राष्ट्रपति भवन : 09.01.2017
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (9 जनवरी, 2017) बेंगलुरु में प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के 14वें आयोजन के समापन समारोह को संबोधित किया और प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार प्रदान किए।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि विश्व भर में फैला भारतीय समुदाय भारतीय गाथा को मुखर बनाने के प्रमुख दूत बने रहेंगे। उन्होंने कहा कि लोग पश्चिमी प्रौद्योगिकी से परिचित हैं परंतु फिर भी वे भारत की प्राचीन और शाश्वत परम्परा के अपने सभ्यतागत मूल्यों से जुड़े हुए हैं, इसलिए उन्हें दोहरा लाभ मिला हुआ है। वे जिस पाश्चात्यता और पौर्वात्यता सहयोग का प्रतिनिधित्व करते हैं, उससे उन्हें एक अनूठा स्थान और अवसर होता है जिसमें उनकी मातृभूमि और अपनाए गए देशों के बीच ज्ञान का आदान-प्रदान शामिल है। वे भारत की झलक अपने मेजबान देश को देते हैं और वे अपने अपनाए गए देश की सांस्कृतिक विरासत को भी भारत लेकर आते हैं। मेरे विचार से ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के हमारे विश्वास को इससे अधिक प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम राष्ट्रों के समूह के बीच अपना उचित और सुयोग्य स्थान प्राप्त करने का सफल प्रयास कर रहे हैं इसलिए हमें उत्कृष्टता और परिष्करण के क्षेत्र में अपनी प्राचीन विशेषताओं पर ध्यान देते रहना चाहिए। रोजगार की तलाश में विदेश जाने वाले अस्थाई प्रवासियों के कौशल उन्नयन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत सरकार के कौशल कार्यक्रमों तथा प्रवासी कार्यबल के बीच विद्यमान कौशल अन्तर के बीच संयोजन स्थापना से उनकी नियोजनीयता और आय बढ़ाने का बहुत फायदा होगा।
राष्ट्रपति ने अप्रवासी भारतीयों से विवाह कर रही महिलाओं और युवतियों की चिंताओं का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि सरकार और इसकी एजेंसियां इस मुद्दे से निपट रहे हैं। लेकिन इस विशेष वर्ग की चिंताओं पर स्थानीय सामुदायिक संगठनों द्वारा सबसे प्रभावी समाधान किया जा सकता है। उन्होंने इस बारे में विदेशी भारतीय सामुदायिक संगठनों से सरकारी प्रयासों की सराहना करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने इस अवसर पर विदेश नीति पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के चुने हुए भाषणों के एक संकलन का भी लोकार्पण किया।
यह विज्ञप्ति 1840 बजे जारी की गई