राष्ट्रपति भवन : 14.05.2016
भारतीय सिविल लेखा सेवा,भारतीय रक्षा लेखा सेवा, भारतीय डाक एवं तार, वित्त एवं लेखा सेवा और भारतीय रेलवे लेखा सेवा के परिवीक्षाधीनों के एक समूह ने आज (14 मई, 2016) को राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी से भेंट की।
परिवीक्षाधीनों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि लोकसेवकों के रूप में उनके युवा कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उन्हें 5,000 वर्ष पूर्व सभ्यता वाले एक आधुनिक देश को संवारना है। युवा और चुस्त विचारकों के लिए यह अपना योगदान देने का एक अनूठा अवसर है।
राष्ट्रपति ने कहा कि,यद्यपि भारत एक प्राचीन सभ्यता है, परंतु यह एक युवा देश है जो उपनिवेशवाद के शोषण, संसाधनों के पलायन, गरीबी और अभाव के 190 वर्षों के कष्ट के बाद अपना भविष्य बनाने का प्रयास कर रहा है। 128 करोड़ लोगों, 122 भाषाओं, 1800 बोलियों और 7 धर्मों वाले असाधारण विविधता से युक्त भारत जैसे देश के लिए एक आधुनिक और समान प्रशासन व्यवस्था स्थापित करना आसान नहीं है।
राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान का सिद्धांत ‘मनुष्यवती भूमि: अर्थ:’ की व्याख्या है कि सभी संसाधनों में से सबसे महत्वपूर्ण संसाधन मानव संसाधन है। अच्छे मानव संसाधन विकसित कर अन्य सभी प्राकृतिक संसाधनों को पूर्ण रूपेण उपयोग मे लाया जा सकता है। उच्च गुणवत्तापूर्ण मानव संपदा का सृजन हमारे समक्ष सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। उन्होंने एनआईएफएम को इस सिद्धांत को चुनने के लिए बधाई दी थी।
राष्ट्रपति ने कहा कि अर्थव्यवस्था नए आयाम ग्रहण कर रही है। निर्णय लेना किसी एक देश के भौगोलिक क्षेत्र के भीतर मौजूद नहीं है। उन्होंने परिवीक्षाधीनों से कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए,उन्हें अपनी सोच में लचीलापन लाना होगा और नई तकनीकियां , कारक और साधन अपनाने होंगे। उन्हें हमेशा अपने मन और बुद्धि का प्रयोग करना होगा। एक दूसरे की अनुकृति होने के स्थान पर प्रत्येक प्रतिनिधि को अपनी मौलिकता का प्रतिबिंब होना चाहिए। इस प्रक्रिया में वे सफल होंगे और हमारे देश और समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकेंगे।
राष्ट्रपति ने गांधी जी का उद्धरण देते हुए अपना संबोधन समाप्त किया और उन्हें विश्व में अपना मनचाहा परिवर्तन लाने के लिए कहा।
यह विज्ञप्ति 1745 बजे जारी की गई।