स्वीडन और बेलारूस की अपनी यात्रा के समापन पर मिंस्क से दिल्ली लौटते हुए राष्ट्रपति जी का मीडिया वक्तव्य
राष्ट्रपति भवन : 04.06.2015

स्वीडन और बेलारूस की यात्रा (31 मई से 4जून, 2015 तक) के समापन पर भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा मीडिया को दिए गए वक्तव्य का पूर्ण पाठ निम्नवत् है :

‘‘मैंने अभी 31 मई से 2 जून तक स्वीडन की तथा 2 से 4 जून, 2015तक बेलारूस की की सफल राजकीय यात्रा पूरी की है। मेरे साथ श्री हंसराज गंगाराम अहीर, रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री,श्री गुलाम नबी आज़ाद, राज्य सभा में विपक्ष के नेता तथा श्री अश्विनी कुमार, संसद सदस्य (लोक सभा) सहित वरिष्ठ अधिकारी इस यात्रा पर गए थे। फिक्की, सीआईआई तथा एसोचैम द्वारा प्रायोजित 120 सदस्यों के एक बड़ा व्यावसायिक शिष्टमंडल भी इस दौरान स्टाकहोम तथा मिंस्क पहुंचा तथा वहां अपने समकक्षों से परिचर्चा की और कई करार किए।

स्वीडन और बेलारूस की मेरी यात्राएं इन दोनों देशों की किसी भी भारतीय राष्ट्रपति की प्रथम यात्राएं थी। ये यात्राएं इस बात का प्रतीक हैं कि इन दोनों देशों के साथ हमारी साझीदारी को और बढ़ाने पर कितना बल दिया जा रहा है। दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किया है। मैंने इस अवसर पर दोनों देशों के नेतृत्व को भारत में आर्थिक परिस्थिति तथा सरकार की नीतिगत पहलों के बारे में अवगत कराया।

स्वीडन ऐसा महत्त्वपूर्ण साझीदार है जिसके साथ हमारे पिछले कई दशकों के दौरान बहुआयामी तथा पारस्परिक लाभदायक रिश्ते रहे हैं। स्वीडन के संसाधनों, प्रौद्योगिकीय दक्षताओं तथा नवान्वेषण के भारत के युवा तथा बढ़ते बाजार के साथ संयोजन से ऐसा तालमेल सामने आएगा जो हमारे द्विपक्षीय रिश्तों में विकास के एक नए चरण की शुरुआत करेगा। बेलारूस, व्यापक यूरेशियाई क्षेत्र में एक प्रमुख साझीदार है जिसकी बहुत सी विशेषताएं हैं। भारत और बेलारूस के संबंध हमारी जनता के एक-दूसरे के लिए सद्भावना पर आधारित हैं तथा संयुक्त राष्ट्र संघ सहित बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग की सकारात्मक विरासत हैं।

स्वीडन में नरेश कार्ल XVI गुस्ताफ तथा संपूर्ण शाही परिवार ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया तथा मेरी पूरी यात्रा पर मेरे साथ रहे। मैंने नरेश तथा प्रधानमंत्री स्टेफन लोफवेन के साथ द्विपक्षीय और क्षेत्रीय तथा बहुपक्षीय मुद्दों पर व्यापक विचार-विमर्श किया। मैं इस दौरान रिक्सडाग (स्वीडन की संसद) के अध्यक्ष, श्री उर्बान अहलिन तथा विभिन्न दलों से जुड़े हुए संसद सदस्यों और विपक्ष के नेता से भी मिला।

मेरी यात्रा में प्रमुखत: द्विपक्षीय आर्थिक रिश्तों को प्रगाढ़ करने तथा विशिष्ट प्राथमिकता के हमारे उन क्षेत्रों को प्रोत्साहन प्रदान किया गया जिसमें स्वीडन को कौशल हासिल है। स्वीडन विश्व के सर्वोच्च तीन नवान्वेषी देशों में से है तथा स्मार्ट शहरीकरण, परिवहन तथा अपशिष्ट प्रबंधन, हरित प्रौद्योगिकियों, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अनुसंधान में अग्रणी है। शहरी विकास, मध्यम तथा लघुस्तरीय उद्यम, ध्रुवीय अनुसंधान, असैनिक परमाणु अनुसंधान तथा औषधि जैसे क्षेत्रों में छह अंतरसरकारी करारों पर हस्ताक्षर हुए। दोनों देशों के शिक्षण संस्थानों,बुद्धिजीवियों तथा व्यापार संघों के बीच सत्रह समझौता ज्ञापनों पर भी हस्ताक्षर किए गए।

मैंने स्वीडन के नागरिकों को ई-टूरिस्ट वीजा प्रदान किए जाने संबंधी भारत सरकार के निर्णय की भी घोषणा की। इससे तथा राजनयिक वीजा छूट संबंधी करार पर हस्ताक्षर होने से दोनों देशों के बीच यात्रा में सुविधा होगी तथा जनता के बीच रिश्तों को बढ़ावा मिलेगा।

अपनी सभी बैठकों में, मैंने दोनों पक्षों में बहुत पारस्परिक रुचि तथा प्रगाढ़ सहयोग की गंभीर गहन इच्छा पाई। स्वीडन ने प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) के लिए हमारी सदस्यता के लिए अपना समर्थन जताया। उन्होंने विस्तारिक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की भारत की दावेदारी के लिए भी मजबूत समर्थन दोहराया। स्वीडन के प्रधानमंत्री ने मेरे इस सुझाव पर तत्काल सहमति जताई कि हम अगले तीन वर्षों में अपने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 5 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंचाने का प्रयास करें। स्वीडन ने भारत-यूरोपीय संघ तथा निवेश करार पर बातचीत पूरी करने के प्रति अपनी तत्परता का इजहार किया।

स्वीडन में मुझे स्वीडन की प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रमुखों से मिलने का अवसर मिला। वे सभी भारत में अपने लिए अवसरों के प्रति उत्साहित थे तथा उन्होंने अपने कार्य तथा निवेश को और बढ़ाने के अपने इरादों से अवगत कराया। मैंने प्रख्यात कारोलिंस्का संस्थान में स्वीडन के प्रमुख चिकित्सा वैज्ञानिकों की प्रस्तुति का अवलोकन किया तथा व्यावसायिक और भारतीय समुदाय को भी संबोधित किया। मैंने यूरोप के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक उपसाला विश्वविद्यालय में वैश्विक शांति के लिए टैगोर और गांधी जी की समसामयिक प्रासंगिकता पर एक जन व्याख्यान भी दिया।

मैंने संबंधों को निरंतर गति प्रदान करने के लिए भारत यात्रा हेतु स्वीडन के महामहिम नरेश तथा प्रधानमंत्री को निमंत्रित किया। हमारे लोकसभाध्यक्ष से स्वीडन के संसद-अध्यक्ष को भी एक औपचारिक निमंत्रण दिया गया।

मिंस्क में राष्ट्रपति एलेक्जेंडर वी. लूकाशेन्को ने मेरा स्वागत किया। हमने द्विपक्षीय मुद्दों तथा क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर व्यापक, सारगर्भित तथा प्रगतिशील चर्चा की। राष्ट्रपति लूकाशेन्को तथा मैंने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि अब समय आ गया है कि हम व्यवसाय और निवेश, रक्षा सहयोग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा शैक्षणिक एवं अकादमिक संबंधों के आधार पर भारत-बेलारूस संबंधों को ऊंचाई पर स्थापित करें।

मैंने राष्ट्रपति लूकाशेन्को को सुझाव दिया कि हम नियमित राजनीतिक और संस्थागत संवाद, वाणिज्यिक तथा आर्थिक संपर्क में तीव्र वृद्धि, संयुक्त अनुसंधान, डिजायन तथा विनिर्माण की दिशा में रक्षा सहयोग में आमूलचूल बदलाव तथा हमारे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, शैक्षणिक, सांस्कृतिक तथा जनता के बीच आपसी आदान-प्रदान सहित अपने सहयोग को बढ़ाने के लिए चार सूत्रीय ढांचे को अपनाएं। राष्ट्रपति लूकाशेन्को ने मेरे प्रस्ताव का सकारात्मक उत्तर देते हुए इस बात पर जोर दिया कि बेलारूस भारत को अपना पसंदीदा साझीदार तथा विश्वसनीय और वफादार मित्र मानता है। इस दौरान वस्त्र, मानकीकरण, पूंजी बाजार तथा प्रसारण में सहयोग संबंधी पांच करारों पर हस्ताक्षर किए गए। भारत-बेलारूस सहयोग के लिए एक व्यापक खाके पर भी सहमति बनी जिसके तहत भविष्य में नजदीकी सहयोग के क्षेत्रों को चिह्नित किया जाएगा।

मैंने बेलारूस को बाजार अर्थव्यवस्था स्तर प्रदान करने के भारत सरकार के निर्णय से अवगत कराया, जो बेलारूस की ओर से बहुत पुराना अनुरोध था। इस निर्णय से द्विपक्षीय व्यापार के नए अवसर खुलेंगे तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार ढांचे में बेलारूस के एकीकरण में भी सुविधा मिलेगी। भारत बेलारूस को,आपस में सम्मत परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 100 मिलियन अमरीकी डालर का नया ऋण भी प्रदान करेगा और इससे हमारे आर्थिक रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे।

भारत और बेलारूस के विश्वविद्यालयों और संस्थानों के बीच सात समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए। मुझे प्रख्यात बेलारूस राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के परिसर में महात्मा गांधी की आवक्ष प्रतिमा के अनावरण का गौरव मिला। इस विश्वविद्यालय ने मुझे मानद प्रोफेसर की उपाधि प्रदान की और इसे मैंने बेलारूस की जनता के भारत के प्रति उच्च सम्मान तथा प्रेम के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया।

मैं, प्रधानमंत्री एन्द्रे वी. कोब्याकोव से तथा बेलारूस की काउंसिल के अध्यक्ष एवं नेशनल एसेंबली के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेंटिवस के अध्यक्ष से मिला। मैंने राष्ट्रपति लूकाशेन्को को भारत आने का निमंत्रण दिया,जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। राष्ट्रपति लूकाशेन्को तथा मैंने दोनों देशों के व्यावसायिक प्रतिनिधियों को भी संबोधित किया।

दोनों पक्षा में बढ़ते व्यावसायिक अवसरों के प्रति बढ़ती जागरूकता, ‘भारत में निर्माण’ पहल के तहत भारत में विनिर्माण पर नया बल तथा बेलारूस में निवेश के लिए यूरोशियन आर्थिक-संघ द्वारा प्रस्तुत बड़े बाजार के प्रति अधिकाधिक जागरूकता है। कृषि मशीन, खनन उपकरण,भारी निर्माण, उपकरण तथा रक्षा को भारत में विनिर्माण प्रयासों का संभावित क्षेत्रों के रूप में पहचान की गई। कई वाणिज्यिक करार भी किए गए। हमने अगले पांच वर्षों के दौरान अपने व्यापार की मात्रा को बढ़ाकर एक बिलियन अमरीकी डालर तक ले जाने का प्रस्ताव किया, जो प्राप्त करने योग्य है।

मैं अपने-अपने देशों में मुझे तथा मेरे शिष्टमंडल को गर्मजोशीपूर्ण आतिथ्य प्रदान करने के लिए अपने मेजबानों का धन्यवाद करना चाहूंगा। इन यात्राओं से हमारे पारस्परिक रूप से लाभदायक संबंधों में प्रगाढ़ता लाने में सहायता मिली है। मैं इस विश्वास के साथ लौट रहा हूं कि दोनों देशों की सरकारें भारत के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्तों को बहुत ऊंचे स्तर पर ले जाने के लिए उत्सुक हैं। भारत, आने वाले समय में स्वीडन और बेलारूस के साथ अपनी साझीदारी को बढ़ाने की दिशा में सक्रिय होकर प्रयास करेगा।

यह विज्ञप्ति 1630 बजे जारी की गई।

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