राष्ट्रपति जी ने सिविल सेवकों का आह्वान किया कि वे सामाजिक-आर्थिक बदलाव के कारक बनें
राष्ट्रपति भवन : 18.10.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने सिविल सेवकों का आह्वान किया कि वे सामाजिक आर्थिक बदलाव का कारक बनें। वह आज (18 अक्तूबर, 2013) लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में मध्य सेवाकालीन चरण-V प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षणाधीन अधिकारियों तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय वन सेवा और भूटान सिविल सेवा के लिए 88वें आधारिक पाठ्यक्रम में भाग लेने वाले अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित कर रहे थे।

इन अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व में ऐसी कुछ ही नौकरशाहियां हैं जिनके पास उनके समान अर्हताएं, विभिन्न दक्षताएं तथा प्रतिभाएं मौजूद हैं। जब सिविल सेवकों को राजनीतिक दबावों का सामना करना पड़ता है तो उन्हें मुद्दों का, निर्धारित कानूनी ढांचे के तहत, हल निकालने के लिए धैर्य तथा व्यवहार कुशलता से काम लेना चाहिए। साथ ही सिविल सेवकों को राजनीतिक नेताओं की मजबूरियों को भी ध्यान में रखना चाहिए जो कि बढ़ती विकासात्मक आकांक्षाओं के चलते अपने चुनाव क्षेत्र के प्रति जवाबदेह होते हैं। उन्होंने सिविल सेवकों को परामर्श दिया कि उनके पास अपनी परिकल्पना होनी चाहिए तथा उन्हें राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए।

राष्ट्रपति, मुखर्जी ने 1970 के दशक में मंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल को याद करते हुए कहा कि उनके सचिव भारतीय प्रशानिक सेवा के एक अनुभवी तथा वरिष्ठ अधिकारी थे। उन्होंने एक बार उक्त अधिकारी से पूछा था कि क्या उन्हें मुझ जैसे युवा मंत्री से आदेश लेते हुए शर्मिंदगी नहीं महसूस होती। उन्होंने सचिव के उत्तर का उल्लेख किया, ‘‘मंत्री जी, जब मैं आपसे निर्देश लेता हूं तो मैं आपके चेहरे पर नहीं बल्कि उन बहुत से लोगों को देखता हूं जिन्होंने आपको यहां चुनकर भेजा है।’’

राष्ट्रपति ने अधिकारियों से आग्रह किया कि वे संस्थाओं को मजबूत बनाएं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संस्थाएं हमारे लोकतंत्र की ईंटें हैं तथा संविधान में परिकल्पित संतुलन को बनाए रखा जाना चाहिए। राष्ट्रपति जी ने समाज के विकास तथा समृद्धि में महिलाओं की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि महिलाओं को आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा उनकी सुरक्षा और हिफाजत सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्होंने देश से आग्रह किया कि वह अपनी नैतिक दिशा का पुन: निर्धारण करे।

इस अवसर पर श्री अज़ीज़ कुरैशी, उत्तराखंड के राज्यपाल, श्री वी. नारायणसामी, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में केंद्रीय राज्य मंत्री तथा एस.के. सरकार, सचिव, कार्मिक एव प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार उपस्थित थे।

यह विज्ञप्ति 1840 बजे जारी की गई।

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