राष्ट्रपति ने कहा कि 21वीं सदी की बदलती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारतीय दंड संहिता में सम्यक संशोधन की आवश्यकता है
राष्ट्रपति भवन : 26.02.2016

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने कोची, केरल में आज (26 फरवरी, 2016) अभियोग निदेशालय द्वारा आयोजित भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की 155वीं वर्षगांठ के समापन समारोह का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपराधिक कानून के प्रीमियर कोड के रूप में आईपीसी विधान का एक मॉडल पीस है। तथापि, 21वीं सदी की बदलती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इसमें सम्यक संशोधन की आवश्यकता है। पिछले 155 वर्षों में आईपीसी में बहुत कम बदलाव हुए हैं। अपराध की आरंभिक सूची में बहुत कम अपराध जोड़े गए हैं और दण्डनीय घोषित किए गए हैं। आज भी संहिता में ऐसे अपराध हैं जो ब्रिटिश द्वारा अपने उपनिवेशवाद संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाए गए थे। अभी भी, बहुत से नए अपराध हैं जिन्हें उपयुक्त रूप से परिभाषित किया जाना है और संहिता में सम्मिलित किया जाना है।

राष्ट्रपति ने कहा कि नागरिकों को और संपत्ति की संरक्षा किसी भी राज्य का एक अनिवार्य कार्य है। इसे आपराधिक कानून के साधन द्वारा पूरा किया जा सकता है। आपराधिक कानून का अधिदेश अपराधियों को दण्ड देने और अपराध की पुनरावृत्ति से बचना है। आपराधिक कानून सामाजिक ढांचे और सामाजिक दर्शन के बदलाव के प्रति आवश्यक रूप से संवेदनशील होना चाहिए। इसमें समकालीन सामाजिक चेतना का प्रतिबिंब और सभ्यता का सच्चा दर्पण हो जो उन मौलिक मूल्यों को रेखांकित करे जिन पर यह टिका हुआ है।

राष्ट्रपति ने कहा कि ‘कानून का नियम’ वह प्रमुख सिद्धांत है जिस पर आधुनिक राष्ट्र टिका हुआ है। इसे हर समय कायम रखना चाहिए। यह नियम लागू करने वाली एजेंसियों, विशेषकर पुलिस बल का कर्त्तव्य है कि वे कानून और व्यवस्था के सर्वप्रथम कर्त्तव्य की पूर्ति गंभीरता और समर्पण से करें। पुलिस की छवि कानून लागू करने, तत्परता, निष्पक्षता और न्यायोचित प्रवर्तन सुनिश्चित करने की उनकी कार्रवाई पर निर्भर करती है। हमारे देश में कानून प्रवर्तन एकक होने के नाते पुलिस को अपनी भूमिका से बढ़कर भी कार्य करना चाहिए। इसकी प्रगति और विकास में भी सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए। हमारे संविधान के संस्थापकों ने समेकन, सहिष्णुता, आत्म-नियंत्रण, ईमानदारी, अनुशासन, सम्मान और महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों और कमजोर वर्गों के संरक्षण, को हमारे लोकतंत्र के अनिवार्य अवयवों की कल्पना की थी। हमारी पुलिस को इन अवयवों को अपनी कार्य प्रणाली में शामिल करना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि लोक अभियोक्ता भी कानून का नियम बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। वे आपराधिक न्याय प्रणाली में शिक्षा देने और लोक आत्मविश्वास को मजबूत करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। अभियोक्ता यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि पीड़ितों के हितों को ध्यान में रखते हुए आरोपी की निष्पक्ष सुनवाई हो। इसलिए लोक अभियोक्ताओं को साधन और ज्ञान से युक्त करना अनिवार्य है ताकि वे अपराध के विभिन्न रूपों का प्रभावी रूप से जवाब दे सकें। उन्होंने लोक अभियोक्ताओं से अपराध नियंत्रण नीतियां बनाने में अधिक रणनीतिक और अतिसक्रिय भूमिका निभाने की गुहार की। उन्होंने कहा कि उनके प्रयास देश में एक निष्पक्ष, पारदर्शी और कुशल आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रधानता सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित हो।

 

यह विज्ञप्ति 2110बजे जारी की गई।

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