राष्ट्रपति जी ने कृषि अनुसंधान, शिक्षा तथा प्रसार संस्थानों के संपूर्ण नेटवर्क का, अधिकाधिक कृषि विकास के लिए नई से नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करने तथा उनको कार्यान्वित करने के लिए आह्वान किया
राष्ट्रपति भवन : 19.01.2014

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (19 जनवरी, 2014) बारामती में कृषि विज्ञान केंद्र के नए भवन का उद्घाटन किया तथा इसके नए उद्घाटन किए गए परिसर में प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिकी प्रेरित कृषि विकास, देश के लिए उन्नति का मार्ग है। उन्होंने कृषि अनुसंधान, शिक्षा तथा प्रसार संस्थानों के संपूर्ण नेटवर्क का, अधिकाधिक कृषि विकास के लिए नई से नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करने तथा उनको कार्यान्वित करने के लिए आह्वान किया। उन्होंने कहा कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण नीति, 2013 ने कृषि में नवान्वेषण को बढ़ावा देने की जरूरत पर बल दिया है। इस नीति में, कृषि विकास केंद्र जैसे जमीनी संस्थानों के लिए अधिकाधिक मार्गदर्शक की भूमिका की भी परिकल्पना की गई है। उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा कृषकों के नवान्वेषणों के साक्ष्यांकन तथा उनको अभिलेखबद्ध करने के लिए कृषि नवान्वेषण फंड का प्रस्ताव किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इससे किसानों द्वारा किसानों के लाभ के लिए नए उत्पादों, प्रौद्योगिकियों, प्रक्रियाओं तथा पद्धतियों के विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।

राष्ट्रपति के कहा कि प्रसार प्रणाली को सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों, निगमित सेक्टर, किसान संगठनों तथा स्व-सहायता समूहों की सक्रिय सहभागिता से नया रूप देना होगा। कृषि विज्ञान केंद्रों को प्रसार गतिविधियों में, सार्वजनिक-निजी-जनता साझीदारी की इस नवान्वेषी संकल्पना में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। उन्होंने कहा कि कृषि तथा संबद्ध सेक्टरों में महिलाओं द्वारा संचालित सूक्ष्म-उपक्रम सफल सिद्ध हुए हैं। अपनी बहु-पक्षीय भूमिकाओं तथा कौशल विकास के बीच तालमेल बिठाने की महिलाओं की क्षमता को पहचाना जाना चाहिए। इसलिए और अधिक स्व-सहायता-समूहों को बढ़ावा देना होगा। कृषि विकास केंद्रों द्वारा केरल में विकसित तथा परीक्षित धान-कार्यबल का दूसरे क्षेत्रों में भी अनुकरण किया जा सकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत बागवानी संबंधी बहुत सी फसलों का प्रमुख उत्पादक है। आगे और विकास की काफी संभावनाएं हैं। कृषि विकास केंद्रों द्वारा, उत्पादकों को प्रशिक्षित करके उन्हें सामान की खरीद तथा अपने उत्पादों की बिक्री के दौरान सामूहिक भाव-ताव करने के लिए एसोसियेशनों को गठित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। महाराष्ट्र में गन्ना सहकारी समितियां तथा फल उत्पादक संगठन जैसे मॉडल किसान संगठनों का गठन, बागवानी, सूक्ष्म सिंचाई तथा जल बजट, जैसे, अनुकरणीय कार्यों का अन्य राज्यों में भी अनुसरण किया जाना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि कृषि प्रसंस्करण सेक्टर में अपव्यय कम करके तथा मूल्य संवर्धन में बढ़ोतरी करके फसल की कटाई-बाद के प्रबंधन में सुधार लाते हुए बदलाव लाने की जरूरत है। दूध तथा मत्स्य पालन ऐसे कुछ अन्य सेक्टर हैं जिनमें विकास की अत्यधिक संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि भारत का विश्व में दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान तथा मत्स्य पालन में दूसरा स्थान है। इन खाद्य सामग्रियों के लिए बढ़ती मांग के मद्देनजर उनकी उत्पादन क्षमता में बढ़ोत्तरी के लिए संकेन्द्रित कार्यनीति बनाने की जरूरत है। बागवानी, पशुपालन, दुग्ध, तथा मत्स्यपालन सेक्टरों में प्रौद्योगिकी आधारित विकास से कृषि में इन्द्रधनुष क्रांति आरंभ करने में सहायता मिलेगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि कृषि में विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिलना चाहिए। अध्ययनों ने जताया है कि कृषि में एक प्रतिशत वृद्धि दूसरे सेक्टरों में विकास के मुकाबले, गरीबी के उन्मूलन में दो गुना कारगर होती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को 800 मिलियन से अधिक लोगों को वहनीय मूल्य पर खाद्यान्न के लिए कानूनी गारंटी प्रदान करने के लिए सितंबर, 2013 में बनाया गया था। विश्व के इस सबसे बड़ी सामाजिक सेक्टर के कार्यक्रम की शुरुआत तथा उसका सफल कार्यान्वयन हमारे कृषि सेक्टर की सफलता पर निर्भर करेगा। पिछले नौ वर्षों के दौरान खाद्यान्न के अच्छे उत्पादन से यह विश्वास जगता है कि जनता को दी गई खाद्य सुरक्षा के दायित्व को पूर्ण करने में देश सफल रहेगा।

यह विज्ञप्ति 1450 बजे जारी की गई।

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