राष्ट्रपति जी ने सेंट जोसेफ्स स्कूल, दार्जिलिंग के विद्यार्थियों से कहा: सकारात्मक मनोवृत्ति और दृढ़ उत्साह के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ें, समाज की सेवा में ज्ञान का प्रयोग करें।
राष्ट्रपति भवन : 10.11.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (10 नवम्बर, 2013) दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल में सेंट जोसेफ्स स्कूल, नॉर्थ प्वांइट के 125वें वर्ष की जयंती समारोहों को संबोधित किया।

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे सकारात्मक मनोवृत्ति और दृढ़ उत्साह के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण और शिक्षा के अलावा, उन्हें चरित्र, मन और ध्येय में सुदृढ़ता लानी चाहिए। ज्ञान का प्रयोग सदैव लोगों और समाज की सेवा में करना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू अक्सर कहा करते थे, ‘‘यदि भारत को एक महान राष्ट्र बनाना है तो इसकी शुरुआत उसकी कक्षाओं से होनी चाहिए। सेंट जोसेफ्स स्कूल, नॉर्थ प्वाइंट तथा सेंट जेवियर्स कोलकाता, जहां गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अध्ययन किया, सेंट जेवियर्स मुंबई, एक्सएलआरआई जमशेदपुर और लोयोला कॉलेज, चेन्नै जैसी जेसुइट फादर्स द्वारा संचालित संस्थाएं समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं और इन्होंने हमारे राष्ट्र के निर्माण में योगदान दिया है।’’

राष्ट्रपति ने इस कहावत कि; ‘वाटरलू का युद्ध इटोन के खेल के मैदान में जीता गया था’ का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत के भविष्य का निर्माण उत्तम स्कूलों के भट्टियों, उनकी कक्षाओं, खेल के मैदानों और सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों में होता है। यह जरूरी है कि छोटी आयु में ही हमारे बच्चों में समाज के पिछड़े वर्गों के प्रति सहृदयता और सरोकार पैदा किया जाए ताकि वे परिवर्तन के ऐसे कारक बन सकें जो भारत की कायापलट कर दें और उसे एक बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर करें।

राष्ट्रपति ने कहा कि स्कूल और विश्वविद्यालय दोनों स्तरों पर हमारी शिक्षा प्रणाली को उन्नत करने के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है। भारत ने अब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू कर दिया है जो एक ऐसा ऐतिहासिक कानून है जिसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि 14 वर्ष तक की आयु का प्रत्येक बच्चा स्कूल जाए। प्रदान की जाने वाली शिक्षा गुणवत्तापूर्ण तथा शिक्षक सुप्रशिक्षित होने चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम है। हमारी शिक्षा प्रणाली की उपलब्धि को केवल उपाधि धारकों की संख्या से नहीं बल्कि ऐसे जागरूक नागरिकों की विशाल संख्या से नापना होगा जो मानीवयता का सम्मान करें और घृणा, क्षेत्रवाद, हिंसा, भेदभाव की संकीर्ण भावनाओं से स्वयं ऊपर उठें तथा एक बेहतर, मजबूत और जीवंत भारत के प्रति सार्थक योगदान दें।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश के युवा मेधा या प्रतिभा के मामले में किसी से पीछे नहीं हैं; हमारे देश को जरूरत है ईमानदारी और समर्पण की।

यह विज्ञप्ति 1540 बजे जारी की गई।

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