राष्ट्रपति भवन : 29.04.2013
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (29 अप्रैल, 2013) दुमका में सिधो कान्हो मुर्मू विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत इस समय तीव्र और बुनियादी बदलावों की प्रक्रिया से गुजर रहा है, जो ऐसी प्रक्रिया है जिसे रोकना मुमकिन नहीं है। परंतु यह बदलाव समाज के अलग-अलग वर्गों में अलग-अलग गति से हो रहा है। भौगोलिक रूप से मंडलों तथा उप-मंडलों के रूप में तथा धर्म, जाति, वर्ग, लिंग तथा रोजगार के आधार पर भारतीय समाज की जटिलता की सावधानीपूर्वक मॉनीटरिंग किया जाना तथा बदलाव की इस प्रक्रिया का दक्षता से संचालन करना जरूरी है। इस बदलाव का सफलतापूर्वक प्रबंधन हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती है। इस बदलाव के बारे में हमारी प्रतिक्रिया एक राष्ट्र के रूप में भारत का भविष्य तय करेगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि सिधो कान्हो मुर्मू विश्वविद्यालय इस इलाके के दो विख्यात स्वतंत्रता सेनानियों, सिधो मुर्मू और कान्हो मुर्मू के प्रति एक सम्मान है। उन्होंने उपनिवेशवादी राज के शोषण के खिलाफ 1855 में आमतौर से ‘संथाल हुल’ के नाम से विख्यात संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया था। देश को उनका यह योगदान इस विश्वविद्यालय के नाम में अमर रहेगा। अब यह इस विश्वविद्यालय का दायित्व है कि वह उस संदेश और मूल्यों का प्रसार करें जिनके लिए इन महान व्यक्तियों ने संघर्ष किया और सर्वोच्च बलिदान दिया।
राष्ट्रपति ने कहा कि वैश्वीकरण के दौर में विश्वविद्यालयों को अति महत्त्वपूर्ण परिसंपत्ति माना जाता है। पूरी दुनिया में सरकारों द्वारा विश्वविद्यालयों पर बहुत निवेश किया गया है। वे नवीन ज्ञान तथा नवान्वेषी चिंतन के महत्त्वपूर्ण स्रोतों तथा विश्वसनीय प्रमाण पत्रों के साथ कुशल कार्मियों को प्रदान करने वाले संस्थानों के रूप में जाने जाते हैं। इसके अलावा उन्हें किसी इलाके में अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा और व्यापारिक निवेश को आकर्षित करने वाले, सामाजिक बदलाव तथा गतिशीलता के कारकों के रूप में तथा सांस्कृतिक और सामाजिक शक्ति के संसाधनों के रूप में भी जाना जाता है। शिक्षा किसी भी देश की प्रगति का प्रमुख कारक होती है तथा भारत को शिक्षा में, खासकर जनसंख्या बहुलता संबंधी अपनी स्थिति के मद्देनजर, निवेश करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में उन्होंने कहा था कि अब समय आ गया है कि हमारा देश अपनी नैतिक दिशा का पुन: निर्धारण करे। मैं युवाओं को शिक्षा प्रदान करने वाले तथा उनके मस्तिष्कों को प्रभावित करने वाले तथा समाज पर नैतिक प्रभाव रखने वाले लोगों का आह्वान करता हूं कि वे इस प्रक्रिया को शुरू करें। उन्होंने कहा कि हमारे विश्वविद्यालयों तथा अकादमिक संस्थानों का भी यह उत्तरदायित्व है कि वे अग्रणी भूमिका निभाएं तथा ऐसी शिक्षा प्रदान करें जो हमें अपने समय की नैतिक चुनौतियों का सामना करने में सहायता प्रदान करेगी। इसे समाज में मानवीय गरिमा तथा समानता के मूल्यों के प्रसार में सहायता देनी चाहिए।
यह विज्ञप्ति 1800 बजे जारी की गई