राष्ट्रपति भवन : 11.05.2015
रूसी परिसंघ की अपनी यात्रा (7 से 11मई, 2015 तक) सम्पन्न होने पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा मीडिया वक्तव्य का पूर्ण पाठ नीचे दिया गया है। वक्तव्य राष्ट्रपति के मास्को से नई दिल्ली लौटते हुए विमान में दिया गया था :
‘‘मैंने अभी 7-11 मई, 2015 के दौरान रूस की सफल यात्रा पूरी की है। इस यात्रा में मेरे साथ श्री मनोज सिन्हा,रेल राज्य मंत्री तथा राष्ट्रपति की सचिव, विदेश सचिव, सचिव (उच्चतर शिक्षा), मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा सचिव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग सहित वरिष्ठ अधिकारी साथ गए थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति, दिल्ली, मुंबई और चेन्नै के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, इन्स्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स तथा राष्ट्रीय जैव-विज्ञान संस्थान के निदेशक भी इस यात्रा में मेरे साथ गए थे।
मेरी यह यात्रा रूस के महामहिम राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन के निमंत्रण पर थी जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में रूसी लोगों की विजय अथवा जैसा कि रूस में जाना जाता है महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध की स्मृति में विजय दिवस की 70वीं वर्षगांठ पर मुझे तथा अनेक दूसरे विश्व नेताओं को आमंत्रित किया था।
नाजीवादी और फासीवादी ताकतों को पराजित करने में रूस द्वारा निभाई गई भूमिका और विशेषकर रूसी लोगों का शौर्यपूर्ण योगदान अत्यंत विख्यात हैं। यद्यपि, अभी हमें अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करनी थी परंतु फिर भी भारत ने द्वितीय विश्वयुद्ध में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हमारे हजारों देशवासियों ने जीवन न्योछावर किया था तथा अन्य अनगिनत लोग घायल और अपंग हो गए। इसलिए भारत के लिए यह रूसी लोगों की बहादुरी और अदम्य भावना का स्मरण तथा 20वीं शताब्दी के सबसे निर्णायक संघर्ष में भारतीय सैनिकों के बलिदान को याद करने का भी अवसर है। पहली बार ग्रेनेडियर्स की भारतीय सैन्य टुकड़ी ने मास्को के रेड स्क्वायर में 9 मई को आयोजित शानदार सैन्य परेड में हिस्सा लिया।
युद्ध तथा इससे उत्पन्न भयानक मानवीय पीड़ा से सम्बन्धित स्मृति कार्यक्रमों में भाग लेकर, भारत ने शांति के प्रति अपनी गंभीर प्रतिबद्धता तथा युद्ध और संघर्ष से बचने के अपने संकल्प को दोहराया है। हम इस महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक अवसर पर, जिसका रूसी लोगों के लिए अत्यधिक महत्त्व है, रूस के साथ अपनी स्थायी एकजुटता की भी पुन: पुष्टि करते हैं।
मेरी यात्रा उस अहमियत को भी प्रतिबिम्बित करती है जो भारत रूस के साथ अपनी कार्यनीतिक साझीदारी को देता है। भारत-रूस संबंध समय पर खरे उतरे हैं। मैंने 9 मई को रूसी राष्ट्रपति के साथ एक ठोस द्विपक्षीय बैठक की। हमने द्विपक्षीय मुद्दों पर प्रगति तथा अपने सम्बंधों को और आगे बढ़ाने तथा घनिष्ठ बनाने के उपायों की समीक्षा की। हमने तेजी से विकसित हो रहे वैश्विक राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक परिदृश्य पर भी चर्चा की। राष्ट्रपति पुतिन ने भारत के साथ सम्बन्धों, जिसमें असाधारण आपसी विश्वास शामिल है,को और आगे बढ़ाने के प्रति अपनी मजबूत प्रतिबद्धता दोहराई। हम दिसंबर 2014 में दिल्ली के विगत वार्षिक शिखर सम्मेलन में सम्मत उपायों के कार्यान्वयन में हुई प्रगति से प्रसन्न हैं। रक्षा, परमाणु ऊर्जा तथा अंतरिक्ष सहयोग पर प्रगति जारी है। हमने हाइड्रोकार्बन,उर्वरक, हीरे और कृषि उत्पादों के क्षेत्रों में आर्थिक और वाणिज्यिक सहयोग में ठोस प्रगति की है। हम, भारत और यूरेशियन इकनोमिक यूनियन के बीच सीईसीए पर संयुक्त अध्ययन समूह के शीघ्र अंतिम रूप की दिशा में भी कार्य कर रहे हैं। दोनों देश अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे को आरंभ करने के प्रति भी वचनबद्ध हैं जिससे भारत और रूस ईरान तथा कैस्पियन सागर के जरिए जुड़ जाएंगे।
मुझे मास्को की प्रतिष्ठित डिप्लोमेटिक एकेडमी से मानद उपाधि प्राप्त करके प्रसन्नता हुई। एकेडमी ने आठ से ज्यादा दशकों तक रूसी राजनयिकों को प्रशिक्षण सहित शिक्षण के एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्वयं को स्थापित किया है। मुझे डॉक्टरेट प्रदान करने का उनका निर्णय भारत के प्रति रूसी लोगों की गहरी समानुभूति को दर्शाता है जिसका भारत के लोग पूरी तरह प्रत्युत्तर देते हैं। एकेडमी को मेरे संबोधन में मैंने कहा कि एक घनिष्ठ मैत्री और परस्पर विश्वास के भारत-रूस सम्बन्ध का अपना आकलन के व्यक्त किया जो क्षणिक राजनीतिक प्रवृत्तियों से प्रभावित नहीं होगा। रूस, भारत के इतिहास के कठिन क्षणों में शक्ति का स्तंभ रहा है। भारत सदैव इस सहयोग का प्रत्युत्तर देगा। रूस हमारा सबसे महत्त्वपूर्ण रक्षा साझीदार तथा परमाणु ऊर्जा तथा हाइड्रोकार्बन दोनों में हमारी ऊर्जा सुरक्षा का एक प्रमुख साझीदार बना रहेगा।
शिक्षा मेरी यात्रा एक प्रमुख क्षेत्र था। जैसा कि आपको विदित है, रूस ने उच्च शिक्षा, विशेषकर विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों में अपना दबदबा साबित किया है। भारत अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र को और विकसित करना चाहता है। मैंने प्रतिष्ठित मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी, एक ऐसा संस्थान जिसकी ख्याति 17 नोबेल और फील्ड मेडल विजेता तैयार करने की है,में भारत और रूस के वरिष्ठ शिक्षाविदों तथा विश्वविद्यालयों के प्रमुखों की एक बैठक को संबोधित किया। हमने दोनों देशों के विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच सहयोग को संस्थागत बनाने के लिए विश्वविद्यालयों के एक नेटवर्क की स्थापना की है। संस्थान स्तर के सात समझौता ज्ञापनों पर भी हस्ताक्षर किए गए। हमारे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग तथा रसियन साइंस फाउंडेशन के बीच किए गए समझौते से दोनों देशों के युवा अनुसंधानकर्ताओं को स्पर्द्धात्मक आधार पर निधि प्रदान करके नवान्वेषी अनुसंधान परियोजनाओं पर कार्य करने का और प्रोत्साहन मिलेगा।
मैंने 10 मई को रूस में भारत के द्विवार्षिक महोत्सव ‘नमस्ते रूस’ का उद्घाटन किया। पिछले वर्ष, हमने भारत में रूसी संस्कृति महोत्सव का आयोजन किया था। सांस्कृतिक आदान-प्रदान भारत-रूस संबंधों का एक उल्लेखनीय पहलू रहा है। हमारी दोनों की प्राचीन सभ्यताओं के सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व को जानने के लिए एक दूसरे के देश के वार्षिक महोत्सव, दोनों देशों की जनता के लिए एक अग्रणी मंच के रूप में उभरे हैं। मैंने रूस में भारतीय समुदाय के सदस्यों को भी संबोधित किया जो हमारे दोनों देशों के बीच एक जीवंत कड़ी हैं तथा मैंने भारत-रूस संबंधों को घनिष्ठ और विविध बनाने के अपने प्रयास जारी रखने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया। रूसी विद्यार्थियों द्वारा गाए रवींद्र संगीत गायन सहित 9मई को उनके जयंती के अवसर पर मास्को के मैत्री पार्क में रवींद्रनाथ टैगोर की प्रतिमा पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना मेरे लिए प्रसन्नता का विषय था।
मेरे लिए यात्रा एक प्रमुख उपलब्धि रूस के अग्रणी भारतविदों से बातचीत करने का अवसर था। उनके कार्य से रूस तथा व्यापक विश्व दोनों को भारत को समझने में मदद मिली है तथा सभ्यतागत स्तर पर हमारा द्विपक्षीय संवाद अत्यधिक समृद्ध हुआ है। मैंने बाधाओं के बावजूद प्राचीन और समकालीन भारत की आंतरिक जानकारी प्राप्त करने के उनके प्रयासों की सराहना की। मैंने रूस में भारतविद्या संबंधी अध्ययन को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद रूस में संस्कृत और भारतविद्या पर एक क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित करेगा। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की ओर से के द रशियन एकेडमी ऑफ सोशल साइंसिज के इंस्टिट्यूट ऑफ फिलोसोफी में भारतीय पीठ को सहयोग भी अगले दो वर्ष तक जारी रहेगा।
इस यात्रा से मुझे चेक गणराज्य, वियतनाम,मंगोलिया, फलीस्तीन, चीन,कजाखस्तान के राष्ट्रपतियों तथा संयुक्त राष्ट्र के महासचिव सहित अन्य विश्व नेताओं के साथ बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने सर्बिया के महामहिम राष्ट्रपति श्री टोमीस्लाव निकोलिक के साथ एक द्विपक्षीय बैठक की। हम सहमत थे कि नेहरू और टीटो के दिनों राजनीतिक सद्भावना की विरासत तथा हमारे लोगों के बीच परस्पर अत्यधिक सद्भाव के आधार पर हमारे द्विपक्षीय सम्बन्धों को उच्च स्तर पर ले जाने का समय आ गया है। हमारे विचार-विमर्श का आगे बढ़ाने के लिए मैंने राष्ट्रपति निकोलिक को भारत यात्रा का निमंत्रण दिया है।
यात्रा के दौरान मुझे और मेरे शिष्टमंडल को प्रदान किए गए हार्दिक आतिथ्य सत्कार के लिए मैं राष्ट्रपति पुतिन और रूस की सरकार का धन्यवाद करता हूं। मैं विजय दिवस समारोह की भव्यता और शान से प्रभावित हुआ और इस महत्त्वपूर्ण अवसर पर रूसी लोगों की एकजुटता और राष्ट्रीय एकता प्रदर्शन को देखकर प्रसन्न हुआ।
सार्वजनिक जीवन के मेरे लम्बे दशकों के दौरान, मैंने रुपये-रूबल समझौते तथा रक्षा और सिविल परमाणु सहयोग जैसे प्रमुख मुद्दों पर अनेक क्षमताओं में रूस के नेतृत्व से बातचीत की है। मैं 15 से ज्यादा वर्षों से राष्ट्रपति पुतिन को जानता हूं और पद संभालने के बाद से मुझे उनका दो बार दिल्ली में स्वागत करने का सौभाग्य मिला है। मैं इस यात्रा, जो भारत के राष्ट्रपति के तौर पर रूस की मेरी पहली यात्रा थी, के दौरान राष्ट्रपति पुतिन तथा अन्य नेताओं के साथ अपने संबंधों को और घनिष्ठ बनाने का अवसर प्राप्त करके प्रसन्न हूं और मैं व्यक्तिगत रूप से उन्हें तथा रूस की मित्र जनता को भारत की जनता की शुभकामनाएं देता हूं।
कुल मिलाकर, यह अत्यधिक सबसे स्मरणीय यात्रा थी जिसने रूस के साथ हमारे सुदृढ़ और परस्पर लाभकारी सम्बन्ध को घनिष्ठ बनाने में मदद की है। भारत आगामी दिनों में रूस के साथ अपनी विशेष और लाभकारी सामरिक साझीदारी को बढ़ाने के लिए अत्यधिक कटिबद्ध बना रहेगा।’’
यह विज्ञप्ति 1330 बजे जारी की गई।