राष्ट्रपति ने कहा, बहुलवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता की पहचान है; भारत की शक्ति इसकी अनेकता में विद्यमान है
राष्ट्रपति भवन : 09.04.2016

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि बहुलवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता की पहचान रही है। भारत की शक्ति इसकी अनेकता में विद्यमान है। वह आज (09 अप्रैल, 2016) नई दिल्ली में स्वर्गीय श्री अर्जुन सिंह, भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री के सम्मान में अर्जुन सिंह सद्भावना फाउंडेशन तथा मध्य प्रदेश फाउंडेशन द्वारा नई दिल्ली में आयोजित एक स्मृति व्याख्यान दे रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि एक बहुलवादी लोकतंत्र में नागरिकों, विशेषकर युवाओं में सहिष्णुता, असहमतिपूर्ण विचारों के प्रति सम्मान तथा धैर्य के मूल्य पैदा करने आवश्यक हैं। बहुलवाद और सहिष्णुता एक प्रमुख दर्शन है इसे निरंतर जारी रखना होगा। भारत 1.3 बिलियन लोगों 122 भाषाओं, 1600 बोलियों और 7 पंथों वाला एक बहुआयामी राष्ट्र है। इसे कुछ लोगों की सनक और मनमानी के कारण कल्पना में नहीं बदला जा सकता। हमारे समाज की बहुलता सदियों के दौरान विचारों के आत्मसात्करण के माध्यम से पैदा हुई है। संस्कृति, आस्था और भाषा की अनेकता ने भारत को विशिष्ट बना दिया है। हम सहिष्णुता से शक्ति ग्रहण करते हैं। यह शताब्दियों से हमारी सामूहिक चेतना का भाग रही है। यह कारगर है और हमारे लिए एकमात्र हितकारी रास्ता है। सार्वजनिक विचारों में विविधताएं होती हैं। हम बहस कर सकते हैं। हम सहमत नहीं हो सकते हैं। परंतु हम विचारों की विविधता के अत्यावश्यक अस्तित्व को नहीं नकार सकते हैं। अन्यथा हमारे विचार प्रक्रिया का प्रमुख स्वरूप छिन्न-भिन्न हो जाएगा।

राष्ट्रपति ने गांधी जी का उद्धरण दिया, ‘धर्म एकता की शक्ति है; हम इसे संघर्ष का विषय नहीं बना सकते।’भारत में आस्थाओं की समरसता उस विश्व के सम्मुख एक महत्वपूर्ण नैतिक उदाहरण के रूप में उपस्थित है जहां अनेक क्षेत्रों को सांप्रदायिक संघर्षों ने नष्ट कर दिया है। हमें विभिन्न समुदायों के बीच निरंतर सद्भावना को बनाए रखने के लिए काम करना होगा। यदा-कदा सांप्रदायिक सौहार्द की निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा परीक्षा ली जाएगी। इसलिए हमें कहीं भी अपना घृणात्मक रूप दिखाने वाले सांप्रदायिक संघर्ष के प्रति सचेत रहना होगा। विधि शासन किसी भी चुनौतिपूर्ण स्थिति से निपटने का एकमात्र आधार होना चाहिए। यह हमारा लोकतांत्रिक आधार है जो हमेशा विद्यमान रहना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र केवल संख्या नहीं है बल्कि सर्वसम्मति निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। हाल के समय में यह देखा गया है कि जनसाधारण राष्ट्र के मामलों से जुड़ा हुआ है। हमें अराजकता को कोई स्थान नहीं देना है, कुशल लोकतंत्र में ठोस नीतियों के निर्माण के लिए जनमत को ग्रहण करने के साधन और माध्यम होने चाहिए।

अर्जुन सिंह को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि श्री अर्जुन सिंह जी ऐसा नेता थे जिनका दिल और दिमाग जमीन से जुड़ा हुआ था। उन्होंने सत्ता के समक्ष अपनी सरलता कभी नहीं छोड़ी ना ही उन्होंने जनसाधारण के प्रति चिंता का त्याग किया। उन्होंने स्वयं को धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र के उन मूल्यों पर आधारित एक सशक्त राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित कर दिया जिनसे वह अत्यंत प्रेम करते थे।

शिक्षा के क्षेत्र में श्री अर्जुन सिंह के योगदान के विषय में बताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि अर्जुन सिंह जी का आठ वर्ष का मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में कार्यकाल मौलाना अबुल कलाम आजाद के बाद सबसे लंबा था। यह स्वाभाविक है कि भारत के शिक्षा परिदृश्य पर अर्जुन सिंह जी की नीतियों की गहरी छाप है।


यह विज्ञप्ति 1950बजे जारी की गई।

समाचार प्राप्त करें

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
समाचार प्राप्त करें
The subscriber's email address.