।

मुझे इस बात की विशेष खुशी है कि आज के दर्शकों में दिल्ली के बहुत से स्कूलों के बच्चे मौजूद हैं। बच्चो, मुझे उम्मीद है कि आप में से हर-एक अपने दादा-दादी और उनके हम उम्र अन्य लोगों के जीवन में अधिक से अधिक खुशियां लाने की शपथ लेंगे।

मैं अपनी बात हेनरी वड्सवर्थ लोंगफलो के एक उद्धरण से समाप्त करना चाहूंगा— 
‘बढ़ती उम्र नहीं है कम, 
किसी युवा से, है बदला रूप बस 
जिस तरह संध्या का धुंधलका बढ़ता 
और दिखाई देते तारे, 
रहते जो अदृश्य दिन के प्रकाश में ’

जय हिंद!

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