राष्ट्रपति भवन : 29.04.2015
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने कल (28 अप्रैल, 2015) राष्ट्रपति भवन में महामहिम मोहम्मद अशरफ गनी, अफगानिस्तान इस्लामी गणराजय के राष्ट्रपति का स्वागत किया। उनके सम्मान में उन्होंने एक राजभोज का भी आयोजन किया।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में उनकी प्रथम यात्रा पर राष्ट्रपति गनी का स्वागत करते हुए राष्ट्रपति मुखर्जी ने दिन में बदख्शां प्रांत में भूस्खलन में 52व्यक्तियों की दुखद मृत्यु पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भारत को अफगानिस्तान के साथ अपने प्रगाढ़ संबंधों पर गर्व है। वह अफगानिस्तान का प्रथम कार्यनीतिक साझीदार है। भारत एक मजबूत समृद्ध तथा स्वतंत्र अफगानिस्तान की रचना के अफगानी राष्ट्रपति के लक्ष्य के साथ है। वह उनके कार्य तथा राष्ट्रीय एकता सरकार के गठन की सराहना करता है जिससे अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक उद्विकास की प्रक्रिया में एक नया आयाम जुड़ा है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत,अफगान संविधान के ढांचे के तहत अफगान नेतृत्व तथा अफगान स्वामित्व में राष्ट्रीय सुलह प्रक्रिया की हिमायत करता है। भारत-अफगानिस्तान सहयोग की न तो किसी निश्चित तिथि है और न ही कोई समय सीमा है। एक मित्र और पड़ोसी के रूप में भारत सदैव अफगानिस्तान के साथ मजबूती से खड़ा रहेगा। भारत अफगानिस्तान की जनता के साथ राष्ट्र-निर्माण और समावेशी विकास की अपनी क्षमता एवं अनुभव को बांटने को गर्व की बात समझता है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि वर्ष 2013-14में जो द्विपक्षीय व्यापार 683.10 मिलियन अमरीकी डालर था, उसे बढ़ाए जाने के प्रयास किए जाने चाहिए। वर्ष 2012-13 के दौरान अफगानिस्तान में 72 भारतीय कंपनियों ने 17 मिलियन अमरीकी डालर का निवेश किया है। भारत अफगानिस्तान में निवेश के लिए और कंपनियों को प्रोत्साहित करेगा। उन्होंने यह विश्वास व्यक्त किया कि अफगान राष्ट्रपति की यात्रा से साझा हित के सभी क्षेत्रों में दोनों देशों के सफल योगदान को और मजबूती मिलेगी।
राष्ट्रपति मुखर्जी के उद्गारों के प्रत्युत्तर में अफगान राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रपति भवन में ठहरने का निमंत्रण एक विशिष्ट सम्मान है तथा अफगानिस्तान की जनता को दिया जाने वाला विशिष्ट मान है। राष्ट्रपति गनी ने राष्ट्रपति मुखर्जी को उनके शोक संदेश पर धन्यवाद दिया तथा भूकंप के बाद की स्थिति से निपट रही नेपाल की जनता के प्रति संवेदना व्यक्त की। उन्होंने प्राकृतिक आपदा के दौरान भारत के नेतृत्व की सराहना की और इस उद्देश्य से एक क्षेत्रीय ढांचा तैयार करने का आह्वान किया। राष्ट्रपति गनी ने कहा कि अफगानिस्तान को यह उम्मीद है कि वह एशिया में भारत के साथ साझा भविष्य तथा लक्ष्य का साथी होगा।
तदोपरांत, राजभोज के दौरान अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि यद्यपि अफगान राष्ट्रपति अपने पूर्व दायित्वों के तहत यहां पहले कई बार आ चुके हैं परंतु यह यात्रा खास है। इस बार वह अफ़गानिस्तान में राष्ट्रीय एकता सरकार के मुखिया के रूप में तथा एक ऐसे गौरवशील राष्ट्र के राष्ट्रपति के रूप में भारत आए हैं जिसके साथ भारत के प्रगाढ़ सांस्कृतिक, धार्मिक तथा सभ्यतागत रिश्तों का लंबा इतिहास है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत और अफ़गानिस्तान के बीच स्थाई भरोसा तथा आपसी सद्भावना राजनीतिक एवं कार्यनीतिक संबंधों से कहीं आगे है। दोनों देशों के साझा इतिहास तथा भूगोल हमारे प्रगाढ़ रिश्तों के विकास में महत्वपूर्ण कारक हैं। इस ऐतिहासिक सच्चाई के चलते अफ़गानिस्तान के संघर्ष के उपरांत आर्थिक पुनर्निर्माण के प्रयास में इसके साथ सहयोग के लिए भारत में मजबूत तथा निरंतर समर्थन मौजूद रहा है। भारत को विश्वास है कि अगले कुछ वर्षों में अफ़गानिस्तान में विभिन्न सेक्टरों तथा इसके सामाजिक और आर्थिक प्रगति के सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बदलाव दिखाई देंगे।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत को यह पूर्ण अहसास है कि अफगानिस्तान की एकता, स्वतंत्रता,सुरक्षा तथा स्थिरता न केवल उसके लिए बल्कि भारत तथा हमारे पूरे पड़ोस में शांति और प्रगति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस उद्देश्य के लिए,अपने निजी सेक्टरों के बीच और अधिक सुदृढ़ व्यवसाय तथा निवेश संबंधों की स्थापना करते हुए आने वाले वर्षों में हमारे द्विपक्षीय संबंधों को अपनी कार्यनीतिक साझीदारी को मजबूत तथा विविधीकृत करने की जरूरत है।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने अपने राजभोज अभिभाषण में कहा कि 1950 के दौरान पले-बढ़े बहुत से अफगानियों के लिए भारत कोई ‘दूर’ का देश नहीं था। वह उनके मूल्यों, इतिहास बोध तथा एक स्वतंत्र और न्यायपूर्ण देश की रचना के प्रति उनकी समझ का हिस्सा था। अफगानिस्तान में 1950के दशक के बच्चों के लिए मौलाना अबुल कलाम आजाद, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू कोई दूर देश के लोग नहीं थे। वे सब ऐसे प्रेरणा देने वाले लेखक थे जिनके कार्यों ने अफगानी पीढ़ी को ब्रिटिश उपनिवेशवाद,आजादी के लिए भारतीयों का महान संघर्ष तथा ऐसा न्याय के प्रति ऐसी प्रगाढ़ प्रतिबद्धता की समझ दी जिसने उनके नेताओं की महान पीढ़ी को प्रेरणा दी थी।
भारत अफगानिस्तान का संस्थापक साझीदार रहा है। भारत में तेरह हजार अफगानी युवा पढ़ रहे हैं। स्वास्थ्य सेवा,प्रशिक्षण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा अन्य अति प्रशंसनीय सहायता, भारत और अफगानिस्तान के हजारों वर्ष पुराने इतिहास को निरंतरता प्रदान करती है। अफगानिस्तान भारत को उसकी सहायता तथा भावी सहयोग के आश्वासन के लिए धन्यवाद देता है जिससे अफगानिस्तान को अपने ऐसे साझीदारों के पड़ोस में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सहायता मिलेगी जो लोकतंत्र,विकास तथा आपसी सुरक्षा के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
राष्ट्रपति गनी ने कहा कि मुश्किलों के बावजूद, अफगानिस्तान भावी एकीकृत एशियाई विद्युतगृह के निर्माण की परियोजना में भारत का एक महत्वपूर्ण साझीदार हो सकता है। अफगानिस्तान केवल रूपक के तौर पर ही नहीं वस्तुत: एशिया के केंद्र में स्थित है। प्रतिबद्धता,निवेश, शांति, रेलवे,पापइलाइन हाइवे, फाइवर ऑप्टिक नेटवर्क के सहायता से मध्य, दक्षिण और पश्चिम एशिया तथा विश्व के बाजार केन्द्रों को एक दूसरे से जोड़ने वाले विचारों और लोगों का आवागमन किसी अन्य मार्ग के बजाय अफगानिस्तान से अधिक सुगमता से हो सकता है।
यह विज्ञप्ति 12:00 बजे जारी की गई।