राष्ट्रपति भवन : 02.11.2012
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि लोकायुक्त संस्था विकास में बाधा नहीं बल्कि सुशासन में एक सहयोगी है। वह 2 नवम्बर 2012 को नई दिल्ली में अखिल भारतीय लोकायुक्त सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
राष्ट्रपति ने लोकायुक्तों को यह स्मरण रखने की सलाह दी कि उनका कार्य दोषी होने पर सार्वजनिक कर्मी को आरोपी बनाना ही नहीं बल्कि उनका आचारण गलत न पाए जाने पर उनकी रक्षा करना और समान शक्ति व गंभीरता के साथ उनके बारे में गलत धारणाओं को सही करना है। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि भ्रष्टाचार रोकने के नाम पर, बदनाम या प्रतिष्ठा खराब करने वाले मानहानि अभियान न चलाए जाएं। राष्ट्रपति ने कहा प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने वाले मिथ्या आरोप अनुचित हैं।
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि संस्थाए हमारे संविधान के दृश्यमान स्तम्भ हैं और यदि इनमें दरार आ जाती है तो हमारे संविधान का आदर्शवाद कायम नहीं रह सकता। हमारा संविधान समय की थकान से ग्रसित हो सकता है। इसका समाधान पहले से बने निर्माण को ध्वस्त करना नहीं बल्कि उसे पुन:निर्मित करना है ताकि वे पहले से अधिक मजूबत बन जाएं। संस्थाएं हमारी स्वंतत्रता की परम संरक्षक हैं। इन सभी मौजूदा जवाबदेही वाली संस्थाओं को विस्थापित या समाप्त न करके उन्हें सशक्त बनाना चाहिए। हमें रिश्वत और भ्रष्टाचार, सिविल और आपराधिक निर्णयों की वास्तविक त्रुटियों में अन्तर करना होगा तथा निर्दोष को बचाने के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध तीव्र और प्रभावी रोक लगानी होगी।
यह विज्ञप्ति 1900 बजे जारी की गई