राष्ट्रपति भवन : 13.05.2014
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने विश्वास व्यक्त किया कि भारत शीघ्र ही उच्च शिक्षा सस्थानों की वैश्विक वरीयता सूची में अपना उपयुक्त स्थान बना लेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षण संस्थानों का ईसा पूर्व छठी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक लगभग 1800 वर्षों की अवधि तक विश्व पर प्रभुत्व था और ये विश्वभर के विद्वानों के लिए आकर्षण के केंद्र थे। भारत को अतीत के उस खोए हुए गौरव को पुन: प्राप्त करना होगा तथा एक बार फिर विश्व भर के विचारों के आदान-प्रदान का केंद्र बनना होगा।
राष्ट्रपति ने ये विचार क्यू एस, आई सी ए ए, ब्रिटिश काउंसिल, फिक्की और के.पी.एम.जी. के एक शिष्टमंडल को संबोधित करते हुए व्यक्त किए, जिसने कल (12 मई, 2014) उन्हें राष्ट्रपति भवन में ‘क्यू एस यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स : एशिया 2014’ की प्रथम प्रति भेंट की। इस ओर ध्यान दिलाते हुए कि वह भारतीय शिक्षण संस्थानों द्वारा अपनी वैश्विक रैंकिंग को बढ़ाने को महत्त्व देने की आवश्यकता पर बल देते रहे हैं, राष्ट्रपति ने प्रसन्नता व्यक्त की कि इन प्रयासों से अच्छे परिणाम निकल रहे हैं और क्यू एस द्वारा प्रकाशित नई एशियाई विश्वविद्यालय वरीयता सूची में भारतीय संस्थानों की संख्या पिछले वर्ष के 11 की तुलना में बढ़कर 17 हो गई है।
राष्ट्रपति ने शिष्टमंडल को बताया कि भारतीय प्राधिकारी, भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों से उपयुक्त प्रपत्र में आवश्यक सूचना प्राप्त करने में उनकी हर संभव सहायता करेंगे। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों को पारदर्शी होना चाहिए तथा सभी प्रासंगिक सूचनाओं को उन्हें अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करना चाहिए।
यह विज्ञप्ति 1400 बजे जारी की गई।