राष्ट्रपति भवन : 26.05.2016
भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी ने आज भारत और चीन के कुलपतियों और उच्च शिक्षा संस्थानों के अध्यक्षों की एक गोलमेज के लिए पेकिंग विश्वविद्यालय में उपस्थित हुए। उन्होंने विचार-विमर्श पर दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों से रिपोर्टें प्राप्त कीं तथा भारत और चीन के उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच सहयोग के 10 समझौता ज्ञापनो के आदान-प्रदान का अवलोकन किया।
उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि भारत और चीन 21वीं शताब्दी में एक महत्वपूर्ण और रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए तत्पर हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि छठी शताब्दी पूर्व नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदांतपुरी जैसी कुछ शिक्षापीठों ने विद्वानों को आकर्षित किया तथा इस क्षेत्र और उससे दूर के अन्य देशों के विख्यात संस्थानों के साथ संपर्क स्थापित किए तथा शैक्षिक आदान-प्रदान किया। तक्षशिला भारतीय विश्वविद्यालयों में सबसे अधिक जुड़ा हुआ था यह चार सभ्यताओं- भारतीय फारसी, यूनानी और चीनी सभ्यताओं का संगम स्थल था। बहुत से प्रख्यात लोग-पाणिनि, सिकंदर, चंद्रगुप्त मौर्य, चाणक्य, चरक, चीनी बौद्ध भिक्षु फाहियान,हुएनशांग तक्षशिला आए। आज भारत सरकार भारतीय और अंतरराष्ट्रीय साझीदारों के साथ मिलकर इस परंपरा को पुनर्जीवित तथा ऐसे उत्कृष्टता केंद्रों का निर्माण करने के लिए अनेक दूरगामी पहल कर रही है कर रही है जिन्हें विश्व के अग्रणी संस्थानों में स्थान दिया जा सकता है।
राष्ट्रपति ने कहा अनुसंधान और नवान्वेषण एक देश की उत्पादन क्षमता का विस्तार करने के आधार हैं। राष्ट्रों का भावी विकास मौजूदा प्रौद्योगिकियों के साथ संसाधनों के प्रयोग से नहीं बल्कि और उन्नत प्रौद्योगिकी के माध्यम से इनके बेहतर प्रयोग द्वारा किया जा सकता है। नवान्वेषण और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए एक अनुकूल शैक्षिक वातावरण आवश्यक है। शैक्षिक संस्थानों से उत्तीर्ण विद्यार्थियों की गुणवत्ता सदैव अध्यापन, अनुसंधान की गुणवत्ता तथा अनुसंधान और नवान्वेषण की उन्मुखता द्वारा प्रेरित होती है। अनुसंधान, नवान्वेषण और उद्यमिता के तीन तत्वों के माध्यम से शैक्षिक संस्थानों उद्योग के साथ का संयोजन करने से विनिर्माण क्षेत्र में सतत गति आती है, लोगों का समावेशी और संतुलित आर्थिक विकास तथा चहुंमुखी विकास होता है।
यह विज्ञप्ति 1100 बजे जारी की गई।