राष्ट्रपति भवन : 15.09.2013
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने शिक्षा, सामाजिक सुधार तथा समाज की बेहतरी के लिए अविचल प्रतिबद्धता के साथ पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर के सपनों और उनके आदर्शों को वास्तविकता में बदलने के लिए यथासंभव प्रयास करने पर बल दिया। वह आज (15 सितम्बर, 2013) मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल में विद्यासागर विश्वविद्यालय में 9वां विद्यासागर स्मृति व्याख्यान दे रहे थे।
‘वर्तमान समाज के लिए पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर के जीवन और उनके संदेश’ की प्रासंगिकता पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने शिक्षकों तथा समाज के प्रबुद्ध वर्गों का आह्वान किया कि वे शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा कि समाज ने प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति में, शिक्षा प्रणाली तथा कार्यक्रमों के द्वारा निवेश किया है। बदले में, शिक्षित व्यक्तियों की भी अपने देश और इसकी जनता के प्रति जिम्मेदारी है।
राष्ट्रपति ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि भारत का कोई भी विश्वविद्यालय 200 विश्व-स्तरीय विश्वविद्यालयों में स्थान नहीं बना सका है और कहा कि सभी को आत्म विश्लेषण करना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि हमें यह सोचना होगा कि क्या कमी रह गई है और मेधावी शिक्षकों और विद्यार्थियों की कमी न होने के बावजूद ऐसा क्या है जो हम नहीं कर पाए हैं। भारत ने छठी सदी ईस्वी पूर्व से आरंभ होकर लगभग 1800 वर्षों तक पूरे विश्व की शिक्षा प्रणाली पर अपना दबदबा बनाए रखा था।
पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि प्राथमिकता से उच्च स्तरों तक की शिक्षा के प्रसार में, पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने राम मोहन राय का अनुसरण किया। उन्होंने वैज्ञानिक तथा पंथनिरपेक्ष शिक्षा तथा अपनी संस्कृति को भूले बिना अथवा पश्चिम से प्रभावित हुए बिना पश्चिमी सभ्यता के लाभों को प्राप्त करने के महत्त्व और जरूरत को समझा। उनका प्रगतिशील नजरिया करुणा तथा व्यक्तिगत अनुभव से प्रेरित था। रूढ़िवादी शक्तियों के प्रबल विरोध के बावजूद उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष जारी रखा तथा अपने पुत्र नारायण को विधवा से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित करके, उसी पर अमल किया जो वह उपदेश देते थे।
विभिन्न प्रकार की सामाजिक विद्रूपताओं पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि इस स्थिति को सुधारने के लिए केवल सरकार ही सब कुछ नहीं कर सकती। लैंगिक जागरूकता को लक्ष्य में रखकर बड़े पैमाने पर जन-जागरण की अत्यधिक जरूरत है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमें, अपने नैतिक मूल्यों के दुखद पतन पर आत्म-चिंतन करने तथा यह विचार करने की जरूरत है कि हम अपनी नैतिकता की दिशा का पुनर्निधारण कैसे कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक गिरावट को रोकने के लिए, शिक्षा संस्थानों को विद्यालयों की महिलाओं के प्रति सम्मान जैसे मूल सभ्यतागत मूल्यों को समावेश करने की प्रमुख जिम्मेदारी है।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन की आधारशिला रखी।
यह विज्ञप्ति 2005 बजे जारी की गई।