राष्ट्रपति ने कहा, हमें अपने महत्वपूर्ण सभ्यतागत मूल्यों के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए
राष्ट्रपति भवन : 07.10.2015

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमें अपने मूल सभ्यतागत मूल्यों के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए। वह आज (07 अक्तूबर 2015) राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में एक कॉफी टेबल बु ‘द नेशनलिस्ट प्रेजीडेंट-प्रणब मुखर्जी’ की प्रथम प्रति ग्रहण करते हुए बोल रहे थे। राष्ट्रपति ने, श्री मोहम्मद हामिद अंसारी, भारत के उपराष्ट्रपति,जिन्होंने इसका औपचारिक लोकार्पण किया था, से पुस्तक की प्रति ग्रहण की।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें इस अवसर पर सम्मान का अनुभव हुआ। उन्होंने देश को जो दिया, उससे कहीं अधिक पाया है। राष्ट्रपति ने कहा कि वह एक लंबे समय तक देश के राजनीतिक घटना के साक्षी रहे हैं। उन्होंने कहा देश ने जबरदस्त विकास किया है। देश की काफी प्रगति हुई है, परंतु हमें अभी बहुत कुछ करना है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपनी सभ्यता के महत्वपूर्ण मूल्यों को नष्ट नहीं होने देना है। वर्षों से हमारी सभ्यता ने अनेकता, बहुलता को संजोए रखा है और सहिष्णुता को समर्थन दिया है। इन मूल्यों ने सदियों से हमें बांधे रखा है। अनेक पुरातन सभ्यताएं नष्ट हो गयीं परंतु भारतीय सभ्यता अपने अहम् सभ्यतागत मूल्यों और उनके अनुकरण के कारण कायम रही। राष्ट्रपति ने कहा कि यदि हम इस पर विचार करें तो हमारे देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। भारत का लोकतंत्र आश्चर्यजनक है और हमें इसकी ताकत की सराहना करनी चाहिए। इसे निरंतरता और बढ़ावा देना चाहिए।

पुस्तक का लोकार्पण करने से पहले, भारत के उपराष्ट्रपति श्री मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि यह पुस्तक राष्ट्रपति के प्रबुद्ध दृष्टिकोण का संकलन है।

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री, श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पिछले पांच दशकों के दौरान राजनीतिक परिदृश्य पर श्री मुखर्जी का वर्चस्व बना रहा। वह एक प्रख्यात राजनेता और सर्वसम्मति निर्माता के रूप में जाने जाते रहे हैं।

पुस्तक का संपादन श्री प्रभु चावला ने किया है और इसे न्यू इंडियन एक्सप्रेस के वरिष्ठ संपादकीय दल ने राष्ट्रपति को एक मानव, विख्यात राजनेता और देश के सर्वोच्च कार्यालय पर आसीन व्यक्ति के रूप में उनके व्यक्तित्व के सम्मान के तौर परतैयार किया है।

यह विज्ञप्ति 18:30 बजे जारी की गई।

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