राष्ट्रपति जी ने कहा, विधायकों को सदैव याद रखना चाहिए कि युवा तथा महत्वाकांक्षी भारतीय उनसे सेवा प्रदाता बनने की अपेक्षा रखते हैं<br />

राष्ट्रपति भवन : 18.05.2015

<p>भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (18 मई, 2015) देहरादून में उत्तराखण्ड विधान सभा के विशेष सत्र को संबोधित किया।</p><p>इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि भारत जैसे आकार तथा विविधताओं से परिपूर्ण देश का शासन चलाना तथा क्षेत्र, भाषा,नस्ल, जाति और धर्म के कारण सामने आने वाली चुनौतियों से निपटना एक असाधारण कार्य है। परंतु हमारे देश में लोकतांत्रिक प्रणाली ने गहरी पकड़ बना ली है तथा हमने अब तक संसद के निचले सदन के सोलह आम चुनाव तथा अपनी विधान सभाओं और स्थानीय निकायों के असंख्य चुनाव सफलतापूर्वक करवाए हैं। हमारे संसदीय लोकतंत्र को आज पूरी दुनिया में विस्मय और प्रशंसा के साथ देखा जाता है।</p><p>राष्ट्रपति ने कहा कि एक विधायक का कार्य 24×7 उत्तरदायित्व लिए हुए होता है। विधायकों को हर समय जनता की समस्या के समाधान के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहिए। उन्हें जनता की शिकायतों को विधायिका के समक्ष उठाकर उनकी आवाज बनना चाहिए तथा जनता और सरकार के बीच की कड़ी के रूप में कार्य करना चाहिए। उन्हें यह बात सदैव याद रखनी चाहिए कि युवा तथा महत्वाकांक्षी भारतीय उनसे सेवा प्रदाता बनने की अपेक्षा रखते हैं। पांच वर्ष के अंत में वे यह हिसाब मांगेंगे कि उन्होंने किस तरह अपना दायित्व निभाया। हममें से प्रत्येक व्यक्ति, जो भी चुने गए पदों पर हैं, को यह याद रखना चाहिए कि जनता हमारी मालिक है। हममें से हर एक ने, यहां पहुंचने के लिए मत मांगे हैं तथा उनका समर्थन प्राप्त किया है।</p><p>राष्ट्रपति ने कहा कि विधान सभा में, सदैव अनुशासन एवं शालीनता बनाए रखनी चाहिए तथा नियमों, परंपराओं और शिष्टाचार का पालन होना चाहिए। संसदीय परंपराओं, प्रक्रियाओं तथा परिपाटियों का उद्देश्य सदन में सुव्यवस्थित तथा तेजी से कार्य संचालन की व्यवस्था करना है। असहमति को शालीनता से तथा संसदीय व्यवस्थाओं की सीमाओं और मापदंडों के तहत व्यक्त किया जाना चाहिए। यह खेदजनक है कि पूरे देश में विधायकों द्वारा विधि निर्माण पर लगाया जाने वाला समय धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। प्रशासन की बढ़ती जटिलताओं के मद्देनजर कानून पारित करने से पूर्व पर्याप्त परिचर्चा तथा जांच होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह अपेक्षित परिणाम देने में असमर्थ रहेगा अथवा अपने उद्देश्यों पर पूरा नहीं उतरेगा। खासकर, विधि निर्माण, धन तथा वित्त के मामलों में अत्यधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है।</p><p>राष्ट्रपति ने उत्तराखण्ड विधान सभा तथा अन्य विधान सभाओं से आग्रह किया कि वे बैठकों की संख्या बढ़ाने पर विचार करें ताकि राज्य के मसलों पर गंभीरता से परिचर्चा और बहस हो सके। उन्होंने सुझाव दिया कि जनता को विधान मंडलों के और करीब लाने के लिए जनता को विधायिका की कार्यप्रणालियों से परिचित करने हेतु हमारी विधान सभाओं को संग्रहालय स्थापित करने चाहिए। वे सत्रों का अवलोकन करने के लिए छात्रों को आमंत्रित भी कर सकते हैं तथा ग्राम सभाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के सदस्यों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का आयोजन कर सकते हैं।</p><p>राष्ट्रपति ने कहा कि प्रत्येक विधायक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सदनों में होने वाली बहसों की विषयवस्तु और गुणवत्ता का स्तर सर्वोत्तम हो। किसी भी संसदीय लोकतंत्र में विधायिका का निगरानी संबंधी कार्य महत्त्वपूर्ण और गतिशील होता है। उत्तराखण्ड विधान सभा ने वर्षों के दौरान अनेक प्रगतिशील कानूनों के माध्यम से राज्य की जनता के कल्याण को बढ़ावा दिया है। अब राज्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में नेतृत्व प्रदर्शित करने का समय आ गया है।</p><p class="last-word">यह विज्ञप्ति 1715 बजे जारी की गई।</p>

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