8वें हॉम्स सम्मेलन में उपस्थित मिशनों के प्रमुखों की अपील के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 06.05.2017
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मैं आपके वार्षिक सम्मेलन के अवसर पर आपसे भेंट करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
सर्वप्रथम, मैं एक बार दोबारा सम्मेलन आयोजित करने के लिए विदेश मंत्रालय को बधाई देता हूं। किसी भी मंत्रालय के लिए आगामी अवधि में कार्यान्वयन के लिए जायजा लेना, स्पष्ट मूल्यांकन करना, नीति-निर्देश निरूपित करना एक बड़ा उपयोगी प्रयास है। ‘होशियार कूटनति, तेज वितरण’ विषय उपयुक्त रूप से समय की मांग को दर्शाता हे। मैं इस बात से प्रसन्न हूं कि आपको एक समूह के रूप में कार्य करने और उस पद्धति को परिभाषित करने का अवसर मिला जिसमें आप इस कहावत को अपना सिद्धांत और अपना लक्ष्य भी बनाने का अवसर मिला।
मैं समझता हूं कि आपके पास उत्साही सत्रों के तीन दिन हैं जिसमें आपने पूरी जिम्मेदारियों की संवीक्षा की है। आप में से प्रत्येक अलग-अलग स्थानीय वातावरण में कार्यरत हैं क्योंकि आप देश में उन स्थानों पर भारत की विदेश नीति के उद्देश्य को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा हे। जहां आप तैनात हैं। प्रत्येक मेजबान देश के साथ, आपको एक दृष्टिकोण और ऐतिहासिक ज्ञान रखना पड़ता है, एक नियत एजेंडे का अनुसरण करना पड़ता है और द्विपक्षीय मसलों के एक विशेष सेट को पूरा करना पड़ता है। आपसे अपने परिणाम को प्राथमिकता देने की उम्मीद की जाती है—संक्षिप्त में, मध्यम और दीर्घ्ज्ञावधि में द्विपक्षीय अभिसरण को मस्तिष्क में रखने और अपेक्षाकृत बड़ा, क्षेत्रीय और वैश्विक संदर्भ करने की उम्मीद की जाती है।
यह वर्ष, आपको अंतरराष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा परिदृश्य में प्रभावशाली परिवर्तन के समाधान की पूर्ति करनी है। शक्ति ‘अधिक शक्ति’ और वैश्विक प्रभाव में इस प्रकार से परिवर्तन आया है कि कम ही लोगों ने उम्मीद की थी। एक नया विश्व क्रम बन गया है। सभी मनुष्य जात ने आज अंतरराष्ट्रीय मुद्दों द्वारा चुनौति स्वीकार कर ली है जिन्हें तत्कालीन सामूहिक और नवान्वेषी रूप से सुलझाए जाने की आवश्यकता है। चाहे वह औषध रोधी वाइरस हों, पर्यावरणीय अवनयन, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन हो—अथवा ऊर्जा जल और खाद्य सुरक्षा हो, इन मसलों पर कोई भी देश गहन चिंता से मुक्त होने का दावा नहीं कर सकता।
मध्य एशिया में संघर्ष और भी अधिक हो गया है। अफ्रीकन महाद्वीप से आर्थिक प्रवास, जिसके बाद युद्ध से ध्वस्त देशों की बाढ़ आ गई, ने एक युग में समृद्ध यूरोपियन महाद्वीप को किनारे पर ला खड़ा कर दिया है। महाद्वीपों में आबादी भयभीत अंतर्मुखी और हो रही है। आरंभिक बिंदू अथवा प्रेरणाकारक का महतव कम हो गया है—इस समय विश्व पर पड़ने वाले प्रभाव से निपटना प्रासंगिक हो गया है।
मेंने उस क्षेत्र का दौरा 2015 और 2016 में किया है—और अपनी प्रेजीडेंसी के दौरान मध्य पूर्व, खाड़ी और अफ्रीकी महाद्वीप के देशों और सरकार के अनेक प्रमुखों की मेजबानी की है। इन सभी नेताओं का निरपवाद रूप से एक सामान्य दृष्टिकोण विकास के लिए अनिवार्य था कि उनके क्षेत्र में शांति, उनकी उच्चतम प्राथमिकता थी। उनका दृष्टिकोण समान था—उन्होंने अपना विश्वास मेरे साथ बांटा कि उनके द्वारा अपनायी गई किसी भी सफलता प्रक्रिया को अंगीकार किया जाना चाहिए और उनके लोगों द्वारा उसका अनुसरण किया जाना चाहिए; और यह भी कि अंतिम समाधान औपचारिक रूप से त्याज्य बल द्वारा हासिल किया जाना चाहिए और सहिष्णुता, संवाद और विश्वास का चयन किया जाना चाहिए।
इस प्रकार, मेरा विश्वास है कि इस स्तर पर, नए विश्व क्रम की गतिशीलता का सही प्रकार से विश्लेषण किया जाना चाहिए और इसे समझना चाहिए। मिशनों के प्रमुखों के रूप में आपको सुनिश्चित करना होगा कि विश्व कार्य मामलों में एक सम्मानित और जिम्मेदार खिलाड़ी और उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत हर समय अपने मुख्य हितों की संरक्षा और सर्वोत्तम लाभ के लिए नई चुनौतियों का उत्तर दे। मैं इस बात पर बल देना चाहूंगा कि यह क्षण सामरिक नीति बनाने, नेतृत्व और एक आत्मनिर्भर विदेश नीति—जो सिद्धांत, व्यवहारिकता और परम्परागत की नीति पर आधारित हो—का अनुसरण करने का है। इस संदर्भ में, मैं स्वामी विवेकानन्द द्वारा परिकल्पित ‘एकता’ और ‘धारणा’ के दर्शन की लंबी प्रासंगिकता पर और महात्मा गांधी द्वारा उद्धृत सत्य और अहिंसा पर आश्चर्यचकित हूं। सतत विकास, पुनर्चक्रण, प्रकृति को वापस लौटाना, हमारे पर्यावरण को बचाना, ऊर्जा-संरक्षण, लोगों में शांति, धर्मों में सहिष्णुता, पुरुष और महिला समानता, शांति और नि:शत्रीकरण : ये सिद्धांत उन सर्वाधिक जटिल चुनौतियों का समाधान करने की कुंजी हैं जो आज विश्व के विरोधी हैं। मैं आशावाद भी महसूस करता हूं कि द्विपक्षीय, बहुपक्षीय, क्षेत्रीय तथा उप क्षेत्रीय पहलों द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा बारीकी सेवा गहन और समन्वित प्रयास—अंतत: उभर कर आएंगे।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में हमने गणतांत्रिक संस्थानों के निर्माण और सशक्त होने में अनेक मित्रों की सहायता की है। परन्तु हमने सदैव निर्देशक होने के प्रति सचेत रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र और इसके अवयवों की संरक्षा में, मानवीय सहायता और शांति प्रदान करने के हमारे प्रयास सदैव प्रशंसनीय रहे हैं और उनको महतव दिया गया है और वस्तुत: संयुक्त राष्ट्र का प्रत्येक सदस्य भारत के इस तर्क से सहायता है कि ीरत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। यह भी बड़े संतोष का विषय है कि भारतीय विदेश नीति के स्तंभों में से एक अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का सिद्धांत है। इससे हमारा कार्य सरल हुआ है और भारत को विश्व में मित्रों और भागीदारों का विश्वास अर्जित करने में सहायता मिली है। इस सिद्धांत के प्रति हमारी गंभीरता से बने रहने सवे यह सिद्धांत भी एकल रूप से सामने आया है कि हम अपने मित्रों और अन्यों से भी हमारे प्रति ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं।
हम एक विकासशील देश हो सकते हैं परंतु हम तेजी से उभरते हुए देशों में से हें। मुझे प्रसन्नता है कि भारत सरकार के द्वारा सुधार और हाल ही के पहलों ने निवेशकों और भावी साझेदारों के लिए व्यवहार्य हमारे औद्योगिक क्षेत्रों के लिए हमारी अर्थव्यवस्था को आकर्षक बनने दिया है। मैं प्रक्रियाओं की अपेक्षा हमारी सरकार के परिणामों पर पुन: बल देने का स्वागत करता हूं। आज जिस प्रकार से हम ज्ञान को साझा करते हैं, व्यापार करते हैं, परामर्श करते हैं और जिस प्रकार हम अपना राजनयिक कार्य करते हें, प्रौद्योगिकी ने उपायों में क्रांति ला दी है। कुछ देशों में, यह चोरी छुपे सुनने (ईव्स ड्रॉपिंग) और साइबर युद्ध के लिए इस्तेमाल की जा रही है। नि:संदेह आप इन मामलों की ओर देख रहे हैं और व्यापक रूप से निपटान कर रहे हैं।
मैं पुरजोर तरीके से यह भी कहना चाहता हूं कि वैश्विक और अंतरराष्ट्रीय मामले जैसे समुद्री सुरक्षा, जन संहार के प्रसार, जोखिम वाले हथियार, साइबर सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय उग्रवाद, नाले पदार्थों की तस्करी, अवैध प्रवास और अंतरराष्ट्रीय अपराध से निपटने के लिए हमारी योजना व्यापक और स्पष्ट होनी चाहिए।
विश्व वक्तव्यों और संकल्पों से थक चुका हे। तेजी से प्रभावी समाधान पैदा करने और उन्हें कुशलतापूर्वक लागू करने के लिए हमें अपने जैसे मस्तिष्क वाले देशों और वैश्विक संस्थानों के साथ काम करने के प्रयास करने चाहिए। प्रत्येक अभिगृहीत प्रचार के कुछ सकारात्मक परिणाम होंगे। इसलिए मैं कहूंगा कि आप पहल करें। आप मैदान में उत्र चुके हैं और आपके प्रयास और अदान महत्त्वपूर्ण हैं।
आपमें से अनेक लोग मुझे विभिन्न अवसरों पर मिले हैं और आपने मुझे सामान्य अपेक्षाओं पर आधारित अपने मेजबान देशों के साथ हमारे सरकारी पहलों, मामलों और द्विपक्षीय एजेंडे के बारे में संक्षिप्त ब्यौरा दिया। मैं इस बात से अवगत हूं कि आप चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं। आपमें से बहुधा की छोटी टीम है। आपके स्थानों का दौरा करते समय मैंने अकसर यह नोट किया कि हमारे मिशन संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर रहे हैं। मैं आप सबको इतना अच्छा प्रबंध करने के लिए मुबारकबाद देता हूं।
मुझे प्रसन्नता है कि आपके कंसुलर में वीसा और पासपोर्ट सेवाएं और भारतीय डायसपोरा के साथ संवाद में आप भारतीय समुदाय को उपयुक्त प्राथमिकता देते हैं। चाहे वह भारतीय मूल के व्यक्ति हों, निर्वासित प्रवासी, पर्यटक अथवा कारोबारी, वे भारतीय दूतावास और भारतीय राजदूत को अपना समझते हैं। पपुआ गिनी से बेलारूस, और आइवरी कोस्ट से फिनलैंड, मैंने केवल तथाकथित ‘भारतीय समुदाय’ को न केवल बड़ा सहायक पाया बल्कि उन्हें हमारे मिशनों के संसाधन की आपूर्ति करते हुए भी पाया। यह मार्मिक अनुभव था और उनकी शराफत और भावना का एक अन्य उदाहरण था। कृपया उनहें मेरी शुभकामनाएं दें।
जैसा कि आप अपने संसाधनों को भारत की सकारात्मक प्रस्तुति के लिए प्राथमिकता देते तहैं और उसे साझेदारों और विश्व के निकट लाते हैं, मैं आपसे गांधी जी के ‘तिलस्म’—सरलतम परीक्षण—अपने आपसे हर कदम पर पूछना कि आपको परिश्रम भारत मतें कमजोर लोगों को प्रभावित करने के कैसे कार्य करेगा, के निकट रहने की सलाह दूंगा।
जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे लगता है कि आगे देखने के लिए बहुत कुछ है। मैं आपसे बड़ी अपेक्षाएं करता रहूंगा। इन शब्दों के साथ, मैं आपको अपनी शुभकामनाएं देता हूं और आपके स्थान पर सुरक्षित पहुंचने की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!