राष्ट्रपति मुखर्जी द्वारा 28 जुलाई, 2015 को बेंगलूरु से दिल्ली की वापसी यात्रा के दौरान अपने विमान में मीडिया कर्मियों को भारत के पूर्व राष्ट्रपति, डॉ. अब्दुल कलाम के संबंध में सुनाए गए संस्मरण
राष्ट्रपति भवन : 29.07.2015

मुझे डॉ. कलाम के अप्रत्याशित निधन पर हार्दिक दु:ख हो रहा है। वह इस वर्ष 84 वर्ष पूर्ण कर लेते। हम दोनों के बीच केवल चार वर्ष का अंतर है। वह अक्तूबर 1931 में पैदा हुए थे और मैं दिसंबर 1935 में।

डॉ. कलाम से मेरी पहली मुलाकात तब हुई जब वह रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार थे। पोखरण विस्फोट के बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कांग्रेस के नेताओं को जानकारी देने के लिए बुलाया था। इस मौके पर मैं, डॉ. मनमोहन सिंह, श्रीमती सोनिया गांधी तथा कुछ अन्य लोग उपस्थित थे। डॉ. कलाम ने पोखरण-II के परीक्षणों के तकनीकी पहलुओं को अपनी प्रभावशाली प्रस्तुति के द्वारा स्पष्ट किया था। वाजपेयी जी, मंत्रियों तथा अन्य राजनीतिक नेताओं ने इसकी राजनीतिक नजरिए से समीक्षा की थी।

मैंने उन्हें, नवंबर 1997 में भारत रत्न मिलने पर तथा बाद में जब उनका नाम राष्ट्रपति के लिए प्रस्तावित हुआ तब बधाई दी थी। परंतु हमारी औपचारिक मुलाकात केवल 2004 में हुई। मैं संप्रग-I सरकार में रक्षा मंत्री था और वह राष्ट्रपति तथा सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर थे। उन्होंने मुझसे ब्रहमोस प्रक्षेपास्त्र परियोजना का समर्थन करने के लिए कहा था। उनके प्रत्यक्ष प्रोत्साहन के फलस्वरूप ही ब्रहमोस को तीनों सेनाओं द्वारा प्रयोग किया जा रहा है। शुरुआत में यह जमीन से जमीन पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र था। परंतु अब हमने इसका अनुकूलन कर लिया है तथा इसके अब जमीन से हवा में, हवा से हवा में तथा समुद्री रूपांतर भी मौजूद हैं। डॉ. कलाम तथा उनके सहयोगियों ने इस स्वदेशी क्रूज मिसाइल को भारत में विकसित किया। डॉ. कलाम के योगदान से हमारी रक्षा क्षमताओं में वृद्धि हुई।

डॉ. कलाम प्राय: कविताएं लिखते थे। कभी-कभी अमर जवान ज्योति पर वीरगति प्राप्त जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए वह कविता लिखते और उसे चुपचाप मुझे दे देते थे। मुझे इस तरह उनकी कोई दो/तीन कविताएं मिली।


हमारी मैत्री इसलिए प्रगाढ़ हुई क्योंकि हम दोनों ही पुस्तक प्रेमी थे। वह पुस्तकों से प्यार करते थे और उनके बीच रहते थे। उनकी दुनिया पुस्तकों के इर्द-गिर्द घूमती थी। वर्षों पहले मैंने अपने कॉलेज में ‘माय डेज अमंग द डेड आर पास्ड’ नामक कविता पढ़ी थी। डेड का यहां अर्थ है वह लेखक जो अब जीवित नहीं हैं। मैं हर समय पुस्तकों के बीच रहता हूं। वह भी सदैव किताबों के बीच रहते थे। इसके अलावा, वह एक प्रखर लेखक थे। यही शौक हमें एक-दूसरे के करीब लाया। जब हम मिले और जब कई मौकों पर वह मुझसे मिलने आए तब हम पुस्तकों पर बात किया करते थे। हम दोनों क्या पढ़ रहे हैं अथवा वह क्या लिख रहे हैं। वह मुझे टोकते, आप कुछ लिखते क्यों नहीं? आप पढ़ते हैं परंतु पढ़ने की तुलना में आप का सृजन बहुत कम है। आप लिखते क्यों नहीं?

मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद वह कई बार मुझसे मिलने आए तथा हमने बहुत से मुद्दों पर बात की। जब वह अंतिम बार मुझसे मिलने आए थे तो उन्होंने मुझे अपनी पुस्तक ‘बियोंड 2020’भेंट की थी।

जब मुझे उनके निधन का अप्रत्याशित समाचार मिला तो मैं ठगा रह गया। एक महान क्षति के भाव ने मुझे घेर लिया। डॉ. कलाम सदैव खुश रहते तथा अपनी उम्र को संजीदगी से नहीं लेते थे। उनका मस्तिष्क सदैव सतर्क रहता था। वह विनम्र थे परंतु उनका मस्तिष्क बहुत शक्तिशाली था। राष्ट्रपति रहने के दौरान वह जनता के राष्ट्रपति थे तथा अपनी मृत्यु के बाद वह जनता के दिलों पर राज करते रहेंगे।

किसी भी राष्ट्रपति को कभी इतना स्नेह नहीं मिला। जवाहरलाल नेहरू को बच्चों और लोगों से बहुत प्रेम और स्नेह मिला था। इसके बाद डॉ. कलाम ही रहे। बच्चों और छात्रों के साथ डॉ. कलाम को आनंदित होते देखने पर लगता था मानो वह दूसरे शरीर में नेहरू हों।

यह विज्ञप्ति 1600 बजे जारी की गई।

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