राष्ट्रपति ने विवेकानंद के उपदेशों को भारत तथा संपूर्ण विश्व में प्रसारित करने का आग्रह किया

राष्ट्रपति भवन : 12.01.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आग्रह किया कि विवेकानंद के उपदेशों को, भारत की जनता पर उनके भारी प्रभाव को पूर्णत: स्वीकारते हुए, भारत तथा संपूर्ण विश्व में प्रसारित किया जाए। वह आज (12 जनवरी, 2013) राष्ट्रपति भवन में स्वामी विवेकानंद की 150वीं जन्म जयंती के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे।

राष्ट्रपति ने स्वामी विवेकानंद के बारे में प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार ए.एल. बासम को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘आने वाली कई सदियों तक उन्हें आधुनिक विश्व के प्रमुख निर्माताओं के रूप में जाना जाएगा।’’ उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि स्वामी विवेकानंद की गरीबों के प्रति गहन प्रतिबद्धता थी। स्वामी जी ने शिक्षित लोगों के सामाजिक उत्तरदायित्व के बारे में कहा था, ‘‘जब तक लाखों लोग भूख और अज्ञान में जी रहे हैं तब तक मैं हर उस व्यक्ति को देशद्रोही मानता हूं जिसने उनके पैसे से शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद उन पर थोड़ा भी ध्यान नहीं दिया।’’ राष्ट्रपति ने कहा कि स्वामी जी के उपदेश न केवल उनके जीवनकाल में प्रासंगिक थे बल्कि वे आज के भारत के लिए भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनके संदेश और उपदेश किस तरह कालातीत होकर सभी युगों के लिए प्रासंगिक बन गए उसका सर्वोत्तम उदाहरण हमारे प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिए गए वक्तव्य से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा था, ‘‘मुझे नहीं मालूम कि हमारी नई पीढ़ी में से कितने युवाओं ने स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों और लेखों को पढ़ा है। परंतु मैं आपको यह बता सकता हूं कि मेरी पीढ़ी के बहुत से लोग उनसे बहुत अधिक प्रभावित थे और मैं सोचता हूं कि यदि वर्तमान पीढ़ी भी स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों और उनके आलेखों को पढ़ेगी तो यह उनके लिए भी बहुत ही फायदेमंद होगा और वह उनसे बहुत कुछ सीखेंगे।’’ यदि आप स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान और आलेख पढ़ते हैं तो आपको जो बात हैरत में डालेगी, वह है कि वे पुराने नहीं पड़े हैं। उन्होंने हमें ऐसी चीज दी जिसने हममें, यदि मुझे यह शब्द प्रयोग करने की अनुमति हो, अपनी विरासत के प्रति गर्व का भाव पैदा किया। स्वामी जी ने जो कुछ लिखा और कहा वह रोचक है तथा हममें उसके प्रति रुचि होनी चाहिए और उससे हम दीर्घकाल तक के लिए प्रभावित हो सकते हैं। उन्होंने प्रत्यक्षत: अथवा अप्रत्यक्षत: वर्तमान भारत को बहुत प्रभावित किया है। और मैं समझता हूं कि हमारी युवा पीढ़ी ज्ञान के इस स्रोत, इस भावना तथा अग्नि से लाभ उठाएगी जो कि स्वामी विवेकानंद से निस्रत हो रही है।

यह विज्ञप्ति 1815 बजे जारी की गई

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