‘30 वीमेन इन पावर: देअर वोयसेस, देअर स्टोरीज’ पुस्तक की योगदानकर्ताओं द्वारा भेंट के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 31.08.2015

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spआज की शाम मुझे उन विशिष्ट उपलब्धि प्राप्तकर्ताओं से मिलने के लिए यहां उपस्थित होने पर वास्तव में प्रसन्नता हो रही है,जिन्होंने‘30 वीमेन इन पावर’पुस्तक में योगदान दिया है।

2. मैं इन असाधारण महिलाओं की उपलब्धियों को संकलित करने के प्रयासों के लिए अत्यंत उत्कृष्ट बैंकर नैना लाल किदवई को बधाई देता हूं। मैं इस पुस्तक में शामिल उन सभी प्रख्यात और सशक्त महिला प्रमुखों की भी सराहना करता हूं जो कार्यकलापों के अनेक क्षेत्रों में अग्रणी हैं। सफलता की दिशा में उनकी यात्रा की गाथाएं और अनुभव निश्चित रूप से सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन के विशाल स्रोत के रूप में कार्य करेंगी। परंतु मैं कहना चाहूंगा कि यह सभी व्यक्तियों-पुरुषों और महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत होंगी क्योंकि वे चुनौतियों, विश्वास, समर्पण,निष्ठा और अदम्य साहस की गाथाएं हैं,जिनके बिना कोई सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। यह पुस्तक पुरुषों को महिलाओं की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं के प्रति जागरूक करेगी और उन्हें यह अहसास करवाएगी कि उनके प्रत्येक निर्णय में महिलाओं के सम्मान को स्थान मिलना चाहिए।

3. यह पुस्तक केवल इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि यह महिला सशक्तीकरण पर गौरवन्वित होने का अवसर देती है वरन् यह उन लड़ाइयों की भी समयोचित याद दिलाती है जो अभी लड़ी जानी हैं और जिन्हें आसमान के नीचे अपना स्थान पाने के लिए महिलाओं द्वारा प्रतिदिन लड़ा जा रहा है। यह पुस्तक महिलाओं की आंतरिक शक्ति के तथा उनके उस संकल्प और विश्वास के बारे में है जो उन्हें बहुत आगे ले जा सकता है। ॒

4. एक राष्ट्र के रूप में हमें समान अवसर तथा गरिमापूर्ण जीवन जीने के महिलओं के अधिकारों को पावन मानना चाहिए। इस दिशा में पहला कदम सैद्धांतिक रूप से पहले ही हमारे संविधान शामिल किया गया है जिसमें सभी के लिए समानता की संकल्पना की गई है। परंतु जैसा कि मैंने उल्लेख किया,इसे महिला केंद्रित विधान के जरिए तिहत्तरवें और चौहत्तरवें संशोधनों के पूर्ण कार्यान्वयन द्वारा तथा न केवल अंतरराष्ट्रीय समझौतों (महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर समझौते सहित) की पुष्टि के द्वारा ही नहीं बल्कि उन्हें मूल भावना के साथ लागू करके बहुत से क्षेत्रों में लागू करना होगा।

5. विशेषकर कानूनों को वास्तविकताओं में बदलने की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अधिक से अधिक बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करनी होगी;अधिक से अधिक महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनने के लिए प्रोत्साहित करना होगा तथा अधिक से अधिक संस्थाओं को महिलाओं की आकांक्षाओं को सहयोग देना होगा।

6. यदि अवसर प्रदान किया जाए तो स्वाभाविक रूप से एक साथ विभिन्न कार्यों को करने में सक्षम महिलाओं में अपनी पसंद के किसी भी क्षेत्र में उन्नति और उत्कृष्टता प्राप्त करने की क्षमता है। हमें संस्थाओं के भीतर ऐसे तंत्र निर्मित करने चाहिए जो महिलाओं को निर्णय लेने की हैसियत तक पहुंचने में मदद करें।

7. एक पहलू जो मुझे बेहद चिंतित करता है,वह महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती हिंसा है। जो समाज महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकता,उसे सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता। वैदिक सभ्यता में महिलाओं को सदैव सर्वोच्च सम्मान और स्वतंत्रता दी जाती थी तथा साथ ही उनकी सुरक्षा और रक्षा संपूर्ण समाज का पावन कर्तव्य होता था। यह हमारी संस्कृति है,यह हमारी धरोहर है। हमें इसे नहीं भुलाना चाहिए। ऐसा वातावरण बनाना हमारा सामूहिक दायित्व है जो समाज में महिलाओं की सुरक्षा,हिफाजत तथा गरिमा सुनिश्चित करे।

8. अपनी बात समाप्त करने से पूर्व,मैं एक बार पुन: इस पुस्तक के प्रकाशन से संबद्ध सभी लोगों को अपनी बधाई देता हूं तथा उनके प्रयासों के सफल होने की कामना करता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!

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