राष्ट्रपति भवन : 15.07.2014
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (15 जुलाई, 2014) राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में श्री चंडी प्रसाद भट्ट को वर्ष 2013 के लिए गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति जी ने कहा कि गांधी शांति पुरस्कार हमारे इस विश्वास की अभिव्यक्ति है कि गांधी जी जिन आदर्शों का पालन करते थे, वह हमारी सामूहिक जीवंत विरासत का हिस्सा है। इस विरासत में ‘एक राष्ट्र’ होने का विचार व्याप्त है। यह हमारी विविधता का, हमारी बहु-संस्कृति का, हमारी विभिन्न भाषाओं, धर्मों तथा विभिन्न जीवन शैलियों का समारोह है। इसी विचार ने उन्हें प्रेरित किया था जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रयास किया। लोकतंत्र के प्रति हमारी गहन तथा अविचल प्रतिबद्धता इसी विचार से उपजी है। हमने इन आदर्शों से मार्गदर्शन लेना जारी रखा है; हम उनके प्रति प्रतिबद्ध हैं, इसलिए नहीं कि यह हमारा अतीत है वरन् इसलिए क्योंकि यह हमारा भविष्य भी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें सदैव यह ध्यान में रखना होगा कि हम महात्मा गांधी की विरासत के न्यासी हैं। न्यासी के रूप में उस विरासत की संरक्षा, सुरक्षा करना तथा उसका प्रसार करना हमारा पावन कर्तव्य है जो संपूर्ण मानवता की धरोहर है। श्री भट्ट का सम्मान करते हुए हम उन सभी अनगिनत महिलाओं और पुरुषों को सम्मानित कर रहे हैं जो प्रकृति के न्यासी बने तथा जिन्होंने अपने आलिंगन द्वारा हमारे स्वराज का विस्तार किया। उन्होंने श्री भट्ट की पर्यावरण के संरक्षण के लिए उनके समर्पित, अथक तथा बहुमूल्य कार्य के लिए प्रशंसा की।
राष्ट्रपति ने कहा कि श्री भट्ट हमारे समय के ऐसे आजीवन गांधीवादी, समर्पित तथा आधुनिक दूरद्रष्टा पर्यावरणविद हैं जिनका जीवन ही उनका संदेश है। उनका कार्य ऐसे अनोखे प्रेम का साकार स्वरूप है जो प्रेम बहुत पहले ही सार्वभौमिक बन चुका है। इस प्रेम में प्रकृति तथा प्रकृति के तहत संपूर्ण सृष्टि से प्रेम का समावेश है। 1973 में उनके द्वारा शुरू किए गए चिपको आंदोलन में भी ईंधन तथा चारा इकट्ठा करने के पहाड़ी लोगों के विधिसम्मत अधिकारों की प्राप्ति तथा बड़े पैमाने पर वनों के कटान के कारण उन्हें प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए इसी प्रकार का शांतिपूर्ण तथा अहिंसक सत्याग्रह शुरू किया गया था। इसमें उस सृष्टि की रक्षा की खास जिम्मेदारी पर जोर दिया गया है जो मानव को प्रदान की गई है। चिपको आंदोलन न केवल गूढ़ प्रेम का आंदोलन था वरन् अभी भी बना हुआ है। वह प्रेम जो पेड़ों से आलिंगन में निहित है। इसका अर्थ है प्रकृति को इसकी सभी विविधताओं, उपहारों तथा अनुग्रहों सहित अपनाना। यह तुच्छ लालच के विरुद्ध प्रेम का आंदोलन है।
राष्ट्रपति ने कहा कि गांधी जी के शब्दों में उनके समक्ष नैतिकताविहीन अर्थतंत्र का कोई महत्त्व नहीं था। इस साधारण सी ढाल ने ऐसा नैतिक ढांचा खड़ा किया है जिसके तहत मानवीय दक्षता को संचालित होना है। अर्थतंत्र के केंद्र में नैतिकता रखकर गांधी जी ने हमें ऐसा विचार प्रदान किया है जिसका महत्त्व हमें अब समझ में आने लगा है। श्री भट्ट का आंदोलन, न्यासी होने के इस विचार का एक सर्वोत्तम उदाहरण है। उनके कार्यों के माध्यम से, श्री भट्ट ने इस देश को तथा कुल मिलाकर संपूर्ण विश्व को यह याद दिलाया है कि हम भविष्य के लिए भी उत्तरदायी हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि अहिंसा केवल एक पद्धति अथवा उपकरण नहीं है। इसमें राज्य तथा उन लोगों की मानवता सहित, जिन्हें हम चुनौती दे रहे हैं, दूसरों की मानवता को स्वीकार करने की अपेक्षा होती है। यह एक ऐसी सक्रिय ताकत है जो मैं और तुम का अंतर खत्म करते हुए दूसरों को गले लगाती है। श्री भट्ट के आंदोलन में संकटग्रस्त तथा अचेतन लक्ष्यों से शारीरिक आलिंगन से अहिंसा को अपनाने का रास्ता दिखाया गया है। श्री भट्ट ने न केवल अपनी जिम्मेदारी के प्रति हमारी समझ को गहन किया है बल्कि पूरे विश्व को अहिंसा की शक्ति पर एक प्रेरणादायक पाठ प्रदान किया है। vराष्ट्रपति ने कहा कि 2019 में गांधी जी की 150वीं जन्म जयंती मनाई जाएगी तथा इसे हम शौचालय रहित घरों की अपमानजनक स्थिति खत्म करके तथा सरकार द्वारा पूरे देश में स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन तथा सफाई सुनिश्चित करने के लिए घोषित स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाकर ही सही मायने में मना सकते हैं।
यह विज्ञप्ति 1430 बजे जारी की गई।