राष्ट्रपति जी ने न्यायपालिका से आत्मानुशासन का पालन करने को कहा
राष्ट्रपति भवन : 12.05.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी आज (5 मई, 2013) को कोलकाता में कलकत्ता उच्च न्यायालय की डेढ सौवीं जयंती समारोहों के समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे।

 
President Asks Judiciary To Observe Self Discipline

इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता परमपावन है। परंतु न्यायपालिका को आत्मानुशासन बरतते हुए कार्यपालिका तथा विधायिका के साथ संतुलन बनाए रखना चाहिए। संसदीय प्रणाली की सरकार की सफलता इस संतुलन को बनाए रखने पर निर्भर है।

 
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राष्ट्रपति ने न्यायाधीशों से कहा कि न्यायपालिका से लोग बहुत उम्मीदें रखते हैं। उन्होंने कहा कि वे इस बारे में चिंतन करें कि वे इन अपेक्षाओं को कैसे पूरा कर सकते है।

राष्ट्रपति ने भारतीय न्यायपालिका को लोकहित वाद की शुरुआत करने के लिए बधाई दी तथा कहा कि न्यायपालिका ने पहले भी बेहतर ढंग से न्याय प्रदान करने के लिए नवान्वेषण किए हैं। न्यायपालिका को भारी संख्या में अनिर्णीत वादों के निपटारे तथा न्यायालयों में रिक्तियों को भरने जैसी चुनौतियों का समाधान ढूंढना होगा।

राष्ट्रपति ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि आज तक कलकत्ता उच्च न्यायालय में केवल 10 महिला न्यायाधीश बन पाई हैं और न्यायपालिका से कहा कि वे इस बात पर विचार करें कि महिलाओं को किस तरह आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

 
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इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में भारत के मुख्य न्यायाधीश, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शामिल थे।

यह विज्ञप्ति 1940 बजे जारी की गई

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