11वें प्रवासी भारतीय दिवस के समापन समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
कोच्चि, केरल : 11.01.2013
डाउनलोड : भाषण (हिन्दी, 253.17 किलोबाइट)
मुझे 11वें प्रवासी भारतीय दिवस के समापन व्याख्यान के लिए आपके बीच उपस्थित होकर बहुत प्रसन्नता हो रही है। आज का दिन हमारे देश के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण दिन है क्योंकि इसी दिन 98 वर्ष पहले, हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे।
यह उपयुक्त ही है कि 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में चुना गया है क्योंकि यह प्रवासियों के लिए घर वापसी जैसा है, भले ही यह सांकेतिक हो। यह अवसर, हमारे देश को अपने प्रवासी भारतीयों के साथ संबंधों का फिर से नवीकरण करने और उन्हें मजबूत बनाने का और आप सबके द्वारा अपनाए गए अपने-अपने देशों में, विभिन्न क्षेत्रों में किए गए अनुकरणीय कार्यों के लिए उत्सव मनाने और उसको मान्यता देने का भी अवसर है।
यह उपयुक्त है कि यह कार्यक्रम केरल में आयोजित किया जा रहा है क्योंकि इस राज्य ने कई महत्त्वपूर्ण तरीकों से यह दर्शाया है कि प्रवासी भारतीय किस प्रकार उस राज्य के कल्याण के लिए योगदान दे सकते हैं, जिसके साथ उनके प्रगाढ़ संबंध हैं। इस राज्य से लाखों कामगार और पेशेवर विदेशों, खासकर खाड़ी के देशों में गए और इस राज्य के कल्याण में उनका योगदान प्रशंसनीय रहा है। उन्होंने इस राज्य को ऐसा राज्य बनाकर समाज के कल्याण को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसने विकास सूचकांक के कई उच्चतम् प्रतिमान स्थापित किए।
केरल के सतत् विकास तथा सामाजिक-आर्थिक रूपांतर में अनिवासी केरलवासियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। निवेश तथा देश में धन भेजकर उन्होंने राज्य को अद्वितीय योगदान दिया है। विकास अध्ययन केंद्र, तिरुअनंतपुरम द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार केरल के प्रवासियों ने वर्ष 2011 में लगभग 49695 करोड़ रुपए देश को भेजे। राज्य सरकार ने भी प्रवासी भारतीयों के मामलों का निपटारा करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण कदम केरल में 1996 में अनिवासी केरलवासी कार्य विभाग नामक पृथक संगठन की स्थापना था।
प्रवासी भारतीयों ने उन देशों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देकर हमारे देश का सम्मान बढ़ाया है जहां घर बसाने का उन्होंने फैसला किया है। हर एक भारतीय के लिए यह गर्व की बात है कि इस समय विभिन्न देशों में ऐसे 5 राष्ट्राध्यक्ष अथवा शासनाध्यक्ष तथा उप राष्ट्राध्यक्ष, स्पीकर तथा मंत्री जैसे 70 वरिष्ठ राजनीतिज्ञ मौजूद हैं जिनकी जड़ें भारत में हैं।
देवियो और सज्जनो, महामहिम, श्री राजकेश्वर प्रयाग भी ऐसे ही एक प्रमुख शख्सियत हैं। वे उस नेतृत्व तथा जन सेवा की भावना का प्रतीक हैं, जिसके प्रदर्शन के लिए भारतीय प्रसिद्ध हैं। हमें इस बात की खुशी है और इसके लिए हम उनके आभारी हैं कि वह आज हमारे बीच विश्व के प्रवासी भारतीयों के शानदार प्रतीक के रूप में तथा मॉरिशस के उस दो तिहाई जनता के प्रतिनिधि के रूप में यहां उपस्थित हैं, जो भारतीय मूल की है।
भारत के मॉरिशस के साथ दीर्घकालीन तथा सुदृढ़ संबंध हैं। भारत-मॉरिशस के संबंध इन प्रवासी भारतीयों और भारत के बीच ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक रिश्तों की आधारशिला पर प्रगाढ़ होते रहे हैं। यह विशेष प्रसन्नता की बात है कि मॉरिशस का राष्ट्रीय दिवस 12 मार्च को मनाया जाता है और यह वही दिन है जब महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा की शुरुआत की थी। महात्मा गांधी भी 1901 में दक्षिण अफ्रीका से भारत की यात्रा के दौरान मॉरिशस में थोड़े समय के लिए रुके थे।
देवियो और सज्जनो, आज 110 देशों में लगभग 25 मिलियन प्रवासी भारतीय रहते हैं। इस प्रकार यह बहुत सी भौगोलिक और बहुत से ऐतिहासिक यात्राओं की कहानी है।
विदेशों में यह विशाल तथा विविधतापूर्ण भारतीय समुदाय विभिन्न कारणों से, जिनमें वाणिज्यवाद, उपनिवेशवाद तथा वैश्वीकरण मुख्य हैं, बढ़ा है। उपनिवेशों के विभिन्न प्रकारों, अपने नए निवासों में उनके एकीकरण तथा नई पहचान और लोकाचार की शुरुआत ने प्रवासी भारतीयों को कई मामलों में विशिष्ट बना दिया। यह तकलीफों और विपत्तियों की गाथा तथा अंत में उन पर इच्छा शक्ति तथा कठिन परिश्रम की विजय का प्रतीक है। वास्तव में मानवीय प्रयासों का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिस पर आपकी छाप न हो।
प्रवासी भारतीय कनाडा, मलेशिया, सिंगापुर, मॉरिशस, दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, यू.के. तथा खाड़ी के देशों तथा वेस्टइंडीज के देशों में काफी तादाद में रहते हैं। मुझे बताया गया है कि बहरीन में, जो भी व्यापारिक संस्थान हैं, उनमें से हर एक में वरिष्ठ अथवा मध्यम प्रबंधन के स्तर पर एक न एक भारतीय मौजूद है।
भारतवंशियों में से कुछ सबसे मेधावी लोग उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। स्वर्गीय डॉ. हरगोविंद खुराना को 1968 में औषधि के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया था। स्वर्गीय डॉ. एस. चंद्रशेखर को 1983 में भौतिकी के लिए नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया था और उनके नाम पर नासा की प्रमुख एक्सरे वेधशाला का नाम रखा गया है। इस कड़ी में सबसे नया नाम डॉ. वेंकटरामन रामकृष्णन का है जिन्हें 2009 में रसायन के लिए नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया।
जहां हम प्रवासी भारतीयों की उपलब्धियों का जश्न मना रहे हैं वहीं हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनमें से बहुत से खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तथा कई कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इनमें से कई लोग मजदूरों के रूप में और घरेलू नौकरों के रूप में काम कर रहे हैं। कई लोगों को कड़े श्रम कानूनों, कठोर कार्य परिस्थितियों, वेतन के न मिलने, संविदा के समय से पहले खत्म होने, तथा संविदा की शर्तों में बदलाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
विदेशों में हमारे मिशन इनमें से बहुत सी समस्याओं का समाधान करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इस संबंध में प्रवासी भारतीय भी सहयोग कर सकते हैं। वे भी प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय के तहत आने वाले विभिन्न संगठनों के साथ, कानूनों में बदलाव और रोजगार की शर्तों के बारे में सूचनाएं बांट सकते हैं और शोक इत्यादि जैसे संकटों के दौरान उनकी सहायता कर सकते हैं।
मुझे सूचित किया गया है कि, खासकर खाड़ी के देशों में प्रवासी भारतीय संगठन इस तरह की सेवाएं प्रदान करते हैं। प्रवासी भारतीयों का समृद्ध वर्ग इस तरह की समाजसेवा और परोपकारी संगठनों को मजबूती प्रदान करने पर गंभीरता से विचार कर सकता है।
देवियो और सज्जनो, मैं इस अवसर पर, आपको यह भी स्मरण करवाना चाहूंगा कि आज भारत भरपूर अवसरों का देश है। क्रय शक्ति समानता के आधार पर यह विश्व की तीसरी विशालतम अर्थव्यवस्था है। चीन के बाद यह दूसरी तीव्रतम विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है।
विगत नौ वर्षों में से छह वर्षों के दौरान, हमारा देश 8 प्रतिशत से अधिक विकास दर बनाए रखने में सफल रहा है। विश्व अर्थव्यवस्था की मंदी और अन्य कारणों से, 2010-11 में जो विकास दर 8.4 थी वह 2011-12 में गिरकर 6.5 प्रतिशत और 2012-13 की प्रथम छमाही में 5.4 प्रतिशत रह गई। तथापि, भारत की अर्थव्यवस्था ने पहले भी बाहरी झटकों को सहन करने की क्षमता प्रदर्शित की है, इसलिए मुझे उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था की इस सहनशक्ति से, इस अल्पकालिक गिरावट को लौटाने तथा आर्थिक विकास को 8 से 9 प्रतिशत के स्तर तक वापस लाने में मदद मिलेगी। आप भी राष्ट्र की इस प्रगति में साझीदार बन सकते हैं।
हमारी अर्थव्यवस्था के तेजी से विकास के लिए, निवेश के स्तर में वृद्धि करनी होगी। जैसा कि आप सभी को ज्ञात है, 2003-04 के बाद भारत की तीव्र आर्थिक विकास के साथ-साथ निवेश दर में भी बढ़ोतरी हुई थी, जो 2007-08 में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद कम हो गई। इसलिए 8 प्रतिशत से अधिक के विकास स्तर दोबारा प्राप्त करने के लिए देश में अर्थव्यवस्था की उच्च निवेश दर को पुन: बढ़ाना होगा। आप सभी, भारतीय कंपनियों में निवेश करके और नए उद्यम स्थापित करके इस प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं। भारतीय इक्विटी बाजार विश्व में सबसे अधिक लाभ देने वालों में है तथा बहुत सी प्रसिद्ध कंपनियों ने यहां कारोबार स्थापित किया है या करना चाह रही हैं।
वित्त मंत्री के तौर पर, मैंने योग्य विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय पूंजी बाजार को खोला था। आरंभ में, हमने योग्य विदेशी निवेशकों को भारतीय म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए अनुमति प्रदान की और एक दूरगामी निर्णय के रूप में 1 जनवरी, 2012 को, हमने भारतीय इक्विटियों में प्रत्यक्ष निवेश हेतु उनके लिए द्वार खोल दिए। इसके तुरंत पश्चात, योग्य विदेशी निवेशकों के लिए कारपोरेट बांड बाजार खोल दिया गया। इसलिए, आप भी इस सम्बन्ध में, भारत द्वारा प्रस्तुत अवसर पर विचार करें और भारतीय पूंजी बाजारों में निवेश करके उच्च लाभ हासिल करें।
भारत ने, देश में धन भेजने के लिए प्रवासी भारतीयों की मदद हेतु एक अनुकूल व्यवस्था आरंभ की है। अप्रवासी भारतीय, अप्रवासी बाह्य रुपया खाता योजना, अप्रवासी साधारण रुपया खाता योजना तथा विदेशी मुद्रा अप्रवासी खाता बैंक योजना के अंतर्गत धन जमा करवा सकते हैं।
प्रवासी भारतीयों ने इन योजनाओं का स्वागत किया है और उन्होंने अक्तूबर, 2012 के अंत तक, तकरीबन 67 बिलियन अमरीकी डॉलर जमा करवाए थे। 2012-13 की प्रथम छमाही के दौरान विदेशी निवल निजी अंतरण 33 बिलियन अमरीकी डॉलर के करीब था। ये आंकड़े इस सच्चाई का प्रमाण हैं कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने विशेष रूप से, देश के सुदृढ़ आर्थिक आधार को देखते हुए, भारत में निवेश को भावनात्मक और वित्तीय रूप से संतोषजनक पाया है।
इस वर्ष के प्रवासी भारतीय दिवस के विषय ‘भारतवंशियों का सहयोग : भारतीय विकास गाथा’ के द्वारा भारत की विकास की कहानी को और अधिक गति देने के लिए, भारतवंशियों की और अधिक भागीदारी को बढ़ावा देने के तरीकों और माध्यमों की खोज की जानी चाहिए। मैं, सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हुए और इस देश के प्रभावी राजदूत के रूप में कार्य करते हुए, प्रवासी भारतीयों को, न केवल भारत के आर्थिक विकास में बल्कि भारत के ज्ञानवान समाज के निर्माण में भी एक सुदृढ़ साझीदार के तौर पर देखना चाहता हूं।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हमने ऐसी संस्थाओं का निर्माण किया है जिनसे भारत अपने प्रवासी भारतीयों से और व्यापक रूप से सम्पर्क कर सकता है। 2006 से केन्द्रीय प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय ने, भारतवंशियों के साथ आर्थिक संबंध बढ़ाने के लिए प्रवासी निवेश सुविधा केन्द्र तथा प्रवासी भारतीयों के परोपकारी भावनाओं को साकार रूप देने के लिए प्रवासी भारतीयों का भारत विकास न्यास जैसे संस्थान स्थापित किए हैं।
प्रवासी भारतीय युवाओं को देश की संस्कृति, विरासत और आर्थिक विकास का परिचय देने के लिए भारत को जानें और छात्रवृत्ति कार्यक्रम आरंभ किए गए हैं। भारत की यात्रा सुगम बनाने के लिए भारत की प्रवासी नागरिकता तथा भारतवंशी व्यक्ति कार्ड शुरू किए गए हैं। प्रवासी भारतीयों के साथ संबंधों को घनिष्ठ बनाने के ये कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय हैं।
एक सुदृढ़, न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज बनने तथा राष्ट्रों के बीच अपना उपयुक्त स्थान हासिल करने की भारत की यात्रा में आप में हर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मुझे विश्वास है कि आपने पिछले तीन दिनों के दौरान, जिन अनेक सेमिनारों और सत्रों में भाग लिया है वह आपके लिए कई प्रकार से लाभकारी साबित होगा। भारत द्वारा आपको प्रस्तुत अवसरों के बारे में और अधिक जानकारी देने के अलावा, इनसे आपको, देश का सामाजिक विकास और समावेशी प्रगति सुनिश्चित करने की दिशा में अनेक प्रयासों का परिचय भी मिला होगा।
आप, शिक्षाविद्, विद्वान, वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीविद्, पेशेवर और व्यावसायी के रूप में प्राप्त ज्ञान और अनुभव से भारत के विकास में एक निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। मुझे विश्वास है कि हम मिलकर नियति से करार को अवश्य पूरा करेंगे। मैं, आपके सभी प्रयासों के सफल होने की कामना करता हूं और इस उत्सव में शामिल होते हुए यह स्वीकार करता हूं कि हमें आपकी उपलब्धियों तथा अपने मूल राष्ट्र भारत के प्रति की गई अमूल्य सेवा पर गर्व है।
धन्यवाद
जय हिंद!