राष्ट्रपति भवन : 19.11.2016
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (19 नवम्बर, 2016) नई दिल्ली में इंदिरा गांधी शताब्दी व्याख्यान दिया। अपने व्याख्यान में, राष्ट्रपति ने कहा कि उनकी स्मृति के प्रति हमारी सर्वोत्तम श्रद्धांजलि स्वयं को भारत के कल्याण और इसकी गौरवपूर्ण जनता की सेवा में पूर्णत: और समग्रत: समर्पित करना हो सकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि परिवार का नाम या नेहरू की विरासत नहीं बल्कि लोगों की समस्याओं पर जोर देने की दृढ़ता और उन्हें अपने लिए एकजुट करने की उनकी योग्यता उन्हें सत्ता में लाई थी। भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आपातकाल के बाद निर्मम जनता द्वारा मतदान द्वारा बाहर कर दिया गया। परंतु भारत की जनता 1980 में, तीन वर्ष की छोटी सी अवधि में उन्हें फिर सत्ता में लेकर आई।
राष्ट्रपति ने कहा कि गरीबों और पिछड़ों के प्रति इंदिराजी की निष्ठा को देखने के बाद भारत की जनता उनके प्रति प्रशंसा और प्रेम से भर गई। मुश्किलों का सहजता से सामना करने की उनकी क्षमता और अडिगता के कारण उन्होंने उन्हें पूरे दिल से अपनाया। परिश्रम, जनता से जुड़े मुद्दों को लगातार उठाने तथा समग्र रूप से जनता के विकास और प्रगति की संकल्पना की प्रभावी अभिव्यक्ति द्वारा उनकी सत्ता में वापसी हुई।
राष्ट्रपति ने कहा कि इंदिराजी की सबसे बड़ी खूबी आम जनता, विशेषकर जमीनी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से जुड़ाव था। लोग उनमें अदम्य संघर्ष और लौह इच्छा की उम्मीद देखा करते थे। अपनी संघर्ष भावना का प्रदर्शन करते हुए, इंदिराजी ने चुनौती और टकराव का रवैया अपनाया। उन्होंने तर्क दिया कि कांग्रेस चुनाव जीती या हारी, यह बेमानी है। जनता को निरंतर और अबाध सेवा देना आवश्यक है।
राष्ट्रपति ने कहा कि कार्य में साहस, निर्भयता और निर्णय लेने में हिम्मत उनके चरित्र की विशिष्ट पहचान थी। अपने पूरे जीवन में वह जैसा पंडित जी चाहते थे एक रोशन व्यक्तित्व: वीर, निडर, शांत और दृढ़ बनी रहीं। इंदिराजी सांप्रदायिक हिंसा फैलाने वालों की कायरता से घृणा करती थीं और वह लगातार उनके खिलाफ लड़ती रहीं। अपने जीवन में वह पंथ, जाति, समुदाय और संप्रदायों के सभी भेदभावों से ऊपर उठ गईं। इसी वजह से हमारे देश के सभी वर्गों और सभी भागों के लोग उनसे प्यार करते थे। मुझे याद है कि कैसे ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू करने का निर्णय लिया गया था, उन्हें सतर्क किया गया था कि इससे उग्रवादी तत्व उनसे घृणा करेंगे और सिख समुदाय का बड़ा हिस्सा नाराज हो जाएगा। मुझे उनके गंभीर परंतु संकल्पपूर्ण शब्द पूरी तरह याद है, ‘मुझे नतीजों के बारे में पता है’। इंदिराजी को पूरी तरह ज्ञात था कि उनके और सरकार के पास कोई और विकल्प नहीं है। उन्हें पूरी तरह पता था कि उनका जीवन खतरे में है। परंतु उन्होंने राष्ट्र के सर्वोत्तम हितों, विशेषकर देश की एकता और अखण्डता कायम करने की आवश्यकता, को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ने का फैसला किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि इंदिराजी पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संघर्ष के प्रति अपने समर्थन में अडिग और दृढ़संकल्प थीं। उन्होंने इस सच्चाई को देखते हुए बहुत बड़ा जोखिम लिया कि पाकिस्तान को अमरीका और चीन समर्थन दे रहे हैं। टकराव की कार्रवाई के रूप में, अमरीका ने बंगाल की खाड़ी में अपना सातवां बेड़ा भेजा। इंदिराजी न तो अमरीका के दबाव में आईं और न ही चीन की रुख के आगे झुकीं। उन्होंने दिखाया कि वह एक इस्पाती शक्ति वाली नेता हैं जो किसी भी चुनौती में भारत का नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। इंदिराजी ने पाकिस्तान को मुक्त करने के लिए सतर्क योजना, पर्याप्त तैयारी और एकाग्रता के साथ साहसिक और शीघ्र निर्णय को जोड़ दिया। इस प्रकार उन्होंने विश्व और भारत के इतिहास में एक अनूठा अध्याय लिखा।
राष्ट्रपति ने कहा कि इंदिराजी आत्मविश्वासी और दूरदर्शी नेता की जिनके पास, जनता और चुनावी राजनीति के मिश्रण के बारे में एक गहरी समझ थी जिससे वह एक विशिष्ट राजनीतिज्ञ बनी। राजनीतिक निर्वासन की छोटी सी अवधि ने उनकी सच्ची ताकत को उजागर किया। एक आरामदायक जीवन की आदी व्यक्ति के रूप में, उन्हें आजमगढ़ उपचुनाव अभियान और जब आंध्र प्रदेश में चुनावी प्रचार के दौरान सर्किट हाऊस में उनका आरक्षण रद्द कर दिया गया, खुले आकाश के नीचे सोने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। उनके प्रेरणादायक नेतृत्व में, कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भविष्य के बारे में दोबारा साहस, भरोसा और विश्वास हासिल करने में लगभग एक वर्ष लगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि इंदिराजी के जीवन और विरासत से हमें जो शिक्षा लेनी चाहिए वह है, प्रत्येक पराजय को सफलता की सीढ़ी बनाया जा सकता है। असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। जीत या हार नहीं बल्कि हमारे राष्ट्र की सेवा के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं। हमें अपनी जनता के कल्याण के लिए निरंतर प्रयत्न करने होंगे। शायद ही ऐसा स्वत: कोई ही निकले इंदिरा जी की तरह भारत को उतने उत्साह से प्रेम किया हो और इसकी शान के लिए कार्य किया हो।
यह विज्ञप्ति 1825 बजे जारी की गई